Anmol Vachan : एक बार पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज को मलोट डेरे में गए हुए 10-12 दिन हो चुके थे क्योंकि वहां कुछ कमरों का निर्माण कार्य चल रहा था। मैंने पूजनीय परम पिता जी को वैराग्य में एक पत्र लिखा। चार-पांच दिन बाद उस पत्र का जवाब मिला। पूजनीय परम पिता जी ने फरमाया, ‘‘बेटा, फिक्र न कर, हम जल्दी ही आएंगे।’’ मुर्शिद के प्रेमी की ऐसी कशिश पैदा हुई कि दो-तीन दिन इंतजार करने के बाद मैं मलोट डेरे में ही पहुंच गया और पूजनीय परम पिता जी के दर्शन किए। Shah Satnam Ji
पूजनीय परम पिता जी ने मुझे आगे बुलाया और फरमाया, ‘‘आ जा भई, पीछे साहे (खरगोश) वांगू लुक के बह जांदा है, अग्गे बैठया कर।’’ जब मैं आगे आकर बैठा तो फिर फरमाया, ‘‘बेटा, हुण तां कम्म होया ही पया सी, बस असीं औण वाले ही सी, तूं भाड़ा क्यों लाया।’’ इस तरह पूजनीय परम पिताजी के दर्शन व वचनामृत से लाभान्वित होकर मैं उसी दिन वापिस सरसा अपने घर आ गया। दो दिन बाद मैं किसी कार्यवश सड़क के किनारे खड़ा था। अचानक मैंने देखा कि काफिले सहित पूजनीय परम पिता जी मलोट से वापिस आ रहे हैं।
प्यारे मुर्शिद की जीप मेरे पास आकर रूकी
प्यारे मुर्शिद की जीप मेरे पास आकर रूकी। मैंने पूजनीय परम पिता जी के दर्शन किए और नारा लगाया। प्यारे सतगुरू के दर्शन करके अन्त:करण खुशी से झूम उठा। पूजनीय परम पिता जी ने फरमाया, ‘‘आ भई लाल चंद, गड्डी विच बह जा, जे डेरे चलना है।’’ मैंने बिना सोचे समझे कह दिया, ‘पिता जी, मेरे पास साईकिल है, आप चलिए, मैं आ जाऊंगा।’ फिर पूजनीय परम पिताजी ने फरमाया,‘‘अच्छा भाई तेरी मर्जी है।’’ Shah Satnam Ji
मैं जीप के पीछे-पीछे साईकिल द्वारा डेरे में पहुंच गया। बाद में मुझे ख्याल आया कि लोग तो पूजनीय परम पिता जी की गाड़ी को सजदा करते हैं। मुझे तो उन्होंने खुद गाड़ी में बैठने के लिए कहा था परंतु मैंने इन्कार कर दिया। यह मुझसे बहुत बड़ी भूल हुई है, लेकिन वो समय तो निकल चुका था। मुझे बहुत पश्चाताप हुआ और आज भी है। Shah Satnam Ji
लाल चंद इन्सां, एमएसजी कॉम्प्लैक्स, सरसा (हरियाणा)