मुंबई में एक रेलवे स्टेशन के पुल पर भगदड़ से 27 मौतें होना दु:खद हादसा है। भले ही रेलवे व राज्य सरकार ने मृतकों के परिवारों के लिए आर्थिक सहायता की घोषणा कर दी है लेकिन हादसे ने जो गहरे घाव दिए हैं उसे अब समय ही भर सकता है। दरअसल हादसे का कारण संतुलित विकास न होना है। देश में कुछ प्रोजेक्ट ऐसे चल रहे हैं जहां हजारों करोड़ों रुपए खर्च किए जाने हैं। यह महंगे प्रोजैक्ट भी जरूरी हैं लेकिन दूसरी तरफ भी ध्यान देना जरूरी है, जहां हालात दर्दनाक बने हुए हैं। मुंबई का यह पुल बहुत पुराना था जबकि पुल की मियाद मुताबिक जनसंख्या बहुत ज्यादा बढ़ चुकी है। शिवसेना ने दो साल पहले भी पूर्व रेल मंत्री सुरेश प्रभु को पत्र लिखकर पुल चौड़ा करने की मांग की। रेल मंत्री ने अनुदान की कमी की दुहाई देते हुए खुद को इस काम के लिए बेबस बताया है।
पुल कोई इतना बड़ा प्रोजेक्ट नहीं था। कुछ करोड़ों की ही मार थी। केंद्र सरकार ने देश में कई जगह लंबे चौड़े पुलों पर सुरंगों का निर्माण किया, जिन पर हजारों करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं, लेकिन देश में मुंबई की तरह सैकड़ों पुराने पुल हैं जहां बहुत भीड़ रहती है। विशेष तौर पर एशिया के सबसे बड़े रेल जंक्शन भटिंडा में भीड़ बढ़ने के कारण यहां का ओवरब्रिज बहुत छोटा पड़ गया है। यहां यात्री पुल की सीढ़ियों से पहले कतारों में लगते नजर आते हैं। मुंबई के हादसे से सबक लेकर भटिंडा व अन्य शहरों में पुल चौड़े करने चाहिए। अनुदान की कमी उस समय बेतुकी बात लगती है, जब देश में और स्थानों पर बड़े-बड़े प्रोजेक्ट चल रहे हों। मानव रहित फाटकों की समस्या भी पिछले 70 सालों से अनुदान की कमी के कारण लटक रही है।
जब सरकार रेल को हाईटेक करने की बात करती है, तंग व पुराने पुल और मानव रहित फाटक सरकार की नीतियों और कार्यशैली पर सवाल उठाते हैं। कोई भी काम हादसों के इंतजार के बिना होना चाहिए। देरी नुकसानदेय है। विश्व की सबसे बड़ी चौथी अर्थव्यवस्था वाले देश में अनुदान की कमी के कारण लोगों का आए दिन रहना, वह भी तब, जब दुर्घटना सरकार की लापरवाही से घटित हुई हो, चिंता का विषय है। सरकार प्रत्येक क्षेत्र को बराबर पहल दे।