वाह… यही तो है असली आजादी

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मुंह में पान मसाला चबाते हुए गुल्लू मियां बड़बड़ाए जा रहे थे बहुत हो चुका, अब और बर्दाश्त नहीं होता, कुछ तो करना ही पड़ेगा। मैं मुस्कराएं बिना न रह सका- अमां मियां यह तो बताओ अब कौन सी मुसीबत आन पड़ी है, कौन सी बात बर्दाश्त से बाहर हो रही है और क्या करना चाहते हो, सोच लो जो तुम करना चाहते हो, वह कर भी पाओगे, या यूं ही बैठे ठाले अपनी जुबान से भड़ास निकालकर फुस्स हो जाओगे।

तुम भी शरमा जी, हर समय मस्ती के मूड में रहते हो, किसी दूसरे का मूड तो देख लिया करो, वह किस परेशानी में है, तुम मुस्कराते और मेरी जान पर बन आ गई है। ऐसी भी कौन सी समस्या उत्पन्न हो गई, जो तुम्हारी जान पर आ गई, मुझे तो तुम भले चंगे जुगाली करते दिखाई दे रहे हो। मैंने उन पर टिप्पणी की। यही तो बात है, जमाना दोमुंहा हो गया है। मन में कुछ और, और बाहर कुछ और जो जैसा है, वैसा दिखाई नहीं देता और जैसा दिखाई देता है, वैसा वह होता ही नहीं। गुल्लू मियां किसी मंजे हुए दार्शनिक की भांति बोले। फिर भी ऐसा कौन सा समस्याओं का पहाड़ खड़ा हो गया, जरा हम भी तो सुनें। मैंने गुल्लू मियां के प्रति संवेदना व्यक्त की।

वह कुछ पसीजे, फिर बोले- शरमा जी, आप तो जानते ही हैं कि मेरे मन में राष्टÑ के प्रति कितना अनुराग है, कोई भी मेरे देश की बुराई करे, मुझे अच्छा नहीं लगता, मैं स्वयं चाहता हूं कि सब कुछ पारदर्शी हो। सरकार हर कार्य में पारदर्शिता बरते, ठेकेदारों को जो ठेके दिए जाएं, वे पूरी तरह पारदर्शिता के आधार पर होने चाहिए, जमीनों का अधिग्रहण हो, उनमें भी पारदर्शिता हो। सरकारी खरीद मोलभाव भी पारदर्शिता से की जानी चाहिए। इसमें तो कुछ भी गलत नहीं है, आम आदमी भी ऐसा ही सोचता है, जैसा कि आप सोचते हैं, फिर इसमें आप खास क्या सोचते हैँ? मैंने गुल्लू मियां की सोच को जनमानस की सोच बताया।

गुल्लू मियां बिफर गए- आप मेरी सोच को कम आंक रहे हैं, मेरी सोच ओरिजनल है, मैंने किसी की नकल नहीं की है, में चाहता हूं कि सभी कार्य पूरी निष्ठा और ईमानदारी से राष्टÑ हित सर्वोपरि मानते हुए होने चाहिए। वह तो हर कोई चाहता है, मगर इसमें परेशानी क्या है? मैंने चुटकी ली। परेशानी एक हो तो बताई जाए, जिसे देखो, वही देश को अपने आप से छोटा समझ रहा है। देश उनके लिए बाद में है जेब पहले है, पहले उनकी जेब गरम हो जाए। उसके बाद उनसे कोई बात की जाए। यदि ऐसा न होता, तो देश में जितने भी घोटाले आज खुलकर अपना चेहरा दिख रहे है, सभी घोटाले अल्ट्रासाउण्ड की भेंट चढ़ चुके होते। यानी घोटाले अस्तित्व में आने से पहले ही मौत के घाट उतार दिए जाते, मगर ऐसा हुआ ही नहीं। गुल्लू मियां के चेहरे पर उदासी छा गई।

अब तुम्हें क्या परेशानी है, जो है सो सबके लिए है, सबके सामने है, परेशान होने का कोई मजबूत आधार बताओ, तभी अपनी परेशानी किसी के सामने बताओ, अन्यथा मजाक उड़ाने वाले कम नहीं है। नाहक ही तुम अपना मजाक उड़वाना चाहते हो। मैंने गुल्लू मियां को समझाया। राष्टÑहित में मैं अपना मजाक भी उड़वा सकता हूं, मैं नहीं डरता किसी से भी।

नहीं डरते तो क्या कर लोगे, बताओ समसया का समाधान कैसे करवाओगे? मैंने पूछा। समस्या का समाधान होगा और अवश्य होगा, आप जानते नहीं, लोगों में कितनी जागरूकता आ गई है, एक बार हजारों के साथ जंतर-मंतर पर बैठ गया था, तो सबकी नींद हराम हो गई थी, लोगों का कितना सहयोग मिला था, मुझे, मैं बता नहीं सकता, अच्छे-अच्छे दिग्गज घबराकर मेरी चरण वंदना कर रहे थे, कह रहे थे- गुल्लू मियां मान जाइए,… हम आपकी बात मानेंगे। और आप उनकी बात मान गए, बदले में क्या मिला? मैंने गुल्लू मियां पर तंज कसा। कुछ नहीं मिला न… नहीं, अब फिर धरना देकर बैठूंगा, फिर लड़ाई लडूंगा, मैं अपनेदेश में हो रहे किसी भी अन्याय को सहन नहीं करूंगा। गुल्लू मियां तैश में आ गए।

वाह गुल्लू मियां… आजादी का असली आनंद आप ही उठा रहे हैं, मैं मुस्कराया। हूं… यह भी कोई आजादी है, खाए कोई और बदनाम कोई और होवे। ऐसा तो पहले कभी हुआ ही नहीं था, जैसा कि अब हो रहा है। अब दूसरी आजादी की लड़ाई मुझे लड़नी ही है। गुल्लू मियां के चेहरे पर कुछ कर गुजरने का भाव उभर आया था। ईश्वर आपको लड़ाई लड़ने की ताकत दे, मेरी यही कामनाएं है, आजाद भारत में। मैंने अपनी राह पकड़ने में ही भलाई समझी।

डॉ. सुधाकर आशावादी