विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दुनिया को सचेत कर दिया है कि अगर कोरोना वायरस किसी जैविक युद्ध की आहट है तब यह बहुत भयानक स्थिति है। दुनिया के शक्तिशाली देशों को अपने राजनीतिक, आर्थिक मतभेदों को भूलकर जैविक युद्ध तक जाने से बचने के रास्तों पर चलना होगा। उन कारणों पर तेजी से काम करना होगा जो विश्व को जैविक युद्ध के रूप में चौथे विश्व युद्ध की ओर धकेल रहे हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने क्यों ऐसी चिंताए व्यक्त की हैं? वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए क्यों यह डर बढ़ रहा है कि शक्तिशाली देश गलत दिशा की ओर बढ़ रहे हैं? इस पर तीन घटनाएं बहुत महत्वपूर्ण हैं जो कोरोना की महामारी के दौरान चर्चित हैं। पहला चीन का वुहान यूनिवर्सिटी का वायरोलॉजी डिपार्टमेंट एवं वहां की गतिविधियां, जो चीनी सेंसरशिप एवं कठोर गुप्त सुरक्षा से छन-छन कर बाकी दुनिया तक पहुंच रही हैं। दूसरा अमेरिका द्वारा गिरफ्तार चार्ल्स लाइबेर केमिकल बायोलॉजी प्रोफेसर जो मोटी फंडिंग मिलने पर चीन की एक यूनिवर्सिटी को अपनी सेवाएं दे चुका है एवं तीसरा कारण डोनाल्ड ट्रंप द्वारा शुरूआत में कोरोना को चीनी वायरस कहना जिस पर चीन द्वारा एतराज जताना और विश्व स्वास्थ्य संगठन पर डोनाल्ड ट्रंप के आरोप कि वह चीन के प्रभाव में काम कर रहा है, जिसके चलते अमेरिका विश्व स्वास्थ्य संगठन को अपना योगदान तथा आर्थिक मदद देने से हाथ खींच लेने की चेतावनी दे चुका है।
गलतियां विश्व स्वास्थ्य संगठन की भी रही है जिसने पहले ब्यान जारी किया कि कोरोना मानव से मानव को छूने से नहीं फैलता जबकि ताईवान इस बात को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन को आगाह कर चुका था। फिर भी विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ताईवान के दावों की पुष्टि नहीं करवाई उल्टे विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अमेरिका को गलत कहा, ताईवान की बात सुनकर अमेरिका ने अपना हवाई यातायात रोक दिया था। निश्चित रूप से विश्व की महाशक्तियां दुनिया से कुछ ऐसा छुपा रही हैं जोकि बहुत भयानक है। यह उम्मीद की जानी चाहिए कि भारत व इसकी सुरक्षा एजेसियां इस बात से सक्रिय हो गई होंगी कि दुनिया अगर जैविक युद्ध के दौर में प्रवेश कर चुकी है तो वह पारंपरिक सेना, जल, थल, वायु के साथ ही अब आयूष सेना भी तैयार कर ले। क्योंकि अगली लड़ाई अब शायद हस्पतालों में लड़ी जाएगी जिसके लिए एंटी बैलेस्टिक मिसाईल हमारे आईसीयू, वेंटीलेटर, दवाएं एवं वेक्सीन ही होंगी।
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