जब-जब धरती पर मानवता ने दम तोड़ा, तब-तब खुद खुदा स्वयं गुरु रूप में मानवता को सही मार्ग दिखाने के लिए धरती पर अवतार लेते रहे। सच्चे संत फकीर मालिक के हुक्मानुसार समाज तथा सृष्टि के उद्धार का कर्म करते हैं। इसी उद्देश्य से एक आलौकिक ज्योत संवत विक्रमी 1948 यानि सन् 1891 में कार्तिक मास की पूर्णिमा के दिन इस धरती पर अवतरित हुई। गांव कोटड़ा, तहसील गंधेय, रियासत कुलायत (बिलोचिस्तान) में पूज्य पिता श्री पिल्ला मल जी के घर, पूज्य माता तुलसां बाई जी की पवित्र कोख से जन्मे ‘पूजनीय बेपरवाह सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज’ ने लोगों को राम नाम से ही नहीं जोड़ा बल्कि परमात्मा को पाने का आसान व वास्तविक मार्ग भी दिखाया। आप जी ने 29 अप्रैल 1948 को सर्व धर्म संगम डेरा सच्चा सौदा की नींव रखी और धर्म, जात, मजहब के फेर में उलझे समाज को रूहानियत, सूफीयत की वास्तविकता का परिचय करवाकर इंसानियत का पाठ पढ़ाया। आप जी की पावन शिक्षाओं की बदौलत डेरा सच्चा सौदा ने पूरे विश्व में सर्वधर्म संगम की विलक्षण पहचान बनाई। पूज्य बेपरवाह सार्इं जी का संदेश है कि परमात्मा एक है और उसे पाने के लिए पैसा, बाहरी दिखावा या पाखंड की जरूरत नहीं है बल्कि भगवान को पाने के लिए ह्दय में सच्ची श्रद्धा व प्रभु को पाने की तड़प व प्रेम की जरूरत है।
नाम वाले जीव का एक पैर यहां और दूसरा सचखंड में
‘‘एक बार पूज्य बेपरवाह सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज ने पूज्य बाबा सावण शाह जी महाराज के चरणों में अर्ज़ की,‘‘सार्इं जी! रास्ते में बड़ी चढ़ाइयां हैं, बड़ी गहराइयां हैं। कहीं त्रिकुटी, कहीं भंवर गुफा, अनेक मंजिलें हैं। असीं कैसे लोगों को समझाएंगे? अभ्यासी तो इन्हीं में फंस जाएंगे। कैसे निकलेंगे ? इन चक्करों में न फंसाओ। हमें तो कुछ ऐसा नाम दो, जिसको भी दें उसका एक पैर यहां (धरती पर) और दूसरा सचखंड में हो। बीच वाले चक्क रों को खत्म करो। अगर जीव लगन से नाम सुमिरन करे तो उसे कहीं रुकावट न आए और मालिक के दर्श-दीदार तक पहुंच जाए। रास्ते में किसी स्टेशन पर गाड़ी रोकनी न पड़े, एक्सप्रैस ही बन जाए।’’ इस पर पूज्य बाबा जी ने कहा,‘‘ठीक है भाई, तेरी यह बात भी मंजूर है।’’ ’’पूज्य सार्इं जी ने एक बार फिर अर्ज करते हुए कहा, सच्चे पातशाह जी! हम कोई नया धर्म नहीं चलाना चाहते। ‘‘धन-धन सतगुरु तेरा ही आसरा’’ नारा बोलना चाहते हैं। जिसको सभी धर्म वाले मानें ’’। इस पर पूज्य बाबा सावण शाह जी ने फरमाया, ‘‘ हे मस्ताना! तुम्हारी मौज, तुम्हारे लिए, ‘‘धन-धन सतगुरु तेरा ही आसरा’’ मंजूर किया। ये नारा सारी दुनियां में ही नहीं अपितु दोनों जहानों में काम करेगा।’’
फकीर के वचन, पुत्र तो होगा, लेकिन वह दुनियां तारने आएगा
