पिछले मंगलवार को चार क्वाड देशों के विदेश मंत्रियों का जापान की राजधानी टोक्यो में सम्मेलन हुआ जिसमें कोरोना महामारी से जुड़े मुद्दों पर चर्चा की गई। इन मुद्दों में मानवीय सहायता, आपदा राहत, स्वास्थ्य सुरक्षा और कोरोना महामारी का मुकाबला करने की विधियों का आदान प्रदान करने के बारे में चर्चा की गयी। जापान के कहने पर चीन पर निर्भरता कम करने के लिए एक सप्लाई चेन रिजिलेंस इनिशिएटिव पर भी चर्चा की गई। नई सप्लाई चेन के माध्यम से सस्ते वैक्सीन, दवाइयां और चिकित्सा उपकरणों तथा अन्य वस्तुओं की उपलब्धता बढ़ायी जाएगी। जापान का मानना है कि सप्लाई चेन रिजिलेंस इनिशिएटिव आसियान के नेतृत्व वाले क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझीदारी का स्थान ले सकता है जिसका भारत ने बहिष्कार किया है।
क्वाड की इस सम्मेलन की ओर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का ध्यान भी गया क्योंकि इसमें चीन का मुकाबला करने के लिए सुरक्षा सहयोग पर भी चर्चा की गयी। अमरीकी विदेश मंत्री माइक पोंपियो के बयान से यह स्पष्ट है। उन्होंने चीन की आलोचना करते हुए कहा, ‘‘क्वाड के साझीदार के रूप में अब यह और भी महत्वपूर्ण हो गया है कि हम अपने लोगों और साझीदारों को शोषण, भ्रष्टाचार और दादागिरी से बचाएं जैसा कि हमने दक्षिण और पूर्व चीन सागर, मेकोंग हिमालय और ताईवान खाडी में देखा है।’’ उन्होंने यह भी कहा है कि कोरोना महामारी की उत्पति वुआन से हुई है और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा इस महामारी को छुपाने से स्थिति और बिगड़ी है।
बैठक से पूर्व एक अन्य वक्तव्य में पोंपियो ने इस बात का संकेत दिया है कि क्वाड को एक संस्थागत रूप दिया जाएगा और उसका विस्तार किया जाएगा। क्वाड देशों के समान विचार वाले देशों को बाद में इसमें शामिल किया जा सकता है। क्वाड को एक सुरक्षा ढांचे के रूप में विकसत किया जा सकता है जो चीनी कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा विश्व को उत्पन्न खतरे की चुनौती का सामना कर सकता है। इसकी तुलना में अन्य तीन देशों के विदेश मंत्रियों ने चीन पर सीधा प्रहार नहीं किया है न ही उन्होंने भारत और चीन के बीच चल रहे सीमा विवाद पर सीधा बोला है।
जापान के विदेश मंत्री तोशिमित्सु मोटेगी ने क्वाड के विस्तार के बारे में अमेरिका के रूख का समर्थन किया है। उन्होंने कहा वे एक स्वतंत्र और खुला हिन्द प्रशान्त क्षेत्र चाहते हैं जो कानून के शासन के अनुसार हो और जहां पर नौवहन की स्वतंत्रता हो और समान विचारधारा वाले देश इस क्षेत्र में साझीदार बन सकते हों। भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर का बयान चैंकाने वाला था। उन्होंने वास्तविक नियंत्रण रेखा पर पिछले पांच माह से चल रहे गतिरोध और चीन का हवाला नहीं दिया। जयशंकर ने कहा, 2020 की घटनाओं ने स्पष्ट कर दिया है कि समान विचारधारा वाले देश इस महामारी से उत्पन्न चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए समन्वित प्रयास करें।
एक जीवंत और बहुलवादी लोकतंत्रों के मूल्य समान होते हैं। इसलिए ये देश सामुहिक रूप से स्वतंत्र, खुले और समावेशी हिन्द प्रशान्त क्षेत्र के महतव को दशार्ते हैं। 2017 के बाद क्वाड देशों के संयुक्त सचिव स्तर की वातार्एं आयोजित होती रही हैं। टोक्यो में आयोजित यह बैठक क्वाड के देशों द्वारा चीन के आक्रामक रूख के संबंध में तत्काल कदम उठाने की चिंता को भी दशार्ते हैं। अमेरिका ने प्रस्ताव किया कि क्वाड देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक हर वर्ष आयोजित की जाए। इस बैठक में शामिल होने के लिए क्वाड देशों के विदेश मंत्रियों ने अतिरक्त प्रयास किए।
