नाभा जेल में डेरा श्रद्धालु महेन्द्रपाल बिट्टू की हत्या ने एक बार फिर जेल सुरक्षा प्रबंधों की पोल खोल दी है। महेन्द्रपाल को कथित तौर पर बेअदबी करने के मामले में गिरफ्तार कर हाई सिक्योरिटी जोन में रखा गया था। सवाल यह उठता है कि इसके बावजूद हमलावर बिट्टू तक कैसे पहुंचे? और किस तरह उनके हाथों में लोहे की रॉड पहुंची? यह सवाल जेल प्रशासन की न केवल लापरवाही है बल्कि किसी साजिश का संदेह भी पैदा करती है। जेल परिसर में लगे सूचना बोर्ड पर कई हिदायतें लिखी रहती हैं जिनमें चाकू से लेकर नुकीले हथियार ले जाने पर पाबंदी होती है
। यहां तक कि कोई व्यक्ति छोटा सा डंडा भी नहीं ले जा सकता। फिर निर्माण कार्यों के लिए लोहे के सरिया को कैदियों की पहुंच से दूर क्यों नहीं रखा गया। यह बेहद दुख की बात है कि सरकारें किसी घटना से सीख नहीं ले रही। वर्ष 2016 में नाभा में भी प्रदेश की इस सबसे सुरक्षित जेल पर गैगस्टरों ने हमला कर अपने साथियों को छुड़वा लिया था। उस वक्त कांग्रेस ने अकाली-भाजपा सरकार पर जेल प्रबंधों को लेकर खूब निशाने साधे थे। आज कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में भी जेलों में नशा व मोबाइल फोन मिलना व हिंसक घटनाएं निरंतर जारी हैं। दरअसल पंजाब का जेल प्रशासन साजिशें रचने के लिए पहले से ही चर्चित था।
अभी दो माह पूर्व पटियाला जेल में गैंगस्टरों व जेल अधिकारियों की मिलीभुगत के मामले का पर्दाफाश हुआ था, जिसमें जेल अधिकारी कुछ गैंगस्टरों व अमीर कैदियों से मारपीट करवाकर लाखों रुपए की वसूली करते थे। जब सच सामने आया तब गृह विभाग ने सैंट्रल जेल पटियाला के दो सहायक सुपरीडेंट व एक हैड-वार्डन को निलंबित किया। यह कहने में कोई दो राय नहीं कि जेलें कुछ भ्रष्ट अधिकारियों व नशा तस्करों के लिए सोने के अंडा देने वाली मुर्गी बन गई हैं। सरकार को ऐसे मामलों में गंभीरता दिखानी चाहिए। मामले की तह तक जाकर जांच करनी चाहिए। कैदियों व हवालाती की सुरक्षा के लिए कदम उठाए जाएं। इस बात में जरा भी संदेह नहीं है कि महेन्द्रपाल बिट्टू मामले में जेल प्रशासन की नाकामी किसी साजिश का हिस्सा है, इसकी निष्पक्ष से जांच होनी चाहिए।
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