सरसा (सकब)। पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि इन्सान को जैसी आदत पड़ जाती है तो उसे छोड़ना बहुत बड़ी बात होती है। मन जैसी भी बात एक बार पकड़ लेता है तो इन्सान को उन्हीं ख्यालों में सारी उम्र लगाकर रखता है। परन्तु अपनी आदतों की वजह से इन्सान को बहुत बार संसार में शर्मिंदा होना पड़ता है और वह अल्लाह, मालिक से दूर हो जाता है।
पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि इन्सान के अंदर (Bad habits) बुरी आदतें होती हैं और यह हो नहीं सकता कि सत्संगी को यह मालूम न हो कि उसके अंदर क्या बुरा है, क्या सही? और अंदर से उसका जमीर, उसका सतगुरु आवाज न दे कि अब तू सही कर रहा है और अब तू गलत कर रहा है। 100 प्रतिशत मालिक अंदर से ख्याल देता है। यह बात अलग है कि लोग अपने जमीर की आवाज को दबा देते हैं। इन्सान ऐसा नहीं करता तो उसे पूरी खुशियां भी नहीं मिलती। फिर इन्सान रोता, तड़पता है। इसलिए भाई! अपने अंदर निगाह मारो। आपके अंदर छोड़ने वाली चीज है आपके अवगुण, बुराइयां।
इन्सान को दूसरों की बजाए अपने अंदर की बुराइयों, अवगुणों को देखना चाहिए
पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि इन्सान को दूसरों की बजाए अपने अंदर की बुराइयों, अवगुणों को देखना चाहिए और दूसरों के अंदर गुण देखने चाहिए, क्योंकि जो आप बाहर से देखते हो वो आपके अंदर आता है और जो अंदर देखते हो वो चला जाता है। इसलिए अंदर की बुराइयों को देखो ताकि वो बुराइयां निकल जाएं। अगर आप अपने गुणों पर इतराने लगे, मान-बढ़ाई करने लगे तो वो गुण चले जाएंगे, क्योंकि आप अहंकार में आ जाएंगे। इसलिए अपने अंदर की बुराइयों पर निगाह मारो। बुराइयों को निकाल दो और दूसरों के गुणों को ग्रहण कर लो।
पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि संत, पीर-फकीर जीव को बार-बार समझाते हैं। संत कभी किसी का बुरा नहीं कर सकते। यह अलग बात है कि दुनिया वाले चाहे कुछ भी कहते फिरें, लेकिन सच्चा संत, पीर-फकीर परमार्थ के लिए आता है। ‘तरुवर फल नहीं खात है, सरवर पीव न नीर, परमार्थ के कारणे, संतन भयो शरीर’ कि संत कोई भी गतिविधि करते हैं, उसमें उनका कोई स्वार्थ नहीं होता। जिस प्रकार पेड़ अपने फल खुद नहीं खाता। समुद्र अपना पानी खुद नहीं पीता। उसी तरह संत जो भी वचन करते हैं, कहीं भी जाते हैं, कुछ भी करते हैं उसमें कोई न कोई राज छुपा होता है। जनकल्याण, समाज के सुधार के लिए संत सत्संगें लगाते हैं, मालिक के नाम की चर्चा करते हैं।
वचनों को सुनो और अमल करो
इसलिए संतों के वचनों को अनदेखा न करो बल्कि वचनों को सुनो और अमल करो, क्योंकि जो लोग सुनकर अमल कर लेते हैं वो मालिक की कृपा-दृष्टि के काबिल बन जाते हैं। मालिक की कृपा-दृष्टि के काबिल बनने से क्या होता है, इस बारे में पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि मालिक की कृपा-दृष्टि के काबिल बनने से इन्सान के अंदर एक अलग सरूर, नशा आता है और चेहरे पर मालिक का नूर आता है। आदमी बेनूर, बेजार, बेचैन नहीं होता, क्योंकि उसका मालिक तो हर समय उसके अंदर रहता है और जैसे ही राम-नाम से, अच्छे-नेक कामों से जुड़ता है तो मालिक का वो नाम अंदर से धुनकारें देता हुआ उसे बेइन्तहा खुशियों से लबरेज कर देता है।
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