‘आओ बनारसी दास तुम्हें अंगूठी पहनाते हैं : अपने मुर्शिद की अनमोल दात को आज भी संभालकर रखे हुए 90 वर्षीय बनारसी दास इन्सां
ओढां, राजू।
डेरा सच्चा सौदा के पूजनीय परमपिता शाह सतनाम जी महाराज ने साध-संगत पर अपार खुशियां लुटाई। पूजनीय परमपिता जी के पवित्र वचन तीसरी बॉडी में आज भी हू-ब-हू पूरे हो रहे हैं। पूजनीय परमपिता जी जब सेवादारों को बल्ले-बल्ले शावा-शावा कहकर पुकारते तो सेवादार खुशी से झूम उठते। अपने मुर्शिद से सेवादार प्रेम निशानियां पाकर खुद को भाग्यशाली समझते। इन प्रेम निशानियों को आज भी पुराने सेवादार सहेजकर रखे हुए हैं। सरसा जिला के ब्लॉक श्री जलालआणा साहिब के मंडी कालांवाली निवासी 90 वर्षीय बनारसी दास इन्सां आज भी पूजनीय परमपिता जी द्वारा प्रदान की गई अनमोल दात को हमेशा अपने सीने से लगाकर रखते हैं। इस शख्स से जब पूजनीय परमपिता जी की रुहानी यादों के बारे पूछा गया तो उसने सबसे पहले उन्होंने वो प्रेम निशानी दिखाई जो पूजनीय परमपिता जी ने उन्हें अपने पास बुलाकर अपने हाथों से पहनाई।
बनारसी दास ने बताया कि मेरा जन्म पाकिस्तान के जिला गुजरांवाला के गाँव तलवंडी खजूरवाली में हुआ। मेरे पिता जवाहर मल मजदूरी करते थे। सन् 1947 में जब भारत-पाकिस्तान का बंटवारा हुआ था तो मेरी उम्र 14 वर्ष की थी और मैं छठी कक्षा में पढ़ता था। मुझे आज भी याद है कि बंटवारे के वक्त सैनिक हमारे घर में आए और मेरे पिता से पूछा कि उन्होंने यहीं रहना है या हिन्दुस्तान जाना है। अगर जाना है तो ट्रक में बैठ जाइए। जिसके बाद मैं, मेरे पिता श्री जवाहरमल, माँ इशर कौर, भाई करतार चंद, बहन कौशल्या, अमर कौर, तेज कौर व शीला देवी सहित हम सभी 8 सदस्य ट्रक में सवार हो गए। जिसके बाद हमें वहां से वजीराबाद कैंप में ले आए।
वहां पहले से काफी हिन्दू मौजूद थे। बनारसी दास ने बताया कि वहां 2 रोज रहने के बाद हम सभी लोगों को रेलगाड़ी में भरकर लाहौर लाया गया। जहां भी कैंपस था, जिसमें पहले से ही काफी हिन्दू ठहरे हुए थे। वहां 2 रोज रुकने के बाद हमें मिलिट्री के ट्रकों द्वारा अमृतसर लाया गया। वहां पर धर्मार्थी लोगों द्वारा लंगर लगाया गया था। हमें वहां छोड़ दिया गया। जिसके बाद हम जालंधर आ गए, जहां एक माह तक एक मुस्लिम व्यक्ति के खाली पड़े मकान में रुके रहे। उधर बठिंडा में रहने वाले हमारे रिश्तेदार हमें ढूंढते-ढूंढते जालंधर आ गए। वहां से वे लोग हमें अपने साथ ले आए। बनारसी दास ने बताया कि हमारा परिवार बंटवारे के बाद से सन् 1955 तक बठिंडा में रहा। जहां एक वर्ष बाद मेरी माँ का इंतकाल हो गया। जिसके बाद मेरी शादी विद्या रानी से हुई। मुझे टेलीफोन विभाग में लाइनमैन की नौकरी मिल गई। उस वक्त मुझे वेतन के रूप में प्रतिमाह 75 रुपये मिलते थे। जहां से मेरा तबादला टोहाना, रामा व कालांवाली में होता रहा। मेरे पिता का इंतकाल सन् 1970 में बठिंडा में हो गया था। बनारसी दास का परिवार मौजूदा समय में मंडी कालांवाली में रहता है। उनकी पत्नी का इंतकाल हो चुका है। उनके परिवार में 2 बेटे व पुत्रवधू तथा 2 बेटियां हैं।
ऐसे हुई मुर्शिद के प्रति तड़प उत्पन्न
बनारसी दास ने बताया कि मेरा नौकरी के दौरान पोस्ट आॅफिस में आना-जाना रहता था। जहां गाँव दादू निवासी राजाराम आॅफिस में नौकरी करता था जोकि डेरा सच्चा सौदा का अनुयायी था। वह जब भी मुझसे मिलता तो हमेशा डेरे की चर्चा करता। धीरे-धीरे मेरी डेरे में ऐसी रुचि उत्पन्न हुई कि मेरे दिल में पूजनीय परमपिता शाह सतनाम जी महाराज के दर्शन करने के लिए तड़प पैदा हुई। एक दिन मैं अकेला ही सरसा में शाह मस्ताना जी धाम में पहुंच गया। उस दिन महीने का आखिरी शनिवार था। उस समय दोपहर का व रात का सत्संग होना था, इसलिए मैं वहीं रुक गया।
आपको डेरे बारे किसने बताया:-
