पूज्य गुरु संत गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि प्रभु कण-कण में है। ऐसी कोई जगह नहीं है जहां वो न हो। इन्सान अपने मालिक, सतगुरु को जर्रे-जर्रे में देख सकता है, लेकिन काम-वासना, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, मन-माया की मोतियाबिंद रूपी परतें उसकी आंखों पर जमी हुई हैं जिससे वह भगवान को अंदर होते हुए भी नहीं देख पाता। इन्सान अपने मालिक को जर्रे-जर्रे में देख सकता है, लेकिन इसके लिए आंखों के उस मोतियाबिंद (मन-माया और पांच चोर रूपी झिल्ली) को दूर करना होगा। इसकी एकमात्र दवा प्रभु का नाम, उसकी इबादत है। मालिक की भक्ति करने से आंखों पर जमा बुराई रूपी मोतियाबिंद खत्म हो जाता है और इन्सान सभी गमों से मुक्ति पा लेता है। पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि इन्सान जब गम, चिंता, परेशानी में होता है तो लोगों से राय लेता है। इसके लिए लोग तरह-तरह से सलाह देते हैं, कोई गलत तो कोई सही सलाह भी देता है।
इसलिए अगर सलाह ही लेनी है तो अपने उस मालिक, सतगुरु, परमात्मा से लेनी चाहिए, जिसने इन्सान का दिमाग बनाया है। आप जी फरमाते हैं कि राम कहीं बाहर नहीं इन्सान के अंदर ही है। बस सेवा, सुमिरन करके उसकी फीस भरते रहिए। आदमी बाहर भी तो फीस देता है। जिस तरह इन्सान अपने सलाहकार को रुपये, पैसे के रूप में फीस देता है, उसी तरह अपने मालिक को सुमिरन रूपी फीस अदा करते रहिए और वो मालिक इस फीस के बदले में आपको वो देगा जिससे इन्सान दोनों जहानों में खुशियों का हकदार बन जायेगा।
इसलिए इन्सान को सुमिरन करना चाहिए। इससे उसकी सोचने की शक्ति बढ़ेगी, दिमाग बढ़ेगा, परेशानियों से निकलने का रास्ता मिलता चला जायेगा और इन्सान परेशानियों से मुक्त हो जायेगा। इसलिए संत, पीर-फकीर सत्संग लगाते हैं, राम का नाम देते हैं। संत समझाते रहते हैं कि राम का नाम जपना चाहिए व बुरी आदतें छोड़ देनी चाहिए, क्योंकि बुरी आदतें आने वाले समय में इन्सान को दुखी करती हैं।
आप जी फरमाते हैं कि इन्सान को अपनी जुबान पर कंट्रोल रखना चाहिए, क्योंकि इन्सान की जुबान बहुत चलती है। जुबान चलानी ही है तो राम के नाम में चलानी चाहिए। चुगली, निंदा, बुराई, ईर्ष्या, नफरत, द्वेष के लिए जुबान नहीं चलानी चाहिए, बल्कि अल्लाह, राम की तरफ जितनी तेज जुबान कोई चलाता है उसकी झोलियां भी दया-मेहर से उतनी ही भरती चली जाएंगी, लेकिन ऐसा न होकर इसके उलट हो रहा है। लोग निंदा, चुगली बड़े मस्त होकर करते हैं, खूब जोर लगाते हैं। ऐसा लगता है कि पता नहीं कितना बड़ा काम कर रहे हों, लेकिन राम-नाम के लिए ऐसा कुछ भी नहीं करते।
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