Beetroot Cultivation: सलाद हो, सब्जी हो, रस हो या हलवा और रायता चुकंदर यानी बीटरूट से आप क्या नहीं बना सकते है। इसके गुण तो इतने हैं कि आयुर्वेदिक उपचारों से लेकर औद्योगिक क्षेत्र में भी इसका इस्तेमाल चीनी बनाने में होता है। चुकंदर की खेती(chukandar ki kheti) करके किसान भाई बंपर कमाई कर सकते हैं। इसका प्रयोग पूरे साल होता है इसलिए चुकंदर की खेती कैसे करें का यह लेख किसान भाई की आमदनी में इजाफा करने में सहायक है। तो आइए इस लेख के माध्यम से जानें beetroot cultivation यानी चुकंदर की खेती के बारे में। Beetroot Farming
चुकंदर का साइंटिफिक नाम है बीटा वल्गैरिस। यह एक कंदवर्गिय फसल है जो मूसला जड़ वनस्पति में आती है। इसका ऊपरी रंग गहरा लाल और ऊपर से जमुनी मतमेला होता है। चुकंदर यानी बीटरूट का स्वाद हल्का मीठा होता है। चुकंदर के अनेक स्वास्थ्यवर्धक लाभ होते हैं। इसी कारण इसे सुपरफूड भी कहा जाता है। इसे कच्चे यानी सलाद के रूप में खाना सबसे ज्यादा गुणकारी माना जाता है।
एक कप चुकंदर, यानी 136 ग्राम में
- 37% विटामिन बी
- 19 % मैंगनीज
- 11% कॉपर
- 7% विटामिन सी
- 6% आयरन
- 15% फाइबर
- 18% शुगर
- कार्बोहाइड्रेट्स
- प्रोटीन (कुछ मात्रा में)
आदि पाए जाते हैं। वीगन डाइट का प्रचलन आजकल बहुत अधिक है। चुकंदर का महत्व इसलिए और भी बढ़ गया है। इसका जूस कोलेस्ट्रोल, फैट और ग्लूटेन मुक्त होता है। चुकंदर में फाइटोन्यूट्रिएंट्स और एंटीऑक्सीडेंट्स पाए जाते हैं। सेहत पर चुकंदर का असर नीचे दिए बिंदुओ में है
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- रक्तचाप नियंत्रण में कारक
- स्फूर्ति बढ़ाए
- खून साफ करे
- एनीमिया में राहत दे
- लीवर को रखे सेहतमंद
- ह्रदय को स्वस्थ रखे
- आंखों की शक्ति बढ़ाए
एक शोध के अनुसार चुकंदर कैंसर रोधी भी माना गया है। इतने सारे गुणों को जानने के बाद आप यही सोच रहे होंगे कि चुकंदर की खेती कैसे करें और मुनाफा कमाएं। क्योंकि चुकंदर की कटाई के तुरंत बाद खेत में ही इसकी बिक्री हो जाया करती है। इसकी डिमांड के कारण विक्रेता इसे सीधा किसान से खरीद लेते हैं। आइए आगे के बिंदुओं में जाने की चुकंदर की खेती कैसे करें यानी beetroot cultivation के बारे में।
चुकंदर की खेती कहां होती है और कितना आता है खर्चा
भारत में चुकंदर की खेती उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, महाराष्ट्र, अरुणाचल प्रदेश, कर्नाटक और तमिल नाडु में की जाती है। भारत के कुछ अन्य राज्य भी, जहां उचित जलवायु है, कुछ काम मात्रा में चुकंदर की खेती करते हैं। दुनिया में रूस,फ्रांस और संयुक्त राज्य अमेरिका में इसकी सर्वाधिक खेती और पैदावार भी होती है।
भारत में चुकंदर की शुगर बीट किस्म भी उगाई जाती है जिससे शक्कर बनाई जाती है। पूरी दुनिया में 27% चीनी या शक्कर शुगर बीट से ही बनती है। चुकंदर की खेती में खर्चे बहुत न्यूनतम हैं। रखरखाव भी ज्यादा नहीं हैं क्योंकि इसे रोग कम लगता है और पानी भी काम लगता है। नीचे दी गई तालिका आपको चुकंदर की खेती के खर्चे के बारे में जानकारी देगी।
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खेत की तैयारी | 1500–2500 रु |
खाद | 3000–4000 रु |
उर्वरक | 800–1200 रु |
कीटनाशक | 500–800 रु |
मजदूरी (उगाई से कटाई तक) | 5000 रु |
बीज भाव | लगभग 5000 रु |
विविध खर्चे(अन्य) | लगभग 5000 रु |
चुकंदर की खेती के लिए मिट्टी और उचित जलवायु
भारत के उष्ण कटिबंधीय और उप – उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र इसकी खेती के लिए उपयुक्त हैं। चुकंदर की खेती के लिए शीतकाल उपयुक्त माना गया है। सितंबर से मार्च का समय भारत में चुकंदर की खेती के लिए उपयुक्त माना गया है। हालांकि हल्के गर्म प्रदेश में भी इसकी खेती की जाती है। यानी चुकंदर के विकास के लिए लगभग 20 डिग्री तापमान सही रहता है। चुकंदर की फसल की सबसे बड़ी खासियत यह है की इसे उगाने से मिट्टी और भी ज्यादा उपजाऊ हो जाती है। यह समय भी कम लेती है। इसी वजह से चुकंदर की खेती को खासी तवज्जो मिलती है।
