-डॉ. सुशील कुमार सिंह वरिष्ठ लेखक व प्रशासनिक चिंतक
बीते 24 सितम्बर को अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और प्रधानमंत्री मोदी के साथ हुई पहली द्विपक्षीय बैठक से जो निहतार्थ सामने आए हैं उससे यह तय हो गया कि अमेरिका के साथ नए अध्याय का आरंभ एक बार फिर हो गया है। गौरतलब है राष्ट्रपति बाइडेन ने इस दौरान कहा कि मैंने 2006 में ही कहा था कि 2020 तक भारत-अमेरिका दुनिया के सबसे करीबी देश होंगे। इस दौरान दोनों देश के नेताओं ने कोविड-19 एवं जलवायु परिवर्तन और हिंद प्रशान्त सहित प्रथामिकता वाले कई मुद्दों पर चर्चा की।
जो बाइडेन का यह भी कहना है कि विश्व के दो सबसे बड़े लोकतन्त्र भारत एवं अमेरिका के बीच सम्बन्धों की नियति ही शक्तिशाली, मजबूत बनना और समीप आना है। स्पष्ट है कि अमेरिका भी भारत के साथ गर्मजोशी का रिश्ता रखना चाहता है हालांकि इसके भीतर की कई वजहें हैं। देखा जाय तो मोदी 2014 में पहली बार प्रधानमंत्री बनने के बाद से यह अमेरिका की सातवीं यात्रा है। अक्सर यह यात्रा सितम्बर माह में रही है, ऐसे में इसे सितम्बर यात्रा कहना कहीं अधिक समुचित प्रतीत होता है। प्रधानमंत्री मोदी ने भी राष्ट्रपति बाइडेन के साथ मुलाकात को असाधारण करार दिया और कहा है कि महत्त्वपूर्ण वैश्विक मुद्दों पर उनका नेतृत्व सराहनीय है। हमने चर्चा की कि किस प्रकार भारत और अमेरिका विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग बढ़ा सकते हैं।
जाहिर है प्रधानमंत्री मोदी की 22 से 25 सितम्बर की अमेरिकी यात्रा द्विपक्षीय मुलाकात के अलावा बदले वैश्विक परिदृश्य को देखते हुए बातचीत के स्तर को बड़ा बनाने का प्रयास इस दौरे की उपयोगिता और प्रासंगिकता रही है। दो टूक यह भी है कि विकसित देशों की बातें तो वैश्विक मंचों पर जोरदार तरीके से सामने आती रही हैं मगर विकासशील देशों की प्रखर आवाज मौजूदा समय में भारत बन चुका है। सुरक्षा परिषद् के सदस्य भी भारत की बातों को न केवल गम्भीरता से लेते हैं बल्कि उसके अनुपालन का प्रयास भी कमोबेश शामिल है। जलवायु परिवर्तन, विकास लक्ष्य, सबको सस्ती वैक्सीन की उपलब्धता, गरीबी उन्मूलन समेत महिला सशक्तिकरण व आतंकवाद जैसे तमाम मुद्दों पर भारत की राय काफी प्रशंसनीय रही है। इतना ही नहीं शान्ति मिशन और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में सुधार का प्रबल समर्थक भारत दुनिया में एक खास जगह रखता है। अमेरिका के इसी दौरे में क्वाड देशों के नेताओं की 24 सितम्बर को पहली मुलाकात हुई।
गौरतलब है कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन, प्रधानमंत्री मोदी, आॅस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन और जापान के योशिहिदे सुगा की व्हाइट हाउस में क्वाड के मंच पर बैठक हुई। जाहिर है यह भेंट चीन के लिये चिंता का सबब है। इतनी बड़ी वैश्विक एकजुटता रणनीतिक तौर पर चीन को बहुत कुछ सोचने के लिये मजबूर भी करेगी। खास यह भी है कि क्वाड सहयोगियों के साथ भारत टू-प्लस-टू की वार्ता पहले ही कर चुका था और सभी से उसके सकारात्मक सम्बंध हैं।
अफगानिस्तान की ताजा स्थिति के मद्देनजर बदली वैश्विक परिस्थितियों में प्रधानमंत्री का यह दौरा कहीं अधिक महत्वपूर्ण रहा। जो बाइडेन के साथ भारत-अमेरिका व्यापक वैश्विक रणनीतिक साझेदारी की समीक्षा और पारस्परिक हित के क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर विचारों के आदान-प्रदान होने की बात यात्रा से पहले ही प्रधानमंत्री कह चुके थे। अमेरिकी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस से मुलाकात के अलावा अमेरिका के टॉप 5 कम्पनियों के सीईओ के साथ बैठक और क्वाड देशों के मुखिया के साथ सामूहिक और द्विपक्षीय भेंट इस यात्रा के विवरण को कहीं अधिक प्रासंगिक स्वरूप दिया है। इतना ही नहीं यात्रा के अन्तिम दिन मोदी वांशिंगटन से न्यूयॉर्क की ओर प्रस्थान करने के बाद जहां संयुक्त राष्ट्र महासभा को सम्बोधित किया, वहीं दुनिया का ध्यान भी अपनी ओर आकर्षित किया।
