बैंक किसी भी देश की अर्थव्यवस्था का अहम हिस्सा होता है। बैंक एक ऐसी जगह है जहां आम लोग अपनी छोटी-बड़ी बचत करते हैं और भविष्य के हिसाब से योजनाएं बनाते हैं। लेकिन देश में आए दिन बैंक घोटालों के मामले सामने आते रहते हैं, ऐसे में सोचिए कि आपकी सेविंग बैंक में जमा हो और अचानक बैंक डूब जाए और आपका पैसा खत्म। ऐसी स्थिति में एक आम व्यक्ति या मध्यम वर्गीय परिवार की मनोदशा पर क्या प्रभाव पड़ेगा। खैर, ऐसी स्थिति बैंकिंग व्यवस्था के चरमराने की वजह से होती है। पिछले दिनों देश में बैंक धोखाधड़ी का एक और सबसे बड़ा मामला सामने आया है। यह घोटाला करीब 23 हजार करोड़ रुपये का है। इस घोटाले के लिए गुजरात के एबीजी शिपयार्ड कंपनी और उसकी सहयोगी कंपनी को जिम्मेदार ठहराया गया है।
शिपयार्ड कंपनी ने देश के अलग-अलग 28 बैंकों से कारोबार के नाम पर 2012 से 2017 के बीच कुल 28,842 करोड़ रुपए का ऋण लिया था। इनमें एसबीआई, आईसीआईसीआई, आईडीबीआई, बैंक आॅफ बड़ौदा, बैंक आॅफ इंडिया और पंजाब नेशनल बैंक भी शामिल हैं। सवाल है कि इन 28 बैंकों में से कितने बैंक दिवालिया हो सकते हैं और आम जमाकर्ता के पैसे पर क्या असर पड़ सकता है? जाहिर है, यह सब कोई अचानक या दो-चार दिनों में नहीं हुआ होगा। यह सच है कि बैंकिंग कारोबार में फर्जीवाड़े की घटनाएं घटित होती रहती हैं। भारत ही नहीं,वैश्विक स्तर पर भी बैंकों में धोखाधड़ी की घटनाएं घटती रहती हैं। लेकिन जिस तरह से निजी बैंक या सहकारी बैंक लगातार असफल हो रहे हैं,उससे नियामक की भूमिका पर भी सवाल उठने स्वाभाविक हैं। इसमें दो राय नहीं है कि बैंकिंग नियामक निजी और सहकारी बैंकों के कामकाज पर पैनी निगरानी रखने में असफल रहा है।
क्योंकि बड़े लोन एडवांस में धोखाधड़ी करना आसान नहीं होता और फिर भी ये होते हैं क्योंकि बैंक के अधिकारी लेनदारों या कभी-कभी तीसरे पक्ष जैसे कि वकीलों या चार्टर्ड एकाउंटेंट तक के साथ सांठगांठ कर लेते हैं। चिंतनीय स्थिति यह है कि देश में निजी क्षेत्र की बजाए सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की स्थिति बेहद दयनीय है। बैंकों में बढ़ते धोखाधड़ी के मामले निश्चित रूप से बैंकिंग व्यवस्था की कमजोरी को उजागर कर रहे हैं। बैंकों में आॅडिट के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति और लीपापोती ही होती रही। यह ठीक है कि बैंकों में धोखाधड़ी की बढ़ती घटनाओं को रोकने के लिए सरकार ने व्यापक उपाय किए हैं, फिर भी धोखेबाजों को रोक पाने के लिए ये उपाय अपर्याप्त हैं। साल दर साल धोखाधड़ी के मामले बढ़ रहे हैं,साथ ही इस कारण होने वाला नुकसान भी बढ़ रहा है। इससे बैंकों के सिर पर स्थायित्व कम होने का खतरा भी बढ़ रहा है। वहीं आम लोगों का भरोसा भी बैंकों से टूट रहा है।
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