सरसा। पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि इन्सान जब तक इन्सानियत से नहीं जुड़ता, तब तक परमपिता परमात्मा का रास्ता उसके अंत: करण से नहीं खिलता। अगर आप अपने अंदर उस रास्ते को महसूस करना चाहते हैं, परमपिता तक जाना चाहते हैं तो यह अति जरूरी है कि आप इन्सानियत को जिंदा रखें। इन्सानियत में दया, रहम वो गुण हैं, जो सबसे ज्यादा हैं। जब तक आदमी इन गुणों से गुणवान नहीं बनता, पूरा इन्सान नहीं बनता। पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि कई बार जब इन्सान को इन्सानियत का पाठ पढ़ाया जाता है, जैसे रूहानी जाम पिलाते हैं कि आपने 47 कार्य करने हैं, भले कर्म करने हैं, तो लोग कहते हैं कि आप ही इन्सां हो, हम क्या पशु हैं? पशु तो किसी को नहीं कहा जा सकता, सब आदमी ही हैं, लेकिन इन्सान के गुण जब मर जाते हैं, तो आदमी पशु से भी बदत्तर हो जाता है।
पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि इन्सान बनना इस कलियुग में कोई छोटी-मोटी बात नहीं है। आप किसी पर टोंट न कसो, किसी का दिल न दुखाओ। आप अपने बारे में सोचो, अपनी कमियों को दूर करो। जिनको दूसरों की कमियां गाने में मजा आता है, वो कभी मालिक के प्यारे नहीं होते। अगर आपको लगता है कि आप गुणवान हैं, लेकिन अगर आप अपने अंदर देखोगे तो पता चलेगा कि आपके अंदर भी अवगुण हैं। आप उन अवगुणों को दूसरों के सामने रखो, तब पता चलेगा कि आप कितने शक्तिशाली हैं। आप जी फरमाते हैं कि इन्सान को कभी भी किसी का बुरा नहीं करना चाहिए। ‘इसका बुरा हो जाए, इसके साथ गलत हो जाए’, इस तरह की बातें सोचना इन्सानी जिंदगी नहीं है, इन्सानियत नहीं है। यह तो पशुओं का काम होता है कि यह हमारा लीडर है, यह मरेगा तो मैं इसकी जगह आ जाऊंगा। मेरा कबिला हो जाएगा। आप तो इन्सान हैं, उनसे बहुत ऊपर हैं। इसलिए इन्सान को कभी किसी का बुरा नहीं सोचना चाहिए।
आप जी फरमाते हैं कि इन्सान को व्यवहार का सच्चा होना चाहिए। कभी ठगी, बेइमानी न करो, भ्रष्टाचार न करो। व्यावहारिक तौर पर ऐसा कोई कर्म न करो, जो मालिक को पसंद न हो, जो भक्त के लिए जायज न हो। अगर आप ये कर्म करते हैं कि हां, मैं किसी का दिल नहीं दुखाऊंगा, बुरे कर्म नहीं करूंगा, मेहनत की कमाई खाऊंगा, सुमिरन करूंगा, सत्संग सुनूंगा, अमल करूंगा, तो आपके अंदर इन्सानियत के गुण आ जाएंगे और आप मालिक के करीब होते चले जाएंगे।
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