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान के कश्मीर राग को भी करारा जवाब दिया जाना कहीं अधिक सराहनीय रहा। हालांकि यह जवाब राइट टू रिप्लाई के अधिकार के तहत दिया गया था। यहां बताते चले कि अफगानिस्तान की तालिबान सरकार ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के 76वें सत्र में भाग लेने के लिये संयुक्त राष्ट्र महासचिव को भी पत्र भी लिखा था। फिलहाल इस साल महासभा की डिबेट के केन्द्र में कोविड-19 महामारी के अलावा आर्थिक मंदी, आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन, अफगानिस्तान के ताजा हालात समेत कई मुद्दे देखे जा सकते हैं। दो टूक यह भी है कि विदेश मंत्री एस जयशंकर ने यूएन महासभा में तुर्की द्वारा कश्मीर मुद्दा उठाने पर करारा जवाब पहले ही दे दिया था। जाहिर है कश्मीर के बहाने जो देश भारत को लेकर अनाप-शनाप बयानबाजी करेंगे उनसे निपटने में भारत की रणनीति कहीं अधिक सक्षम और प्रबल रहेगी यह उसी की एक बानगी थी।
यहां स्पष्ट कर दें कि भारत अब दुनिया के मंच पर खुलकर बात करता है, ऐसे में क्वाड समेत तमाम देशों से द्विपक्षीय मामले में भारत की बातचीत राष्ट्रहित के अलावा वैश्विक हित को ही बल देगी। गौरतलब है कि अमेरिका जैसे देश भी भारत को कई अपेक्षाओं का केन्द्र समझते हैं। दक्षिण एशिया में शान्ति बहाली का एक मात्र जरिया भारत ही है। आसियान देशों में भारत का सम्मान, ब्रिक्स में उसकी उपादेयता और यूरोपीय देशों के साथ द्विपक्षीय बाजार और व्यापार समेत कई मुद्दों पर संदर्भ निहित बातें भारत की ताकत को न केवल बड़ा करती है बल्कि अपेक्षाओं से युक्त भी बनाती है। चीन के साथ अमेरिका की तनातनी और भारत की दुश्मनी एक ऐसे मोड़ पर है, जहां से भारत अमेरिका के लिये न केवल बड़ी उम्मीद है बल्कि एशियाई देशों में एक बड़ा बाजार और साझीदार है।
भले ही मोदी और बाइडेन के बीच व्यक्तिगत कैमिस्ट्री पहले से न रही हो। मगर हालिया मुलाकात से सबकुछ पटरी पर आ गया है। चीन द्वारा क्वाड समूह को शुरूआती दौर में ही दक्षिण एशिया के नाटो के रूप में सम्बोधित किया जाना उसकी चिंता का अंदाजा लगाया जा सकता है। उसका आरोप है कि उसे घेरने के लिये यह एक चतुष्पक्षीय सैन्य गठबंधन है, जो क्षेत्र की स्थिरता के लिये एक चुनौती उत्पन्न कर सकता है। गौरतलब है कि चीन क्वाड के शीर्ष नेतृत्व की बैठक और व्यापक सहयोग को लेकर पहले भी चिंता जाहिर कर चुका है। इसमें कोई शक नहीं कि क्वाड चीन के विरूद्ध एक गोलबंदी है, ऐसे में हिन्द प्रशान्त क्षेत्र में भारत की भूमिका बढ़ेगी और जिस मनसूबे के साथ क्वाड के देश आगे बढ़ने का इरादा रखते हैं, उससे चीन को संतुलित करने में यह काम आयेगा और दक्षिण-चीन सागर में उसके एकाधिकार को चोट भी पहुंचायी जा सकेगी।
कोविड-19 के शुरूआती दिनों में दवाई देकर भारत-अमेरिका समेत दुनिया के तमाम देशों की भलाई किया और अब इस साल की शुरूआत से अब तक 95 अन्य देशों और संयुक्त राष्ट्र शान्ति रक्षकों को टीके की खुराक उपलब्ध करायी। फिलहाल दुनिया भर में व्याप्त विभिन्न प्रकार की समस्याओं के बीच प्रधानमंत्री मोदी की इस यात्रा पर नैसर्गिक मित्र रूस समेत मध्य और पश्चिम एशियाई देशों के साथ दुनिया के तमाम देशों की भारत पर नजर जरूर रही होगी। जिसमें चीन और पाकिस्तान तो इसे टकटकी लगाकर देखे होंगे।
अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter, Instagram, LinkedIn , YouTube पर फॉलो करें।