30 अप्रैल, 1927 को फातिमा बीवी, जो पूर्ववर्ती राज्य त्रवंकोर (अब केरल) के पत्तनम्तिट्टा में अन्नवीतिल मीरा साहिब और खदीजा बीवी के यहां पैदा हुई। फातिमा ने त्रिवेंद्रम लॉ कॉलेज से कानून की पढ़ाई की। दूसरे वर्ष में फातिमा सहित केवल तीन ही लड़कियां रह गयी थीं। साल 1950 में भारत के बार काउंसिल की परीक्षा को टॉप करने वाली फातिमा पहली महिला थीं। उसी वर्ष नबम्वर में उन्होंने एक वकील के रूप में पंजीकरण किया और केरल की सबसे निचली न्यायपालिका से अपनी प्रैक्टिस शुरू की। हालांकि, यह बात उस जमाने में बहुत से लोगों को जमी नहीं, जो अक्सर कोल्लम कोर्ट में हिजाब फनी हुई इस महिला को देखकर अपनी आँखें चढ़ा लेते थे। पर किसी की भी तनी हुई आँखें फातिमा का रास्ता न रोक पायीं। अगले तीन दशकों में, सुप्रीम कोर्ट की जज नियुक्त होने से पहले केरल की कई अधीनस्थ न्यायिक सेवाओं में उन्होंने ड्यूटी की। उन्होंने मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, जिला एवं सत्र न्यायाधीश और आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण के न्यायिक सदस्य के रूप में अपनी सेवाएँ दीं। जिसके बाद साल 1983 में उन्हें केरल हाई कोर्ट की जज नियुक्त किया गया।
साल 1989 में, केरल हाईकोर्ट की जज के पद से सेवानिवृत्त होने के छह महीने बाद फातिमा बीवी को अक्टूबर में सुप्रीम कोर्ट की न्यायधीश नियुक्त किया गया। भारत के लिए यह गर्व का क्षण था, क्योंकि इस एक पल ने भारत की सर्वोच्च न्यायपालिका में सर्वोत्तम पदों पर भारतीय महिलाओं के लिए रास्ते खोल दिए थे। किसी भी उच्च न्यायपालिका में नियुक्त होने वाली पहली मुस्लिम महिला न्यायाधीश और साथ ही, उन्होंने एक एशियाई राष्ट्र के सर्वोच्च न्यायालय की पहली महिला न्यायाधीश होने का गौरव भी अर्जित किया। वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे के अनुसार, अपने शानदार कार्यकाल के दौरान, न्यायमूर्ति फातिमा बीवी बहुत ही सुलझी हुई और हमेशा संतुलित रहीं। वे जब भी किसी मुद्दे पर फैसले के लिए बैठती तो उस केस से जुड़ी हर एक छोटी-बड़ी बात उनको पता होती। वे उस केस का पूरा इतिहास पढ़कर कोर्ट आती थीं। एक साक्षात्कार में फातिमा ने कहा था, न्यायाधीशों के पद पर महिलाओं की संख्या बढ़ाने की जरूरत है और उच्च न्यायपालिका में महिलाओं की संख्या बढ़ाने के लिए आरक्षण पर विचार करना भी आवश्यक है।
अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter पर फॉलो करें।