Police Custody vs Judicial Custody : क्या पुलिस और ज्यूडिशियल कस्टडी अलग-अलग हैं?
नई दिल्ली। हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पुलिस कस्टडी में मारपीट करने के आरोप में पुलिस आॅफिसर के खिलाफ कार्रवाई करने का आदेश जारी किया है। जानकारी अनुसार पुलिस ने एक सड़क किनारे पार्किंग करने वाले लड़के को हिरासत में लिया था। इस दौरान पुलिस ने लड़के की धुनाई कर डाली। इस पर लड़के ने पुलिस के खिलाफ पुलिस हिरासत में मारपीट करने पर हिंसा का केस कर दिया था। क्या लड़के ने यह सही किया या नहीं? हिरासत में लिए जाने के बाद व्यक्ति के पास अपना बचाव करने के लिए कौन-कौन से अधिकार होते हैं और हिरासत और गिरफ्तारी में क्या अंतर होता है? इस बारे में सारी जानकारी इस लेख के माध्यम से साझा की जा रही है। Police Custody vs Judicial Custody
बता दें कि इससे पहले भी शक्ति कपूर के बेटे को ड्रग्स मामले में हिरासत में ले लिया गया था, गिरफ्तार नहीं किया था। इसी प्रकार शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान को भी न्यायिक हिरासत में लिया गया था, गिरफ्तार नहीं किया गया था। इसी प्रकार कई मामलों में ऐसे ही कहीं पुलिस हिरासत में लिया जाता है और कहीं गिरफ्तारी होती है। ऐसे में आपको यही लगता होगा कि इन दोनों में समानता होगी यानि दोनों एक ही बात होगी। आइये जानते हैं दोनों में क्या फर्क है:-
हिरासत : हिरासत जिसको कस्टडी भी कहा जाता है, सुरक्षा की दृष्टि से किसी को पकड़ना हिरासत होता है। बता दें कि हिरासत और गिरफ्तारी पर्यायवाची शब्द नहीं हैं। हिरासत में गिरफ्तारी नहीं होती लेकिन हर गिरफ्तारी में हिरासत होती है। मान लो किसी को गिरफ्तार किया जाता है। यदि व अपराध करने का दोषी हो या यूं कहें कि उस पर संदेह हो तो उसे गिरफ्तार कर लिया जाता है लेकिन हिरासत का मतलब किसी की रक्षा करना या उसे अस्थाई तौर पर जेल में रखना होता है। जब किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाता है तो उसे पहले हिरासत में रखा जाता है। पूछताछ या कोर्ट के आदेश के बाद ही उसे गिरफ्तार कर जेल में भेज दिया जाता है। यहां बता दें कि हिरासत भी दो प्रकार की होती है:-
1. पुलिस हिरासत
2. न्यायिक हिरासत
1. पुलिस हिरासत : जब पुलिस किसी व्यक्ति को हिरासत में लेती है तो पहले उससे अपराध के बारे में पूछताछ करती है। पुलिस हिरासत में पुलिस उस व्यक्ति को घटनास्थल पर ले जाती है और जांच-पड़ताल में मिलने वाले सबूतों को अपने कब्जे में ले लेती है। गिरफ्तारी के 24 घंटे के भीतर आरोपी को मैजिस्ट्रेट के सामने पेश करने का नियम होता है जो कि सीआरपीसी की धारा 167 के तहत होता है।
इसके बाद मैजिस्ट्रेट यह निर्णय लेता है कि आगे की जांच या पूछताछ की जरूरत है या नहीं। ऐसे में मैजिस्ट्रेट आरोपी को 15 दिनों के लिए पुलिस हिरासत में रखने का आदेश सुना सकते हैं। लेकिन मामले की गंभीरता को देखते हुए इसे 30 दिनों के लिए बढ़ाया जा सकता है। इस दौरान मैजिस्ट्रेट पुलिस हिरासत से ज्यूडिशियल हिरासत यानि न्यायिक हिरासत में बदलने का आदेश भी दे सकते हैं।
न्यायिक हिरासत: जब किसी व्यक्ति को मैजिस्ट्रेट द्वारा हिरासत में रखा जाता है तो इसे न्यायिक हिरासत कहा जाता है। मैजिस्ट्रेट के आदेश पर ही आरोपी को निश्चित अवधि के लिए जेल में रखने का आदेश दिया जाता है। आरोपी या संदिग्ध आरोपी ऐसे में मैजिस्ट्रेट की जिम्मेदारी बन जाता है। उसे जनता की नजरों से दूर रखा जाता है ताकि उसे जनता या समाज के किसी वर्ग द्वारा किसी भी तरह का दुर्व्यवहार या उत्पीड़न से बचाया जा सके। यदि कोई व्यक्ति न्यायिक हिरासत में है और उसके आरोप की जांच चल रही है तो पुलिस को 60 दिनों के भीतर आरोप पत्र दायर करना होता है।
यह है दोनों में फर्क:-
- पुलिस हिरासत में आरोपी को पुलिस थाने में कार्रवाई के कारण रखा जाता है और न्यायिक हिरासत में आरोपी को जेल में रखा जाता है।
- पुलिस हिरासम केवल 24 घंटे की होती है लेकिन न्यायिक हिरासत में कोई निश्चित अवधि नहीं होती है।
- पुलिस हिरासत में रखे आरोपी को 24 घंटे के अंदर ही मैजिस्ट्रेट के सामने पेश करना होता है वहीं न्यायिक हिरासत में आरोपी को तब तक जेल में रखा जाता है जब तक कि उसके खिलाफ मामला अदालत में चल रहा हो या अदालत उसे जमानत न दे दे।
- पुलिस हिरासत में पुलिस आरोपी को मारपीट सकती है ताकि वह अपना अपराध कबूल कर ले लेकिन अगर आरोपी सीधे कोर्ट में हाजिर हो जाता है तो उसे सीधे जेल भेज दिया जाता है और वह पुलिस की पिटाई से बच जाता है। यदि पुलिस को किसी तरह की पूछताछ करनी हो तो सबसे पहले न्यायधीश से आज्ञा लेनी पड़ेगी।
- पुलिस हिरासत पुलिस द्वारा प्रदान की जाने वाली सुरक्षा की दृष्टि से की जाती है। जबकि न्यायिक हिरासत में आरोपी न्यायधीश की सुरक्षा के अंतर्गत आता है।
- पुलिस हिरासत हत्या, लूट, चोरी इत्यादि के लिए की जाती है लेकिन न्यायिक हिरासत में पुलिस हिरासत वाले अपराधों के अलावा कोर्ट की अवहेलना जमानत खारिज होने के लिए की जाती है। Police Custody vs Judicial Custody
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