किसान कृष्ण कुमार ने बताया कि फसल की देखरेख, अच्छी पैदावार लेने के लिए उसने पड़ोसी राज्य के जिला फाजिल्कां से बलवंत सिंह व सुनील कुमार को 20 प्रतिशत बटाई पर रखा है, जिन्होंने कृषि विभाग रानियां से एचडीओ प्रोमिला के मार्गदर्शन में तरबूज (Watermelon Farming) की अच्छी पैदावार व गुणवता के लिए समय-समय पर जैविक खाद-उर्वरक, पानी, स्प्रै, निराई-गुड़ाई का कार्य किया।
सुनील कुमार खारियां। ग्रीष्म ऋतु के समय में बाजार में तरबूज की बहुत ज्यादा डिमांड रहती है। ऐसे में गर्मी के मौसम में किसानों के लिए तरबूज की खेती करना काफी फायदेमंद साबित हो सकती है। जो कम लागत में किसान को कुछ ही समय में लखपति बना सकती है। सरसा जिले के गांव खारियां निवासी कृष्ण कुमार कालड़ा ऐसे किसान हैं जो अल्प समय में तरबूज की खेती से लखपति बन गए।
बता दें कि कृष्ण कुमार करीब दो वर्ष पूर्व तक एक बिजनेसमैन थे, जो गांव में खुद के पैट्रोल पंप का संचालन करते थे। खुद की जमीन जायदाद के चलते कृष्ण कुमार ने पैट्रोल पंप बेच कर खेती करने की मन में ठानी, लेकिन पिछले वर्षों में कपास में आई गुलाबी सुड़ी ने लाखों रुपये का घाटा पहुंचा दिया। इसके बाद कृष्ण कुमार ने कपास की खेती छोड़कर कुछ अलग करने का मन बना लिया और मात्र छह महीने में तरबूज की खेती से आठ लाख की आमदनी हासिल कर ली।
ऐसे आया तरबूज की खेती का आईडिया || Watermelon Farming
कृष्ण कुमार बताते हैं कि उसके पास कृषि योग्य भूमी काफी है, जिसमें 20 प्रतिशत की हिस्सेदारी पर भूमिहीन किसानों से खेती का कार्य करवाता है। पिछले साल नरमा व कपास की फसल में आई गुलाबी सुंडी से उसे लाखों का नुकसान उठाना पड़ा। जिससे समाधान के लिए कुछ किसानों एकत्रित होकर एक सामूहिक बैठक में खेती के तरीकों, खर्चों, नए प्रयोगों व नई खेती पर मंथन किया।
उसी समय उन्हें क्षेत्र के तापमान, मिट्टी, पानी, बाजार की मांग व मौसम को ध्यान में रखते हुए तरबूज की खेती का आईडिया ध्यान में आया। जिसके बाद उसने तरबूज की खेती पर रिसर्च किया और कृषि विभाग रानियां से संपर्क कर खेती के तरीके, लगाने का उचित समय, खर्चा, आमदनी, मेहनत व मार्केट का विश्लेषण कर दो एकड़ में तरबूज की खेती करने का मन बनाया। कृष्ण कुमार के अनुसार, उसने मात्र दो लाख रूपए का रिस्क उठाकर आठ लाख रूपये की आमदनी हासिल की है।
कुछ इस तरह से तैयार होता है तरबूज
कृष्ण कुमार ने बताया कि तरबूज की खेती के लिए दोमट मिट्टी, नहर का पानी तथा गर्म मौसम की जरूरत होती है। उसने दो एकड़ में तरबूज की अच्छी पैदावार उठाने के लिए उन्नत किस्म का बीज चुना। दो एकड़ के लिए साढ़े 14 हजार रूपए खर्च कर 12,000 पौधों के बीजों को 40 दिन की क्लटीवेशन के लिए मांगेआना फार्म में रखा। दिसम्बर महीने के प्रथम सप्ताह में भूमि को सिंचाई व निराई-गुड़ाई करके तैयार किया और 4-4 फिट की मेड बनाकर उस पर प्लास्टिक की मलचिंग तथा पौधों को सर्दी से बचाने के लिए करीब 12 इंच ऊंची लॉ टनल बनाई गई, जिस पर 30 हजार रूपए खर्च आया। दिसम्बर के अन्तिम सप्ताह में पौधों की रोपाई करने के बाद ड्रिप के माध्यम से हर दस दिन बाद पानी व जरूरत अनुसार लिक्विड खुराक देने की प्रक्रिया जारी रही।
फरवरी के अन्त में बेलों पर फूल व फल की प्रक्रिया शुरू हो गई, जो अगले 20 दिनों में शहद की मिठास से भरपूर, लाल रंग तथा वजन में लगभग 5 से 7 किलोग्राम के फल तैयार होने लगे। किसान ने बताया कि दो एकड़ में लगे तरबूज के इस खेत तैयार करने से लेकर उत्पादन तक जिसमें लेबर, किराया व मंडी की दामी भी शामिल है, करीब 2 लाख रूपए खर्च आया। उसने बताया कि दो एकड़ में लगभग 1400 क्विंटल तरबूज की पैदावार हुई जिससे मार्केट रेट के अनुसार छह महीने में लगभग 8 लाख की आमदनी हुई। हालांकि गांव के नजदीक में बड़ा बाजार या मंडी ना होने के चलते तरबूज की सप्लाई या बिक्री करना बड़ा मुश्किल है।