आप जी के पूज्य पिता जी जोकि अपने गांव में मिठाई की दुकान किया करते। पूज्य माता-पिता जी अत्यन्त धार्मिक प्रवृति व ईश्वर के श्रद्धावान भक्त थे। घर में चार लड़कियां पैदा हुई, लेकिन पुत्र प्राप्ति की इच्छा उन्हें हर समय सताती रहती। गांव में आने वाले जो भी साधु-महात्मा उन्हें मिलते वे सच्चे दिल से उनकी सेवा करते और उनके समक्ष पुत्र प्राप्ति की इच्छा भी प्रकट करते। एक बार उनकी भेंट एक मस्त मौला फकीर से हुई। पूज्य माता जी ने फकीर की भरपूर सेवा की और पुत्र प्राप्ति की अभिलाषा प्रकट की। पूज्य माता जी की सेवा से प्रभावित होकर फकीर ने कहा कि माता जी, पुत्र तो आपके घर जन्म ले लेगा लेकिन वह दुनियां को तारने के लिए आएगा, आपके काम नहीं आएगा, अगर मंजूर हो तो बताएं। पूज्य माता जी ने उस फकीर के वचनों पर सहर्ष अपनी सहमति प्रकट करते हुए कहा, हमें ऐसा पुत्र भी मंजूर है।’
‘इलाही वचन’ जो हुए ‘सच’ ‘जब तीसरी बॉडी में आएंगे,
रोज बदल-बदल कर कपड़े पहनेंगे’
एक बार पूजनीय शाह मस्ताना जी महाराज को किसी प्रेमी ने अर्ज की, सार्इं जी तुसीं सेवादारों को सोना चाँदी, नए-नए कपडेÞ बांटते हो, पर स्वयं फटे व पेबंद वाले कपडेÞ पहनते हो। तब पूज्य बेपरवाह जी ने फरमाया पुत्र! फिक्र ना कर, जब तीसरी बाडी में आएंगे तो रोज बदल-बदल कर कपड़े पहना करेंगे, काल की लीद निकाल देंगे। रूहानी जाम के समय पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने विभिन्न प्रकार की पोशाकें पहनी तो साध-संगत ने पूजनीय बेपरवाह जी के उपरोक्त वचनों को साक्षात पूरा होते हुए देखा।
‘असीं तो मकान बनवाते हैं, तीसी बॉडी बने बनाये जमीं पर उतारेगी’
पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी मकान बनवाते और फिर गिरवा देते तथा फिर बनवा देते। किसी प्रेमी ने सार्इं जी से इस बारे में अर्ज की कि सार्इं जी आप ऐसा क्यों करते हो? तो सार्इं जी ने फरमाया की ‘‘पुत्र असीं तो मकान बनवाते हैं, तीसरी बॉडी बने बनाये मकान जमीं पर उतारेगी। प्रत्यक्ष को प्रमाण की जरुरत नहीं होती। आज सारी साध-संगत जानती है कि पूज्य गुरु जी की रहनुमाई में यहां कुछ घंटों में ही बड़ी-बड़ी इमारते खड़ी हो जाती है और अकसर लोग ये कहते हैं पूज्य गुरु जी बिल्डिंग बनाते नहीं है बल्कि आसमान से ब बनाई जमीन पर उतारते हैं।
‘इस जगह पर सचखंड का नमूना बनेगा’
जिस जगह पर आज शाह सतनाम जी धाम है, किसी समय इस जगह पर बड़े-बड़े बालू रेत के टीले हुआ करते थे। एक बार पूजनीय बेपरवाह जी नेजिया खेडा स्थित आश्रम से वापिस सरसा की तरफ आ रहे थे उसी दौरान उन टीलों पर रुके और वचन फरमाए ‘‘इस जगह पर सचखंड का नमूना बनेगा, चारों तरफ बाग बहारें होंगी, नेजिया से शहर तक संगत ही संगत होगी। ऊपर से थाली फेंकें तो नीचे नही गिरेगी। संगत के सिरों पर ही रह जाएगी। रूहानी वचनों की सच्चाई आज सबके सामने हंै। पूज्य गुरु जी ने इस जगह पर शाह सतनाम जी धाम बनवाया। पूज्य गुरु जी ने यहां हर तरह के फल-फूल उगाये। जिनमें से कई पेड़-पौधे तो वैज्ञानिकों के अनुसार सिर्फ ठंडी जगह पर ही संभव है पर दरबार में सारे पोधे लहलहा रहे हैं। जिन्हें देखकर वैज्ञानिक भी हैरान हैं।
