शुद्ध अंत:करण से मिलता है भगवान

Anmol vachan, Meditation

सरसा। पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि एक मुरीद ऐसा होता है, जिसके अंदर एक भावना, दृढ़-विश्वास होता है, उसके सामने दुनिया की तमाम वस्तुएं फीकी पड़ जाती हैं। पूज्य गुरु जी आगे फरमाते हैं कि किसी ने मालिक के प्यारे से पूछा कि सारी त्रिलोकी, दोनों जहान की दौलत एक तरफ रख दूं और तेरा प्रीतम प्यारा एक तरफ हो तो तू क्या करेगा? उसने जवाब दिया कि दौलत या सामान के बारे में बता देना कि वो किस तरफ है, क्योंकि उस तरफ मेरी पीठ रहेगी। उस तरफ देखूंगा भी नहीं, लेना तो दूर की बात। आप जी फरमाते हैं कि मालिक की मोहब्बत में चलना वही जानते हैं जो अपना सिर, हथेली पर रख लिया करते हैं। उसके प्यार में चलना कोई आसान काम नहीं है। इसमें सबसे बड़ी रुकावट उसकी खुदी है।

परमपिता परमात्मा को पाना जरूरी क्यों है?

जिस तरह एक म्यान में दो तलवारें नहीं रह सकती, उसी तरह एक शरीर में अहंकार और अल्लाह, वाहेगुरु का प्यार या वो मालिक एक साथ नहीं रहते। आदमी सोचता है कि उस परमपिता परमात्मा को पाना जरूरी क्यों है? इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि आपकी आत्मा काल की गुलाम है। यह जन्म-मरण के चक्कर में पड़ी हुई है और इससे मुक्ति दिलानी है और मुक्ति दिलाने का 84 लाख शरीरों में एक मात्र शरीर मनुष्य शरीर है। इसमें अगर आदमी सुमिरन कर ले तो आत्मा को मुक्ति मिल जाती है। पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि परमपिता परमात्मा को पाने का दूसरा सबसे बड़ा कारण है, आपके आने वाले भयानक कर्म। जैसे मालिक न करे कि आने वाले समय में आप बीमार पड़ जाएं। लाखों रुपए का खर्चा होगा।

एक बार शरीर बीमार होता है तो दुरुस्त होने में समय लगता है। तो कितना अच्छा हो कि वह बीमारी आने से पहले ही आप ठीक हो जाएं। इससे शरीर तंदुरूस्त रहेगा, लाखों रुपए भी बच जाएंगे। बदले में आपको सिर्फ अपने मन को साधना है। आत्मिक चिंतन करना है। आप गुरुमंत्र लेकर चलते, बैठते, लेटते, काम-धन्धा करते हुए गुरुमंत्र का जाप करते रहो, इससे आपके अंदर आत्मविश्वास आएगा और आने वाले पहाड़ जैसे कर्म भी चकनाचूर हो जाएंगे।

भगवान को पाने के लिए कोई धर्म नहीं छोड़ना

आप जी फरमाते हैं कि भगवान को पाने के लिए कोई धर्म नहीं छोड़ना पड़ता, कोई रुपया-पैसा नहीं देना और न ही कोई नोटों-वोटों का चक्कर होता है। भगवान को आपके पहनावे से कुछ लेना-देना नहीं होता। चाहे कोई नंगा ही घूमे, लोग जंगलों में और कई सरेआम समाज में घूमते हैं। भगवान को अगर पाना है तो अंत:करण पवित्र होना चाहिए।

अगर मालिक दिखावे में आता होता तो चतुर लोग मालिक को कब के खरीद लेते। भगवान को पाने के लिए इन्सान की भावना शुद्ध होनी चाहिए। जैसे शीशे पर धूल-मिट्टी जम जाती है तो आपको अपना चेहरा नजर नहीं आता। आप उसे साफ करते हैं तो मालिक ने जैसा आपको बनाया है, आपको नजर आएगा। बिल्कुल उसी तरह वो मालिक आपके अंदर है लेकिन आत्मा रूपी शीशे पर काम-वासना, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, मन-माया की इतनी मैल चढ़ी हुई है कि आपका शीशा बिल्कुल खराब हो गया है। इसे राम-नाम की भक्ति-इबादत के पानी से धो डालो तो दिलो-दिमाग का शीशा साफ हो जाएगा जिससे वो मालिक नजर आने लगेगा।

 

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