यूपी विधानसभा
महिला सत्र के आयोजन के दौरान समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने कहा कि देश की आजादी में रानी लक्ष्मीबाई, अवंतीबाई लोधी, चांद बीबी, कस्तूरबा गांधी और सरोजिनी नायडू समेत कई महिलाओं का योगदान रहा है। इतना ही नहीं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस दौरान प्रस्तावना रखते हुए कहा कि भारत के सबसे बड़े विधानमंडल का यह सत्र देश के सामने एक उदाहरण पेश करेगा कि आखिर महिला सदस्य क्या बोलना चाहती है।
सोनम लववंशी स्वतंत्र लेखिका एवं शोधार्थी
यूपी में महिलाओं के लिए सिर्फ महिलाओं के लिए विधानसभा का सत्र बुलाया जाना अच्छी शुरूआत है। इस सबके बीच अच्छी बात यह भी रही कि ऐसे सत्र को लेकर किसी भी दल ने कोई खोट नहीं निकाला। सरकार के इस फैसले का विरोध किसी पार्टी द्वारा किया जाना अनुचित भी था। यह सोच भी अतिशयोक्ति ही थी। क्योंकि, जिस देश में पुरुषों से अधिक संख्या में महिलाएं बढ़-चढ़कर मतदान में भाग लें, वहां ऐसे कदम का विरोध होना असंभव ही है। ऐसे मुद्दों पर सर्वसम्मति से काम होना भी चाहिए। यूपी में विपक्ष के नेता अखिलेश यादव का विधानसभा में उठाया गया यह सवाल कि महिलाओं के लिए एक दिन या एक सत्र काफी नहीं है, प्रशंसनीय बयान है। देखा जाए तो बात सही भी है। आधी आबादी के लिए किसी विधानसभा में सिर्फ एक दिन या एक सत्र ही विशेष रूप से आयोजित हो, यह न्यायोचित नहीं है।
यूपी में विधानसभा की सदस्य संख्या 403 है। जिसमें महिला विधायकों की कुछ संख्या 47 है। इनमें 22 महिलाएं ऐसी हैं, जो पहली बार विधायक बनकर सदन में पहुंची और 100 सदस्यीय विधान परिषद में मात्र 6 महिलाएं ही हैं। ऐसे में प्रथम दृष्ट्या यह आंकड़ा काफी कम है। दूसरी बात यह कि महिलाओं से जुड़े अनगिनत मुद्दे हैं, जो आम सत्र के दौरान चर्चा का विषय नहीं बन पाते। ऐसे में महिलाओं के लिए विशेष सत्रों का आयोजन देश की सभी विधानसभाओं और लोकसभा में भी होना चाहिए। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपनी तरफ से यह अनूठी पहल शुरू करके देश के बाकी राज्यों को नया रास्ता दिखाया है। वक्त की नजाकत भी यही कहती है, कि महिलाओं के विषयों को लेकर विस्तृत रूप से विधानसभाओं और संसद में चर्चा हो और इसके लिए विशेष सत्र का आयोजन एक बेहतर प्रयास हो सकता है।
महिलाओं का योगदान शुरू से हमारे समाज के उत्थान में रहा है। यह वही देश है, जहां सावित्री ही एक पति या यूं कहें पुरुष की जान बचाती है और वह द्रौपदी भी एक महिला ही है, जो अपना सब कुछ दांव पर लगाकर पुरुष के वचन को निभाने को तत्पर रहती है। कुल-मिलाकर महिला शक्ति का त्याग और समर्पण ही सब कुछ है, जिसने पुरुष जाति का सदैव साथ निभाया है। उनके लिए अपने अस्तित्व को भी दांव पर लगाया। ऐसे में यह कहें कि मातृ शक्ति ही किसी भी समाज के विकास का आधार होती हैं और समाज में उनकी स्थिति से उस समाज की दिशा और दशा का ज्ञान होता है, तो यह बड़ी बात नहीं होगी। गत कुछ दशकों में महिलाओं के प्रति देश-दुनिया के नजरिए में भी बदलाव का दृष्टिकोण देखने को मिला है। इतना ही नहीं कहते हैं कि जिस समाज में महिलाओं के हाथ में बागडोर होती है, वहां ज्यादा मानवीय और संतुलित ढंग से विकास होता है। हमारा देश सदैव से मातृ शक्ति की अहमियत को स्वीकार करता आ रहा है।
लेकिन, कुछ रूढ़ियों और दकियानूसी सोच की वजह से एक समय ऐसा भी आया, जब समाज और विकास में महिलाएं भागीदारी न बन सकी। उन्हें हाशिए पर ढकेल दिया गया। पर, हर समय एक समान नहीं होता और अब देश में महिलाएं तेजी के साथ हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं। आज महिलाएं हमारे समाज में राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक सभी स्तरों पर आगे आ रही हैं और इसके लिए हमारी रहनुमाई व्यवस्था भी संजीदा दिखती है, जो एक सुखद पहलू है। इस बीच यूपी विधानसभा में महिला सत्र का आयोजन होना और उसमें सत्ता पक्ष और विपक्ष की सकारात्मक भागीदारी यह सुनिश्चित करती है कि महिलाओं के मुद्दे पर देश में एक अच्छी और माकूल स्थिति का निर्माण हो रहा है। यह मातृ शक्ति के लिए हर दृष्टिकोण से बेहतर कदम होगा।
योगी सरकार द्वारा नारी सशक्तिकरण के लिए चलाए जा रहे ‘मिशन शक्ति’ पर भी सदस्यों ने इस दौरान अपनी बात कही। ऐसे में इस सत्र के जो भी राजनीतिक मायने हों! लेकिन, इससे हर कोई सहमत होगा कि यह कदम महिलाओं की सुरक्षा, सम्मान और स्वावलंबन की दिशा में एक महत्वपूर्ण पड़ाव आगामी समय में साबित होगा। योगी सरकार में नि: संदेह ही गुंडों और माफियाओं के खिलाफ कठोर कार्रवाई से महिलाओं के खिलाफ अपराध में भी कुछ सालों में कमी आई है। अधिकारिक आंकड़ों को देखें, तो लगता है कि योगी आदित्यनाथ सरकार तुलनात्मक रूप से महिलाओं के लिए काफी बेहतर काम किया है।
सरकार द्वारा जारी ‘मिशन शक्ति’ के आंकड़े में बताया गया कि यूपी में पिछले साढ़े पांच साल में एक लाख से अधिक महिलाओं को सरकारी नौकरी दी गई। वहीं सेल्फ हेल्प ग्रुप बनाकर एक करोड़ महिलाओं को भी अब तक जोड़ा जा चुका है। ऐसे में महिला शक्ति यूपी में अब तेजी से आगे बढ़ रही हैं। विधानसभा में उनकी संख्या अभी नगण्य है। देश के बाकी राज्यों के हाल भी बेहतर नहीं। कुल-मिलाकर कहा जा सकता है कि योगी सरकार के महिला सत्र वाले कदम की सराहना तो चाहिए। किंतु, इस पहल पर व्यापकता से अमल की आवश्यकता है। यह देश के बाकी हिस्सों में भी देखने को मिले तो सचमुच का इसके ज्यादा बेहतर नतीजे देखने को मिलेंगे। इसके साथ महिलाओं की सामाजिक स्थिति भी सुदृढ़ होगी। क्योंकि, बात तभी बनती है, जब महिलाएं ही महिलाओं के मुद्दों पर पहल करती दिखाई दें, जैसी शुरूआत यूपी में हुई।
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