‘ऐसा समय आएगा जब हाथी पर चढ़कर दर्शन देंगे’
पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने शाह मस्ताना जी धाम में वचन फरमाए कि ‘हुन तां मौज तुहाड़े विच फिर रही है, फिर ऐसा समय आएगा जब हाथी पर चढ़े होंगे फिर भी दर्शन नहीं हुआ करेंगे। पूज्य गुरु जी की शाही स्टेज जिसकी ऊंचाई हाथी की ऊंचाई से भी ज्यादा है और सत्संग के समय पर पूज्य गुरु जी इस स्टेज को चलाकर साध-संगत को दर्शन देते हंै और कई सत्संगों में पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने हाथी पर सवार हो कर भी साध-संगत को दर्शनों से निहाल किया है।
‘जब तीसरी बाडी में आयेंगे,
तूफानी रूप में काम करेंगे,
एक बार एक सेवादार ने अर्ज कि सार्इं जी आप हमेशा तीसरी बाडी में आने की बात करते हो तो हमें कैसे पता चलेगा की तुंसी तीसरी बाडी में आए हो। इस पर पूजनीय बेपरवाह जी ने फरमाया ‘‘पुत्र जब सूरज चढ़ता है तो सबको पता चलता है। जब तीसरी बॉडी में आयेंगे, तूफानी रूप में काम करेंगे, सच्चे सौदे की चारों और रड़ मच जाएगी, तो समझना असीं ही आये हाँ। आज पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की रहनुमाई में साध-संगत पूरे विश्व में 135 मानवता भलाई के कार्य जोर शोर से कर रही है। मानवता भलाई कार्यों में अनेक रिकार्ड गिनीज बुक, एशिया बुक व इंडिया बुक आॅफ रिकार्डस में दर्ज हैं। रक्तदान करना, गरीब जरूरमंदों को मकान बनाकर देना, बेटियों की शादी करना, किन्नर समाज व वेश्याओं का उद्धार, वेश्यावृति में लिप्त युवतियों को अपनी बेटी बनाकर शुभदेवी का दर्जा देना जैसे महान कार्य पूज्य गुरु जी ने ही किए हैं।
पूज्य सार्इं जी का अनोखा नाम प्रचार
पहले इमारतें बनवाना और
फिर गिरवा देना
आप जी ने सबसे पहले डेरा सच्चा सौदा, सरसा का निर्माण करवाया। इसमें आप जी ने अति सुंदर इमारतें बनवाई और फिर अचानक इनको गिरवा दिया। आप जी ने अलग-अलग जगहों पर कई आश्रम बनवाए। इन आश्रमों में जाकर आपने सत्संग किए और लोगों को राम-नाम से जोड़ा। डेरा सच्चा सौदा गदराना, धूकांवाली तथा चोरमार आश्रमों को गिरवाकर आप जी ने इनका दोबारा निर्माण करवाया। इस प्रकार आप जी ने अपने अद्भुत खेल दिखाकर लोगों को नामदान दिया तथा कुल मालिक से जोड़ा।
सीआईडी अधिकारी का तोड़ा भ्रम, रूहानी ताकत देख हुए नतमस्तक
पूजनीय मस्ताना जी के खेल कोई समझ नहीं सकता। ऐसा ही एक करिश्मा तब हुआ जब सन् 1958 में पूजनीय सार्इं जी दिल्ली में किसी सत्संगी के निवास स्थान पर ठहरे हुए थे। यहां रात को रोज पूजनीय मस्ताना जी मजलिस भी करते। इस दौरान जब दिल्ली के सीआईडी विभाग को पता चला कि यहां एक मस्त फकीर आया हुआ है। जो सोना, चांदी, नोट बांटता है, मकान भी नए बनवाता है और गिरवाता है। ऐसा करने के लिए उसके पास पैसा कहां से आता है? उस राज का खुलासा होना चाहिए। अंतर्यामी सतगुरु जी ने शाम के समय एक सेवादार से कहा, ‘‘जाकर देखों टोकरी में कितने मालटे पड़े हैं?’’ उसने बताया कि पांच-छ: रखे हुए हैं। आप जी ने सेवादार को कहा, ‘‘दस माल्टे टोकरे में पूरे कर दो’’। रात को मजलिस में सीआईडी के 10 अधिकारी व कर्मचारी सादी वेशभूषा में साध-संगत के बीच अलग-अलग जगह बैठ गए। मजलिस शुरू हुई। पूजनीय मस्ताना जी थोड़ी देर बाद स्टेज पर पधारे और फरमाया कि साध-संगत जी आज मजलिस में सीआईडी के अधिकारी भी आए हुए हैं। वे बाहर के सीआईडी हंै, असीं अंदर के सीआईडी। ये सुनकर वे लोग चकित रह गए कि इनको कैसे मालूम हुआ, क्योंकि उनकी बात तो गोपनीय थी। पूजनीय मस्ताना जी ने कहा वरी! घबराओ न, अपना दोनों का महकमा एक ही है। असीं अपना कार्य करते हैं तुसीं अपना करो। तुमको माल्टा खिलाते हैं। सेवादारों से माल्टों वाली टोकरी मंगवाई और आप जी ने अपने पवित्र कर कमलों से सीआईडी वालों को अकेले-अकेले बुलाकर एक-एक माल्टा दिया। वहीं 10 माल्टे पूरे करने वाले सेवादार को भी समझ में आ गया कि सच्चे दाता जी ने पहले ही इतने माल्टे क्यों टोकरी में रखवाए थे। सीआईडी अधिकारियों व कर्मचारियों का भी भ्रम दूर हो गया और वे समझ गए कि ये
शाह मस्ताना जी कोई रूहानी ताकत है और यहां केवल रूहानियत का ही व्यपार होता है। अंत में पूजनीय सार्इं जी को धन-धन कहते हुए वे लोग वापिस चले गए।
बाबा जी! तो गंधों-ऊंटों को भी बूंदी खिलाते हैं| Beparwah Shah Mastana Ji Maharaj Avatar Day
खुद पहनते फटे कपड़े और सोना-चांदी लुटाते हैं। पूजनीय मस्ताना जी हमेशा गरीबी के वेश में रहते थे, जबकि साध-संगत में नोट, कपड़ा, सोना-चांदी बांटते रहते। कभी-कभी तो आश्रम का सामान बाहर निलवाकर साध-संगत में लूटा देते। आप जी सेवादारों की आपस में कुश्तियां करवाते रहते। हारने वाले को आप हीरा कहते। कई बार हारने वाले को जीतने वाले से दोगुना इनाम देते। इनाम में भी सोना-चांदी व रुपए दिए जाते। आप जी आश्रम के बाहर सफेद चादर बिछवा देते और उसके उपर बूंदी रखवा देते। ये बूंदी उन गधों, बैलों तथा ऊंटों को खिलाई जाती जो दरबार का सामान ढोते थे। ये देखकर लोग दंग रह जाते और कहते कि ये बाबा! तो गंधों ऊंटों को भी बूंदी खिलाते हैं। कई बार तो आप जी कुत्तों, बकरियों व गऊओं के शरीर पर नोटों के हार बंधवा कर उन्हें भगा देते। देखते ही देखते लोग नोट तोड़ने के लिए उनके पीछे भागते। लोगों को जब पता चलता कि कोई फकीर सोना-चांदी और पैसे लुटाता है तो लोग आश्रम में मस्ताना जी से मिलने चले आते।
उपले और लकड़ियां भी बेचते, ग्राहकों के साथ सतगुरु की चर्चा भी करते