एस जयशंकर कोरोना काल में दूसरी बार विदेश की यात्रा पर गए। इससे पहले वे शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में भाग लेने के लिए रूस गए थे और वहां पर उन्होंने चीन के विदेश मंत्री वांग से भी मुलाकात की थी। पेने दो सप्ताह के क्वारंटाइन पर थे फिर भी वे टोक्यो आए। कोरोना काल में आस्ट्रेलिया के विदेश मंत्री की यह पहली विदेश यात्रा थी। पोंपियो ने अपनी विदेश यात्रा के कार्यक्रम में बदलाव किया और फिर इस बैठक में भाग लिया। वे इस माह के अंत में भारत की यात्रा पर भी आने वाले हैं। इस सम्मेलन के लिए क्वाड देशों के विदेश मंत्रियों के द्वारा किए गए प्रयास बताते हैं कि वे इसे कितना महत्व देते हैं। क्वाड का भविष्य क्या है? इस समूह की स्थापना से चीन पहले से परेशान है।
चीनी नेतृत्व ने इसे एक मिनी नाटो का नाम दिया है। चीन के विदेश मंत्रालय द्वारा मंगलवार को जारी एक बयान में क्वाड की इस बैठक की कड़ी आलोचना की गयी। चीनी विदेश मंत्रालय ने कहा बहुपक्षीय सहयोग खुला रहना चाहिए। और यह समावेशी, पारदर्शी तथा पारस्परिक तालमेल और विश्वास के अनुसार होना चाहिए और इसमें क्षेत्रीय देशों को महत्व दिया जाना चाहिए न कि किसी तीसरे देश को निशाना बनाया जाना चाहिए। चीन उन देशों पर दादागिरी करता है जो अमेरिका का समर्थन करते हैं। इस क्षेत्र में चीन की दादागिरी को स्वीकार न करने के कारण वह भारत के विरुद्ध आक्रामक हुआ। चीन को इस बात पर भी आपत्ति है कि भारत ने दलाई लामा को शरण दी है और तिब्बती नेतृत्व भारत में रह रहा है। भारत के विरुद्ध चीन की दुश्मनी का एक कारण यह भी है कि भारत हिन्द प्रशान्त क्षेत्र में एक शक्ति केन्द्र बनना चाहता है। भारत के अमेरिका के निकट जाने से चीन और गुस्सा गया है।
चीन द्वारा अनेक भारत विरोधी कार्य करने के बावजूद भारत इसके इसके रूख को नहीं भांप पाया है और उसके इस को नजरदांज किया है। चीन के साथ राजनीतिक और सुरक्षा जोखिमों के बावजूद भारत ने उसके साथ व्यापार और आर्थिक संबंध सुदृढ किए। अब भारत को अहसास हआ है कि वह चीन के साथ मित्र बना नहीं रह सकता है और देर-सवेर उसे चीन के साथ अपनी मैत्री को तोड़ना होगा। चीन शक्ति और बल की भाषा समझता है। वह वार्ता, परामर्श और समझाने बुझाने की भाषा नहीं समझता। चीन के संबंध में भारत की नीति में भ्रम की स्थिति बनी रही है। भारत को अब भी लगता है कि चीन वार्ता के माध्यम से सीमा पर वापस चले जाएगा।
भारत किसी भी मंच पर चीन का नाम नहीं ले रहा है और अपेक्षा कर रहा है कि चीन बात को समझे किंतु इतिहास की दृष्टि से देखें तो यह भारत की वास्तविक अपेक्षा है और यह चीन की राजनीतिक संस्कृति और कूटनीति के विपरीत है। क्वाड ने चीन के साथ शक्ति असंतुलन को दूर करने के लिए भारत को अवसर दिया है और वह क्वाड के अन्य तीन सदस्य देशों के साथ गठबंधन कर सकता है। भारत को क्वाड को औपचारिक और सैनिक रूप देने के लिए बडी पहल करनी होगी जब तक वह अमेरिका के साथ द्विपक्षीय सुरक्षा समझौता नहीं कर देता है।
लगता है भारत क्वाड के सैन्यकरण के पक्ष में नहीं है। जबकि अमेरिका चहता है कि इसे एक सुरक्षा गठबंधन बनाया जाए। भारत का यह रूख समझ से परे है क्योंकि चीन ने पहले ही भारत के 5000 से अधिक वर्ग किमी क्षेत्र पर कब्जा किया हुआ है। लगता है भारत का मानना है कि यदि वह सैन्य गठबंधन करता है तो चीन उसके विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर सकता है। किंतु ऐसी ही स्थिति के लिए सैन्य गठबंधन आवश्यक है ताकि हमारे भूभाग की रक्षा हो और चीन को ऐसे महत्वाकांक्षी कदम उठाने से रोका जा सके।
कुल मिलाकर टोक्यो में क्वाड देशों की बैठक के परिणाम सकारात्मक रहे हैं। आस्ट्रेलिया, अमेरिका और जापान द्वारा प्रदर्शित दृढ संकल्प उत्साहजनक है। किंतु भारत के रूख से निराशा हुई है। भारत अभी भी तटस्थ रहने और दोनों पक्षों के साथ मित्रवत संबंध रखने के पक्ष में है जैसा कि अतीत में उसने अमेरिका और सोवियत संघ के साथ किया था और अब वह अमेरिका और चीन के बीच भी ऐसा ही करने का प्रयास कर रहा है हालांकि उसका झुकाव अमरीकी की ओर है। क्या यह प्रयोग सफल रहेगा?
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