कोरोना महामारी के इस मौसम में मैं दो सच्चाई आपके सामने रख रही हूं। पहली कल कभी नहीं आता और दूसरा जैसा कि अर्थशा़स्त्री जान किंग्स ने कहा था: दीर्घावधि में हम सभी मर जाएंगे। आज लगता है भारत अंधेरे में है क्योंकि यहां पर कोरोना महामारी के बाद लॉकडाउन को खोलने से स्थिति बद से बदतर होती जा रही है जिससे प्रश्न उठता है कि क्या हम कोरोना महामारी से मुकाबले में हार की ओर बढ रहे हैं। अनेक खबरें आ रही हैं कि लोग अस्पतालों में बिस्तर न मिलने के कारण मर रहे हैं। एक ही बिस्तर पर तीन मरीज रखे जा रहे हैं, अस्पताल के गलियारों में भीड़भाड़ है जिससे संक्रमण बढ़ने का खतरा पैदा हो रहा है। शव बिस्तरों पर ही पडे हुए हैं। इस बीच ये भी खबर मिली कि एक 80 वर्षीय व्यक्ति अस्पताल में भर्ती होने के लिए दर दर की ठोकरें खाता रहा है। उसे एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल भेजा गया और अंत में वह अपनी कार में अस्पताल में बिस्तर की प्रतीक्षा करते हुए ही मर गया।
यही नहीं डाक्टरों और नर्सो को खराब पीपीई किट पहनने के लिए बाध्य किया जा रहा है जिनसे वे संक्रमित होकर मर सकते हैं। मास्क, दस्ताने और चिकित्सा उपकरणों की कमी है। आक्सीजन मशीनों सहित 70 प्रतिशत मशीनें खराब हैं। ग्लोबल एंटी बायोटिक रेसिस्टेंस पार्टनरशिप – इंडिया वर्किंग गुु्रप के अनुसार अस्पताल के वार्डों और आईसीयू में संक्रमण दर विश्व औसत से 5 गुना अधिक है। लॉकडाउन को ढाई महीने से अधिक हो गया है और लगता है इस बीच कुछ नहीं बदला है। कोरोना मामले बढ़ने जा रहे हैं और अब इनकी संख्या प्रतिदिन 10 हजार से उपर पहुंच गयी है और लगता है कि हमारे पास इससे निपटने की कोई रणनीति नहीं है।
प्रश्न यह भी उठता है कि लॉकडाउन का उद्देश्य क्या था। क्या यह सफल रहा? इसकी सफलता का पैमाना क्या है? इससे कोरोना के प्रसार पर अंकुश लगा और हमें स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार के लिए समय मिला साथ ही लोगों को इस महामारी के खतरे के बारे में जागरूक करने का भी समय मिला। किंतु लॉकडाउन के खुलते ही यह स्पष्ट हो गया है कि हम इस महामारी के संक्रमण को रोकने में सफल नहीं हुए जबकि हमारे यहां कम परीक्षण किए जा रहे हैं और आंकड़ों में भी हेराफेरी की जा रही है। भारत में सबसे कम प्रति 10 लाख पर 2198 परीक्षण किए जा रहे हैं।
वस्तुत: आज देश विश्व के पहले 10 संक्रमित देशों की सूची में है और शीघ्र ही यह शीर्ष पांच देशों की श्रेणी में आ जाएगा। इस महामारी के कारण अर्थव्यवस्था पर भी प्रभाव पड़ा है। सकल घरेलू उत्पाद में गिरावट आयी है। प्रवासी श्रमिकों, दिहाड़ी मजदूरों, व्यवसाइयों, पुलिस स्वास्थ्य कर्मियों, वेतन भोगी लोग और गृहिणी सभी इससे प्रभावित हुए हैं। सेन्टर फोर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनोमी के आकलन के अनुसार बेरोजगारी दर बढ़कर 36 प्रतिशत हो गयी है और 36 करोड़ लोगों को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा है।
यह सच है कि मोदी जादूगर नहीं हैं जो अपनी जादुई छड़ी से 70 वर्षों से चली आ रही समस्याओं को हल कर देंगे। वे अपनी ओर से भरसक प्रयास कर रहे हैं। हो सकता है कि उनके निर्णयों में कोई कमी हो किंतु उन्होंने दृढता से निर्णय किए हैं। लॉकडाउन के कारण लाखों प्रवासी श्रमिकों ने पलायन किया है जिससे अब शहरों से गांव तक भी संक्रमण पहुंच गया है और लॉकडाउन खुलने के बाद शहरो में संक्रमण बढने का खतरा बढ गया है। इसके अलावा हमारी स्वास्थ्य सेवाओं को संचालित करने वाले लोगों का दृष्टिकोण उदासीन है। इन सेवाओं में भ्रष्टाचार व्याप्त है और स्वास्थ्य सुविधाओं पर सकल घरेलू उत्पाद का 1 प्रतिशत से कम व्यय किया जाता है। देश में 6 लाख डॉक्टरों और 20 लाख नर्सों की कमी है।