चुकंदर की खेती के लिए
- दोमट मिट्टी
- बलुई मिट्टी
- भुरभुरी बलुई मिट्टी
- लवणीय मिट्टी
चुकंदर खेती बंजर जमीन में भी की गई है जिसके अनुकूल परिणाम मिले हैं। चुकंदर की खेती के दौरान खेती में पानी न भरे इसका ध्यान अवश्य रखें। जल भराव होने से फसल सड़ सकती है। अधिक वर्षा से beetroot cultivation को नुकसान पहुंचता है। इसकी खेती के लिए मिट्टी का pH का मान 6 से 7 के बीच होता है।
चुकंदर के बीज और बुवाई
चुकंदर की खेती कैसे करें की अगली कड़ी में सबसे महत्वपूर्ण यह पहलू है। बीजों का चुनाव करने से उत्तम फसल का उत्तपादन होने की गारंटी रहती है। बाजार में कई किस्म के बीज उपलब्ध हैं। किसान भाई अगर ऑर्गेनिक बीज लें तो सही है। भारत के कृषि अनुसंधान केंद्रों में चुकंदर के बीजों को तैयार किया जाता हैं। यह बीज उत्पादक होते ही हैं यह निश्चित किया जाता है। यहां हम कुछ प्रचलित बीजों के नाम दे रहें हैं जैसे कि
क्रिमसन ग्लॉब: यह गहरे लाल रंग का चुकंदर आकार में थोड़ा चपटा होता है। अंदर से यह गहरा लाल होता है यानी क्रिमसन जो इसके नाम में है। सबसे अधिक पैदावार इसी बीज से मानी जाती है। इसके पत्ते हरे और मेहरून रंग के होते हैं।
रूबी रानी: रूबी रानी या रूबी क्वीन को सलाद के रूप में ज्यादा प्रयोग में लिया जाता है। इसकी क्वालिटी अच्छी मानी जाती है। इसकी फसल साठ दिन में तैयार हो जाती है। नाम की तरह यानी रूबी रंग का यह चुकंदर 100 से 125 ग्राम का होता है।
- एम एस एच 102: इस किस्म को सबसे ज्यादा प्रयोग में लिया जाता है। इस चुकंदर की किस्म के पैदावार का समय लगभग 90 दिन रहता है। यह किस्म 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक का उत्पादन करने में सक्षम है।
- डेट्रॉयट डार्क रेड: चुकंदर की यह किस्म गहरे लाल रंग की होती है। इसके पत्ते थोड़े लंबे और हरे रंग के होते हैं। इस चुकंदर का आकार गोल होता है।
- मिस्र की क्रोस्बी: आपने कहीं कहीं चुकंदर के अंदर सफेद धारियां देखी होंगी। यह वही किस्म है। चुकंदर की। इस किस्म को जब थोड़ी गर्मी में पकाया जाता है तो इसमें सफेद धारियां हो जाती है। इसकी फसल 55 से 60 दिन के अंदर पक जाती है। इसका रंग गहरा लाल और जामुनी होता है।
- अर्ली वंडर: चुकंदर की इस किस्म में खूब ज्यादा मात्रा में पत्ते और टेंहनियां उगती हैं। इसके पत्ते हरे और टहनी लाल होती है। इसका आकार चपटा होता है और यह थोडा चिकना होता है।
चुकंदर की खेती का बहुत बड़ा फायदा उसका कम समय में खूब पैदावार होना। यह 2 से 3 महीने में तैयार भी हो जाती है।
चुकंदर के खेत की तैयारी एवं बुवाई
चुकंदर की खेती शुरू करने से पहले बीजों का चुनाव कर लें। उसके बाद। खेत को तैयार करें। अधिक और उत्तम फसल के लिए खेत को अच्छे से तैयार करना होगा। शुरुआत जुताई से करें। खेत को रोटावेटर और फिर कल्टीवेटर से अच्छे तरह जोत लें। इससे जो भी पुरानी फसल है या उसके अंश हैं सब निकल आएंगे।
बुवाई की विधियां:
मेड़ विधि– इस बुवाई की विधि में मेड़ बनाई जाती है। मेड़ों की दूरी लगभग 10 इंच होनी चाहिए। चुकंदर के बीज को आधा सेंटीमीटर के गढ़े में उगाया जाता है। चुकंदर की खेती के लिए बीज इस तरह उगाए जाते हैं के पौधों को दूरी तीन इंच तक की हो। बुवाई
छिटकवा विधि– बुवाई की इस विधि में प्रति हेक्टेयर चार किलो बीज लगते हैं। जैसा की नाम से जाहिर होता है इसमें बीजों का छिड़काव किया जाता है। इस विधि में क्यारियां बनाई जाती हैं और फिर बीज फेंके जाते हैं।
