सुप्रीम कोर्ट ने दीपावली के अवसर पर पटाखे चलाने के लिए दो घंटों का समय तय किया है। देश की सामाजिक स्थितियों के अनुसार सबसे बड़ी अदालत ने एक अहम फैसला सुनाया है। भारतीय संस्कृति में दीपावली एक महत्वपूर्ण त्यौहार है और यह देश की संस्कृति की आत्मा है। अदालत ने पटाखों पर पाबंदी न लगाकर लोगों के धार्मिक भावनाओं का सम्मान किया है, साथ ही प्रदूषण को गंभीर समस्या के रुप में देखते हुए समय तय कर दिया है। अदालत के निर्णय के बाद इस मामले में बहस छिड़ना भी स्वाभाविक है। एक विचारधारा विशेष के लोग अदालत के फैसले का विरोध कर रहे हैं। भाजपा के एक नेता ने तो यह घोषणा कर दी है कि वह जान-बूझकर नियमों के विपरीत पटाखे चलाएगा। दरअसल अदालत के इस फैसले का ज्यों का त्यों लागू होना आसान नहीं है। सरकारें भी इसे सख्ती से लागू करने से झिझकेंगी। हालात यह है कि देश भर में पटाखे नियमों के अनुसार नहीं चलेंगे। भले ही अदालत ने प्रदूषण के मामले को गंभीरता से लिया है। अभी इस मामले का समाधान निकालने के लिए वैकल्पिक तरीकों को देखने की जरूरत है। दरअसल किसी मामले को केवल सख्ती से हल करने से नहीं बल्कि लोगों को मानसिक तौर पर तैयार करने की जरूरत है ताकि लोग स्व-इच्छा से पर्यावरण की फिक्र करें। तकनीक व जागरूकता दोनों मिलकर समस्या का समाधान निकाल सकती हैं। ऐसे पटाखे ईजाद करने की आवश्यकता है जो प्रदूषण कम से कम फैलाएं। लोगों को पटाखों के बारे में जागरूक करना होगा कि वह बाजार से कम खतरनाक व कम प्रदूषण वाले पटाखे खरीदें। दीपावली को श्रद्धा के साथ-साथ सुरक्षात्मक तरीके से मनाएं। पंजाब का प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड दावा कर रहा है कि धान की कटाई के बाद इस बार पिछले साल की तुलना में पराली जलाने की घटनाओं में गिरावट आई है। जिला लुधियाना के आठ गांवों के 1200 किसानों ने पराली न जलाने का निर्णय लिया। यदि किसानों की सोच बदल सकती है तब दीवाली पर पटाखों के प्रदूषण का हल निकालना भी असंभव नहीं। क्योंकि किसान की समस्या ज्यादा जटिल है। आमजन के आत्म नियंत्रण से फिर अदालत द्वारा कुछ घंटों की पाबंदी लगाने की जरूरत भी नहीं रहेगी। तब लोग खुद जागरूक होकर दीपावली पर पटाखे भी चलाएंगे व वातावरण का ध्यान भी रखेंगे।
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