शहरों में जो अपने को डॉक्टर कहते हैं उनमें से केवल 58 प्रतिशत के पास और ग्रामीण क्षेत्रों में 19 प्रतिशत के पास मेडिकल डिग्री है। जिला अस्पतालों में नर्सों और डाक्टरों के पास इस संकट से निपटने के लिए क्षमता नहीं है। वे यह भी नहीं जानते कि वेंटीलेटर कैसे लगाया जाता है। इससे और समस्याएं बढ गयी हैं। दिल्ली को ही लें जहां पर मुख्यमंत्री केजरीवाल कह रहे हैं कि यहां पर सब कुछ ठीकठाक है किंतु पूरी दिल्ली आज आईसीयू में है। अस्पतालों में कोरोना रोगियों की भीड़ लगी हुई है। क्वारंटीन केन्द्रों से रोगी भाग रहे हैं। क्वारंटीन केन्द्रों की स्थिति दयनीय है। उनमें शौचालय और पानी की कमी है और बाबू कहते हैं कि तो क्या करें।
विश्व स्वास्थ्य संगठन बार बार कह रहा है कि इस संकट का समाधान केवल परीक्षण है। सरकार को इस सलाह को मानते हुए युद्धस्तर पर परीक्षण कराना चाहिए। 130 करोड़ से अधिक जनसंख्या वाले देश में प्रतिदिन कम से कम 1 लाख से अधिक परीक्षण होने चाहिए थे किंतु परीक्षण के अभाव में लगता है यह महामारी बढ़ती ही जा रही है। भारत चीन की तरह 10 दिन में अस्पताल का निर्माण भी नहीं कर सकता है किंतु वह अस्पतालों को लालफीताशाही से मुक्त कर सकता है। स्वास्थ्य सेवाओं पर व्यय बढा सकता है और सुविधाओं में सुधार कर सकता है। टेस्टिंग किट, अस्पतालों में बिस्तर और बायोटेक उद्योग के लिए वित्त पोषण हेतु एक कार्यबल का गठन किया जाना चाहिए।
वास्तव में आज एक महासंकट शुरू हो गया है और अगले कुछ सप्ताहों में स्थिति और बिगड़ सकती है। भारत को इसके लिए तैयारी करनी होगी। एक वरिष्ठ डॉक्टर के अनुसार यदि संक्रमण दर बढ़ती रही तो अगले कुछ दिनों में भीषण स्थिति पैदा हो जाएगी। इन रोगियों के उपचार के लिए आक्सीजन लाइन वेंटिलेटर, डॉक्टर और नर्सिंग स्टाफ की आवश्यकता है। हमारे यहां इन सबकी कमी है। भारत में इसका संक्रमण एक समान दर पर नहीं बढ रहा है। यह बीच बीच में बढता जाएगा।
लॉकडाउन समाप्त करने से इस महामारी पर अंकुश नहीं लगेगा। विभिन्न राज्यों में विभिन्न समय पर यह महामारी बढ़ेगी। उदाहरण के लिए महाराष्ट्र में प्रति 100 परीक्षणों पर संक्रमण की दर राष्ट्रीय औसत से तीन गुना अधिक है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस महामारी पर अंकुश के लिए बहुस्तरीय छोटी छोटी रणनीतियां बनायी जाएं। कुछ लोगों का यह भी मत है कि आयु के अनुसार कुछ काम करने की अनुमति दी जानी चाहिए क्योंकि यदि युवा लोग इससे संक्रममित होंगे तो उनमें प्रतिरोधक क्षमता पैदा होगी। इसके लिए हमें स्कूल और कालेजों को खोलना होगा और इससे हम कोरोना से होने वाली मौतों की संख्या में कमी कर सकेंगे।
लोगों को कोरोना महमारी के साथ सामान्य काम करने होंगे। सरकार को प्लान बी, प्लान सी बनाने होंगे। साथ ही सरकारी स्वास्थ्य अवसंरचना को इस तरह तैयार करना होगा कि वह 130 करोड लोगों की आवश्यकताओं को पूरा कर सके ताकि कोरोना पर नियंत्रण लग सके अन्यथा हम उस लाभ को खो देंगे जो हमने अब तक प्राप्त किया है। हमारे नेता लोगों का आह्वान कर रहे हैं कि संयम बरतें और संकल्प लें किंतु यह पर्याप्त नहीं होगा। सरकार को इस पर ध्यान देना होगा और इस संकट को एक अवसर में बदलन होगा। सरकार लॉकडाउन से प्राप्त लाभों को बर्बाद नहीं कर सकती है। जैसा कि एक अमरीकी गायक जेनी रोजर्स ने एक गाना गाया है कि यदि आप खेल खेलोगे तो आप इसको सही खेलना भी सीख लो और आज भारत को इस महामारी से निपटने के लिए ही रणनीति अपनानी होगी।
पूनम आई कौशिश
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