डेरा सच्चा सौदा आश्रम में हक-हलाल की खाने पर ही जोर दिया जाता है। इसके लिए आश्रम के सभी सेवादार मिलकर कड़ी मेहनत करते हैं। एक बार पूजनीय मस्ताना जी महाराज ने गोबर के उपले बनवाए तथा उन्हें बाजार में बेचने का आदेश दिया। उपले एक नई जीप में भर दिए गए। उपले बेचने के लिए उन सेवादारों को जीप के साथ भेजा गया, जिन्होंने बढ़िया कपड़े व सोने के गहने पहने हुए थे। उन्होंने सरसा शहर की गलियों में आवाजें लगा-लगाकर उपले बेचे। इस प्रकार सुंदर कपड़ों में उपले बेचते सेवादारों को देखकर लोग आश्चर्य में पड़ जाते। आप जी सेवादारों को बाजार में लकड़ी बेचने के लिए भी भेजते। साथ में उनको एक रेडियो दे देते और फरमाते, शहर के चौक में बैठकर रेडियो बजाना और दो रुपए की लकड़ी आठ आने में बेचना। फिर लकड़ी खरीदने वालों के घर छोड़ के आना। आप जी के हुक्मानुसार सेवादार ऐसा ही करते। ग्राहकों को ये देखकर हैरानी होने लगी। उन्होंने पूछा आप ऐसा क्यों करते हो? सेवादार बताते कि डेरा सच्चा सौदा वाले पूजनीय मस्ताना जी महाराज का हुक्म है। इस तरह सेवादार लकड़ी छोड़ने के बहाने पूरे रास्ते सतगुरु की चर्चा करते जाते। सारे शहर में इस बात की खूब चर्चा होने लगी तथा लोग शाह मस्ताना जी महाराज के दर्शन करने आश्रम में आने लगे और राम नाम से जुड़ने लगे।
सार्इं जी खुद को कहा करते ‘गरीब मस्ताना’
रूहानी संत-पीर फकीर कभी अपने आप को बड़ा नहीं कहते। वे सदैव अपने को छोटा कहलवाते हैं। पूजनीय मस्ताना जी महाराज भी अपने आप को गरीब मस्ताना कहा करते। आप जी का सख्त हुक्म था कि उन्हें कोई भी बड़ाई वाले शब्दों से न बुलाए। यदि कोई व्यक्ति इस प्रकार का शब्द प्रयोग करता तो आप उस पर बहुत नाराज होते। एक बार तीन सेवादार आप जी को शाह मस्ताना शहनशाहों का शहनशाह कहकर चले गए। आप जी ने उनको थाने में पकड़वा दिया। बाद में सेवादार भेजकर उन्हें छुड़वा लिया। पुलिस अधिकारी ऐसा केस सुनकर बहुत प्रभावित हुए। वे आप जी के दर्शन करने के लिए डेरा सच्चा सौदा में आए। आप जी इस प्रकार के अद्भुत खेल खेलकर जीवों का भला करते।
18 अप्रैल 1960 को बदला चोला, ये हमारा ही रूप हैं
28 फरवरी 1960 को आप जी ने श्री जलालआणा साहिब के जैलदार पूज्य सरदार वरियाम सिंह जी व पूजनीय माता आसकौर जी के बेटे हरबंस सिंह जी को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर डेरा सच्चा सौदा की गुरगद्दी पर विराजमान किया और उन्हें रूहानियत व डेरा सच्चा सौदा की बागडोर सौंप दी। आप जी ने श्री जलालआणा साहिब के पूज्य हरबंस सिंह जी (पूज्य परम पिता शाह सतनाम जी महाराज का बचपन का नाम) को खुद खुदा के रूप में जाहिर कर दिया और खंडों-ब्रह्मंडों के मालिक को ‘शाह सतनाम सिंह’ जी पुकारा। आप जी ने परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की ओर इशारा करते हुए साध-संगत को वचन फरमाए, ‘‘चाहे तुम्हें कोई सोने के बर्तन बनवा दे, सोने की धरती बनवा दे या सोने की चारपाई बनवा दे, परन्तु तुमने किसी के पीछे नहीं लगना। हमने इनको आत्मा से परमात्मा किया है, सतगुरु बनाया है। ये हमारा ही रूप हैं। इनको हमसे भी बढ़कर समझना है।’’ डेरा सच्चा सौदा के उज्जवल भविष्य के बारे आप ने अनेक इलाही वचन फरमाए और 18 अप्रैल 1960 को चोला बदल लिया।
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