चुकंदर के खेत की सिंचाई
चुकंदर के खेत की पहली सिंचाई बीज रोपण के बाद की जाती है। दूसरी बार खेत की सिंचाई निराई गुड़ाई के बाद करी जाती है। चुकंदर एक रबी फसल है यानी सितंबर से मार्च के बीच की फसल। इसलिए chukandar ki kheti, करने की यही खासियत है कि इसमें ज्यादा सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती। चुकंदर की खेती ज्यादातर सर्दियों में की जाती है जिससे उसमे आवश्यक नमी बनी रहती है। इसीलिए पानी कम लगता है। ध्यान रखें की खेत की दोनों सिंचाइयो में तकरीबन 20 से 25 दिन का अंतराल होना चाहिए। अगर बारिश या नमी की कमी हो तो चुकंदर के खेत में दस दिन के अंतराल में सिंचाई करना सही रहता है। ध्यान रहे को खेत में पानी जमा न हो। इससे फसल सड़ने का खतरा रहता है।
चुकंदर के खेत में खरपतवार और उर्वरक प्रबंधन
खरपतवार किसी भी खेत को कमजोर कर देती है। नतीजन फसल खराब हो जाती है। निराई और गुड़ाई करके आप इन अनावश्यक उगाही को निष्कासित कर सकते हैं। आप बीस से पच्चीस दिन के अंतराल के बाद खरपतवार नियंत्रण कर सकते हैं। आप रसायनिक विधि से भी खरपतवार नियंत्रण कर सकते हैं। बीज रोपण करते ही पेंडीमैथाइलिन का छिड़काव कर सकते हैं।
उर्वरक प्रबंधन
हम आपको चुकंदर के खेत में जैविक खाद का उपयोग करने की सलाह देते हैं। जैविक खाद से मिट्टी का स्वास्थ सही बना रहता है।
तकरीबन एक एकड़ के चुकंदर के खेत के लिए आपको चाहिए–
- यूरिया 50 किलो
- डाई अमोनियम फॉस्फेट (डी ए पी) 70 किलो
- पोटाश 40 किलो
अगर खेत की मिट्टी में बोरोन न हो तो बोरैक्स मिला ले अन्यथा जड़ें कमजोर हो कर टूट सकती हैं। चुकंदर के खेत में रोग और निदान: चुकंदर के खेत में रोग लगने की संभावना कम ही रहती है। परंतु फिर भी किसान भाई दो बातों का ध्यान दें
- लीफ स्पॉट रोग: यह रोग चुकंदर के पत्तों को लग सकता है। इस रोग में पत्तियां सूख जाती हैं। इससे फसल पर बहुत प्रभाव पड़ता है। इसके रोकथाम के लिए एग्रिमाइसिन का छिड़काव चुकंदर के खेत पर करें। यह पत्तों को सुरक्षित रखेगा।
कीट आक्रमण: चुकंदर के खेत में कीट का आक्रमण भी हो सकता है। चूंकि चुकंदर के खेत में पत्तों की मात्रा अधिक होती है तो कीट रोग का खतरा भी अधिक होता है। कीट पत्तियों को खा कर उन्हे नष्ट कर देते हैं। इससे फसल पर भी असर पड़ता है। आप मेलाथियान का छिड़काव करके इससे अपना खेत बचा सकते हैं। चाहें तो कीट रोग से बचने के लिए एंडोसल्फान का भी प्रयोग कर सकते हैं।
चुकंदर के खेत की कटाई या खुदाई
चुकंदर की खेती लगभग 60 दिनों में तैयार हो जाती है। जब फसल के पत्ते कुछ पीले पड़ने लगें तो समझ जाएं कि चुकंदर को निकालने समय आ गया है। किसान भाई अपने चुकंदर के खेत में थोड़े पानी का छिड़काव करें। जिससे उनको चुकंदर को जमीन से निकालने में आसानी रहेगी। चुकंदर पर जमा मिट्टी को पानी से धो कर साफ़ कर लें। परंतु ध्यान रखें कि चुकंदर को गीला न पड़ा रहने दे। उसे छाया में सुखा दें। अब आपके चुकंदर आपको बंपर कमाई देने के लिए तैयार हैं।
आशा करते हैं कि चुकंदर की खेती कैसे करें का यह लेख आपको पसंद आया। चुकंदर का भाव प्रति किलोग्राम के हिसाब से 50 से 60 रुपए होता है। खेत के हिसाब से प्रति हेक्टेयर/ एकड़ में 180 से 300 क्विंटल चुकंदर की पैदावार प्राप्त होती है। यानी किसान भाई आराम से लाखों में कमा सकते हैं
- कम समय में
- न्यूनतम लागत में
- साधारण देखभाल से
दो से तीन महीने में आपको अपना चुकंदर का खेत कमाई दे सकता है। सबसे बड़ी बात की चुकंदर के साथ इसके पत्ते भी कमाई दिलवा सकते हैं। चुकंदर के पत्ते पशु चारे के रूप में बिकता है। किसान भाई अपने चुकंदर के खेत के पत्ते भी बाजार में चारे के रूप में बेच सकते हैं।
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