एक सप्ताह के अंतराल से देश को दो समुद्री तूफानों ताऊते और यास का सामना करना पड़ा, जिससे देश को बड़े स्तर पर आर्थिक क्षति हुई। अब दोबारा पटरी पर जीवन लौटने के लिए कई महीने लग जाएंगे। केंद्र व राज्य सरकार मिलकर पीड़ितों की मदद कर रही है, फिर भी प्रकृति की इस चपेट में आए लोगों के दुखों पर मरहम लगाना आसान नहीं है। देश ने सबसे बड़ी समुद्री तबाही 2004 में सुनामी के रूप में देखी और 2006 में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन फोर्स (एनडीआरएफ) की स्थापना की, जो प्राकृतिक आपदा में सक्रिय नजर आती है लेकिन आपदाएं जितने बड़े स्तर पर आतीं हैं उसके मुकाबले एनडीआरएफ के पास मानवीय बल, साधन व तकनीक उपलब्ध नहीं है। ये नहीं कि हमारे देश में फंड की कोई कमी है। दरअसल, सरकारें फंड वितरित करने के वक्त निजी क्षेत्रों को भी सरकारी क्षेत्र के बराबर या उससे ज्यादा फंड जारी कर देती हैं।
विकसित देशों में राहत दलों के काम करने की गति, तकनीक व क्षमता हमारे देश की अपेक्षा कहीं ज्यादा है। हमारी एनडीआरएफ के पास 14000 के करीब कर्मचारी हैं। लगभग इतने ही कर्मचारी अमेरिका की कंपनी फेमा के पास हैं, जबकि हमारी जनसंख्या अमेरिका से लगभग पांच गुणा ज्यादा है। हमारे देश में विडंबना इस बात की है कि सब कुछ होते हुए भी काम को अंजाम देने के लिए बहुत समय निकल जाता है। कई बार तो ऐसे उदाहरण भी रहे हैं कि समाज सेवी संस्थाओं द्वारा दान किए गए भोजन पैकेट, राशन, वस्त्र व अन्य सामान के ढेर लगे रहे लेकिन राशन वितरण में ही देरी हुई। प्राकृतिक आपदाएं रोज की बात बनतीं जा रही हैं जिनसे निपटने के लिए पूरी तैयारी करने की आवश्यकता है। दुर्गम क्षेत्र के लोगों तक तो कई बार सरकारी टीमें भी नहीं पहुंच पातीं, जब तक जिला मुख्यालय से दूर रहते लोगों तक राहत सामग्री नहीं पहुंचती तब तक राहत का मिशन पूरा नहीं होता।
दरअसल चलन बन गया है कि एक आपदा गुजर जाने के बाद सब कुछ भुला दिया जाता है। बाढ़ आने पर जिला प्रशासन द्वारा जो किश्तियां इस्तेमाल की जाती हैं, मुसीबत टल जाने के बाद में इधर-उधर पटक कर वह कबाड़ बना दी जाती हैं। अरबों रुपए का साजो-सामान संभाल न होने के कारण मिट्टी हो रहा है, उनकी संभाल के लिए शैड या कमरों की व्यवस्था भी नहीं की जाती और खुले आसमान के नीचे मौसम की भेंट चढ़ जाता है। आवश्यकता है कि जिला प्रशासन एनडीआरएफ के सामान की सुरक्षा, संभाल और समय-समय पर उसकी मरम्मत का प्रबंध करे। एनडीआरएफ में कर्मियों के पद बढ़ाए जाएं, सही समय पर भर्ती हो। महज आपदा के समय जागने की बजाय इसे स्थायी एवं विश्वनीय सहायक, जीवन रक्षक के तौर पर तैयार किया जाए।
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