पाठयक्रम में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एक सार्थक पहल

Artifical, Intelligence

टेक्नोलॉजी के बदलते दौर को ध्यान में रखते हुए सेंट्रल बोर्ड आॅफ सेकेंडरी एजुकेशन (सीबीएसई) आने वाली शैक्षणिक सत्र में स्कूल के पाठ्यक्रम में कुछ नए विषयों को शामिल करने जा रहा है। इन विषयों में से एक है -आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानि कृत्रिम बुद्धमत्ता। यह इलेक्टिव सब्जेक्ट के रूप में शामिल होगा। हाल ही में सीबीएसई बोर्ड की बैठक में इसे पाठ्यक्रम में शामिल करने का फैसला लिया गया है। शिक्षा सत्र 2019-20 से कक्षा 9 के छात्रों के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस वैकल्पिक विषय के रूप में शामिल होगा। इसके अलावा बोर्ड ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के प्रति छात्रों की रुचि जताने के लिए कक्षा 8 से ही इस विषय की पढ़ाई शुरू करने का भी फैसला लिया है।

कक्षा 8 में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के 12 पीरियड होंगे। कई स्कूलों की तरफ से इस विषय को शामिल करने की मांग की जा रही थी। ऐसे में सीबीएसई बोर्ड ने यह फैसला किया है। बोर्ड के मानदंडों के मुताबिक यह नया विषय पांच विषयों के अलावा वैकल्पिक विषय के रूप में शामिल किया जा सकता है। अगर विज्ञान, गणित और सामाजिक विज्ञान विषय में छात्र फेल होता है, तो इस विषय के अंको को शामिल कर उसे पास घोषित किया जा सकता है। तब छह में से सर्वाधिक अंक वाले विषयों को छात्र को पास करने का आधार बनाया जाएगा। अगर छात्र विषय में दोबारा परीक्षा देना चाहेगा तो वह भी कर सकेगा। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आज के तकनीकी युग में बहुत ही ट्रेंडिंग टेक्नोलॉजी है जिसका उपयोग आने वाले समय में बहुत ही अधिक मात्रा में बढ़ने वाला है।

इसलिए आज के बच्चों को इसके बारे में पढ़ना, जानना और समझना बेहद जरूरी हो गया है। एडवांस तकनीक से रूबरू हुए बगैर आने वाले समय की तकनीकी प्रतिस्पर्धा में बच्चे पिछड़े ना रहें बल्कि वह इस दौर में अग्रणी बनी रहें इसलिए यह एआई आज के समय की मांग भी है। सीबीएसई का मानना है की आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, डाटा एनालिस्टिक जैसी टेक्नोलॉजी दुनिया भर में तेजी से पांव पसार रही है। ऐसे में बोर्ड को अपना पाठ्यक्रम आधुनिक और अपडेट बनाना होगा। सिलेबस में ताजा और जरूरी चीजें शामिल करनी होगी। इसी मद्देनजर बोर्ड ने यह निर्णय लिया है। आज के बदलते दौर में प्रोफेशनल कोर्सेज की तर्ज पर स्कूल और कॉलेज आॅफ में सिलेबस में परिवर्तन कर पढ़ाई करवाई जाने की महत्ती आवश्यकता महसूस की जाती रही है ताकि बच्चे शुरूआत से ही खुद को अपनी रुचि के हिसाब से अपने स्किल को डवलप कर सकें। इसके अलावा एआई वैश्विक स्तर पर रोजगार के दृष्टिकोण से भी अहम बनता जा रहा है। यह एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें रोजगार की असीम संभावना है।

यदि देश के युवा क्षेत्र इस में अग्रणी रहेंगे तो आने वाले समय में दुनिया को मुट्ठी में करने के अपने सपने को साकार कर सकते हैं। यह क्षेत्र भारत में भी रोजगार के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। औद्योगिक रिपोर्ट के मुताबिक आज के समय में भारत में 50 हजार नौकरियां मशीन लर्निंग और डाटा साइंस की केवल इसलिए खाली पड़ी है, क्योंकि क्वालीफाईड टैलेंट की कमी है। यह क्षेत्र शानदार वेतन वाले ही नहीं हैं बल्कि इन्हीं क्षेत्रों में काम करने वाले लोग निकट भविष्य में दुनिया की गति तय करेंगे। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी कृत्रिम बुद्धिमत्ता ऐसी कंप्यूटर प्रणालियों के अध्ययन और विकास को कहते हैं जो ऐसे कार्य कर सकें जिसमें सामान्यत: मानव बुद्धि की जरूरत होती है जैसे दृष्टि बोध होने की पहचान, फैसले लेना और एक भाषा से दूसरी भाषा में अनुवाद करना आदि। वर्ष 1955 में जॉन मकार्थी ने इसे नाम दिया था और इसे परिभाषित करते हुए कहा था कि यह बुद्धि युक्त मशीन बनाने का विज्ञान और इंजीनियरिंग है। जॉन मकार्थी को फादर आॅफ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस भी कहा जाता है।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की शुरूआत 1950 के दशक में हुई। सबसे पहले जापान ने इस पर काम किया और 1981 में फिफ्थ जेनरेशन नामक योजना की शुरूआत की थी , उसमें सुपर कंप्यूटर के विकास के लिए 10 वर्षीय कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत की गई थी। इसके बाद अन्य देशों ने इस पर ध्यान दिया। ब्रिटेन ने इसके लिए एलवी नाम का प्रोजेक्ट बनाया। यूरोपियन संघ के देशों ने भी एस्प्रिट नाम से कार्यक्रम की शुरूआत की। दरअसल आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के मिल जाने के बाद मशीनें यदि खुद निर्णय ले सकेंगी, तो उनकी इंसानों पर निर्भरता खत्म हो जाएंगी। मशीनों की बौद्धिक कार्यक्षमता इंसानों की श्रम शक्ति पर कब्जा कर सकती है। बेकारी बढ़ने का डर है। ऐसे में वह इंसानों के लिए घातक हो सकती है। इसके साथ ही इंसानों और मशीनों में प्रतिस्पर्धा भी हो सकती है। बीते दिनों फेसबुक की टीम आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर रिसर्च कर रही थी इसी दौरान दो मशीनों ने आश्चर्यजनक रूप से आपस में कम्युनिकेट करना शुरू कर दिया। इस दौरान मशीनों ने कोई खास कोडिंग भाषा डाउनलोड कर ली और आपस में बातें करना शुरू कर दिया था।

यह सुविधा की जगह दुविधाजनक बन गया। यह सोचनीय है कि जो काम इंसान कर सकता है, वही काम भविष्य में मशीन करेंगी और वह भी बिना इंसानों की मदद के। इस तरह मशीन इंसानों के लिए राह में रोड़ा बन सकती हैं जैसे आज एक इंसान दूसरे इंसान के लिए बाधा बनता है। यही वजह है कि एआई को लेकर उम्मीदों के साथ ही आशंकाएं भी जुड़ी हुई है। बहरहाल यह तो भविष्य से ही सही पता चलेगा कि एआई इंसानों के लिए कितनी नुकसानदायक या फायदेमंद है।

नरपत दान चारण

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