बनारसी दास ने बताया कि अगस्त 1964 में मुझे पहली बार पूजनीय परमपिता जी से बात करने का सुअवसर मिला। उस समय परमपिता जी छत पर बैठे थे। गाँव दादू निवासी सुबेदार प्रेमी चतिन सिंह सेवा पर खड़े थे। मैंने उनसे पूजनीय परमपिता जी से मिलवाने की विनती की तो उन्होंने मुझे मिलवा दिया। मैं पूजनीय परमपिता जी के चरणों में बैठ गया। पूजनीय परमपिता जी मुझसे बोले कि ‘आप क्या काम करते हैं’। जिस पर मैंने कहा कि ‘जी मैं टेलीफोन विभाग में हूं’। फिर पूजनीय परमपिता जी ने फरमाया कि ‘आपको डेरे बारे किसने बताया’। जिस पर मैंने पोस्ट आॅफिस में काम करने वाले प्रेमी राजाराम का नाम लिया। फिर पूजनीय परमपिता जी ने फरमाया कि ‘शनिवार रात व रविवार सुबह का सत्संग है। उसके बाद आपको नाम मिलेगा’। दूसरे दिन रविवार सुबह 4 बजे मुझे नाम शब्द की अनमोल दात प्राप्त हुई। पूजनीय हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने जब रुहानी जाम शुरू किया था तो बनारसी दास जाम पी कर ‘इन्सां’ बने।
बावजी आप देखना जरा:-
बनारसी दास के मुताबिक एक बार गाँव जगमालवाली में पूजनीय परमपिता जी का सत्संग था। इसी दौरान बीच में स्पीकर बंद हो गया। सेवादारों ने काफी कोशिश की, लेकिन वह चला नहीं। जिसके बाद पूजनीय परमपिता जी ने मुझे कहा कि ‘बावजी आप जरा देखना’। जब मैं खड़ा हुआ तो इसी दौरान स्पीकार चल पड़ा। पूजनीय परमपिता जी द्वारा मुझे दिए गए ‘बावजी’ नाम के बाद सभी लोग मुझे इसी नाम से पुकारते हैं।
आओ बनारसी दास तुम्हें अंगूठी पहनाते हैं :-
बनारसी दास ने बताया कि सन् 1970 की बात है। उस समय शाह मस्ताना जी धाम सरसा में रात का सत्संग था। उस समय पूजनीय परमपिता जी ने फरमाया कि ‘आओ बनारसी दास तुम्हें अंगूठी पहनाते हैं’। पूजनीय परमपिता जी ने अपने पावन कर कमलों से जब मुझे चांदी की अंगूठी पहनाई तो मुझे यूं लगा कि जिस तरह पूरी दुनिया की खुशी मुझे ही मिल गर्इं। मुर्शिद की ये प्रेम निशानी पाकर मेरे धरती पर पैर नहीं पड़ रहे थे। बनारसी दास ने ये अंगूठी आज भी अपने मुर्शिद की प्रेम निशानी के रूप में अपनी अंगुली में पहन रखी है।
जब परमपिता जी ने टिकाए मुबारक चरण :-
बनारसी दास ने बताया कि मैंने 1975 में कालांवाली में मकान बनाया था। उस समय कालांवाली में पूजनीय परमपिता जी का सत्संग था। मैंने सुबेदार चतिन सिंह से अर्ज की कि वे परमपिता जी को मेरे घर में मुबारक चरण टिकाने की अर्ज कर दें। जिसके बाद चतिन सिंह की मार्फत पूजनीय परमपिता जी ने मेरी अर्जी स्वीकार कर ली और मेरे घर चरण टिकाए। पूजनीय परमपिता जी ने मेरे परिवार को अपने पावन आशीर्वाद से नवाजते हुए सभी का हालचाल पूछा। बनारसी दास इन्सां ने अपने घर का वो कमरा भी दिखाया जिसमें पूजनीय परमपिता जी ने कुर्सी पर बैठकर चाय पी थी। बनारसी दास ने उक्त कमरे को आज भी अपने मुर्शिद की याद के रूप में ज्यों का त्यों रखा हुआ है। कितनी ही बरसात आई, लेकिन इस कमरे से कभी पानी तक नहीं टपका।
बस यही इच्छा है सतगुरु से ओड़ निभ जाए
बनारसी दास इन्सां वैसे तो वर्ष 1980 से डेरा सच्चा सौदा में सामान समिति में सेवा करते रहे, लेकिन वर्ष 1991 में टेलीफोन विभाग से सेवानिवृत्त होने के बाद उन्होंने साप्ताहिक पक्की सेवा ले ली। उनकी उम्र इस समय 90 वर्ष की हो चुकी है। देखने वाले को ये नहीं लगता कि इनकी उम्र इतनी हो चुकी है। वे पिछले करीब 43 वर्षों से सामान समिति में सेवा कर रहे हैं। बनारसी दास इन्सां ने कहा कि पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने जो रहमतें बख्श रखी हैं उनको बयान नहीं किया जा सकता। अब तो यही इच्छा है कि मेरी सतगुरु से ओड़ निभ जाए। बनारसी दास इन्सां का पूरा परिवार डेरा सच्चा सौदा में अटूट आस्था रखता है।
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