वास्तव में नियंत्रण रेखा से सैनिक हटाने के समझौते के बावजूद चीनी सैनिकों ने भारतीय क्षेत्र में दाखिल होकर एक बार फिर सीमावर्ती विवाद को गर्मा दिया है। यह घटना तिब्बत से निर्वासित धार्मिक नेता दलाईलामा, जो भारत में मौजूद हैं, के जन्मदिन पर घटित हुई। इस दिन ऐसी कार्रवाई कर चीन ने यह संदेश दिया है कि भारत द्वारा दलाईलामा को शरण देना उसे मंजूर नहीं है। दलाईलामा का मामला भले ही कुछ भी हो लेकिन सीमा का उल्लंघन कर इस संवेदनशील मुद्दे के साथ चीन खिलवाड़ कर रहा है। करीब दो वर्ष पूर्व गलवान घाटी में चीनी सैनिकों का भारतीय सेना पर किए हमले के बाद टकराव वाले हालात पैदा हो गए थे, फिर भी भारत ने संयम में रहकर कमांडर स्तर की कई मीटिंगों के बाद मामले को शांत किया था।
आखिरकार दोनों देश सैनिकों की वापिसी के लिए सहमत हुए थे। विगत माह भी सीमा पर चीन की सेना के इक्ट्ठा होने की खबरें चर्चा में रहीं। यह जरूरी है कि चीन समझौते की सही तरीके से पालना करे। यहां चिंताजनक बात यह है कि चीन अपनी कही गई बात से बार-बार पीछे हट रहा है। 1962 के हमले से पूर्व यही चीन हिंदी-चीनी भाई-भाई का नारा लगा चुका था। गलवान घाटी में समझौते के अनुसार गोली चलाने पर मनाही थी, लेकिन चीनी सैनिकों ने कंटीली तार वाले डंडों का प्रयोग कर भारत के 20 सैनिकों को शहीद कर दिया था।
इसके बाद गोली चलने की घटना भी हुई। अब फिर समझौते का उल्लंघन कर सीमा पार की गई। चीन लद्दाख में भी अपनी अवैध गतिविधियों को अंजाम देता रहा है। नि:संदेह भारत ने चीनी सैनिकों को खदेड़ने के लिए सख्त कदम उठाया है लेकिन समझौते के बावजूद नियमों का बार-बार उल्लंघन चीन की नीयत पर संदेह पैदा करता है। चीन के बारे में यह भी कहा जाता है कि वह दो कदम आगे बढ़कर एक कदम पीछे हटता है लेकिन विश्वास में लेकर फिर धोखा करता है। भारत सरकार को चीन की ताकत पर नजर रखने के साथ-साथ उसकी नीयत पर ज्यादा नजर रखनी होगी।
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