सरसा। पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि इन्सान उस परमपिता परमात्मा का जितना शुक्राना करे उतना कम है। अपनी जड़ों को कभी न भूलो। जो यह याद रखता है कि वो तो कुछ भी नहीं था, लेकिन परमपिता परमात्मा ने उसे क्या से क्या बना दिया और हमेशा बनता ही चला जाता है, कभी उसमें गिरावट नहीं आती। वहीं जिसके अंदर यह आ जाता है कि मैं कुछ बन गया हूं तो उसके बाद वो बनना बंद हो जाता है और गिरावट शुरू हो जाती है। पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि रूहानियत चीज ही ऐसी है, इसमें जो तैरने लग जाता है यानि अहंकार आ गया तो वो डूब जाता है और जिसमें दीनता, नम्रता आ गई तो मालिक उसे बाह पकड़ कर किनारे लगा देता है।
इसलिए दीनता नम्रता का पल्ला कभी न छोड़ो, सुमिरन करो, मालिक से सच्चा नाता जोड़ो, अपने अंत:करण की सफाई करो, मालिक की भक्ति-इबादत से अंत:करण की सफाई होती चली जाएगी और आप परमपिता परमात्मा की खुशियों के हकदार जरूर बन पाओगे। आप जी फरमाते हैं कि अपने विचारों का शुद्धिकरण करना बहुत बड़ी बात है। लोग कभी ये सोचते नहीं कि उनके अंदर कोई कमी है। हर कोई यही समझता है कि मैं तो प्रफैक्ट हूं, मैं तो सही हूं, मैं तो गलत हो ही नहीं सकता। ये काल की नगरी है ऐसा सोचना ठीक है, लेकिन यह नहीं हो सकता कि आपमें कोई कमी न हो, असंभव है। पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि अगर आपका दसवां द्वार खुला हो, मालिक के नूरी स्वरूप के दर्शन होते हों तो बात अलग है, तो संभव हो सकता है।
वरना हर इन्सान में कोई न कोई कमी है और जब वो अपनी कमियों की तौबा करता है, सच्चे दिल से, सच्ची भावना से और सुमिरन करे, भक्ति करे तो मालिक के नजारे लूटने शुरू कर देता है। इसलिए दीनता नम्रता रखो, भावना शुद्ध रखो, सेवा सुमिरन करते रहो यकीनन मालिक के नजारे मिलेंगे। वो नजारे जिसकी कभी कल्पना नहीं की, वो खुशियां जो आपने कभी सोची नहीं वो परमानंद जो लिखा हुआ तो मिलता है, लेकिन जब महसूस कर लिया जाता है तो बताया नहीं जा सकता। उस परमानंद को महसूस करने के लिए सुमिरन अति जरूरी है और कोई तरीका नहीं है। सुमिरन कीजिए, सेवा कीजिए, वचनों पर पक्के रहिए यकीनन परमानंद मिलेगा।
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