-बुराई और अच्छाई में हमेशा ही जंग रही है और जारी है
- -बुराई करने वालों का नामोनिशान नहीं मिलता: पूज्य गुरु जी
सरसा (सच कहूँ न्यूज)। पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि धर्म और अधर्म का युद्ध हमेशा चलता रहा है। (Anmol vachan DSS) बुराई और अच्छाई में हमेशा ही जंग थी और जारी है। लेकिन इतिहास गवाह है कि अल्लाह, वाहेगुरु, गॉड, खुदा, रब्ब का नाम लेने वाले पहले भी थे, अब भी हैं और उनके नाम आज भी अमर हैं। उनके नाम दोनों जहान में जगमगा रहे हैं, जबकि बुराई करने वालों का नामोनिशान नहीं मिलता। खुदगर्ज लोग बड़ा तड़प कर मरते हैं। उनका वो हश्र होता है कि न जीने में, न मरने में। समय लग सकता है लेकिन कलियुग है, हो सकता है मालिक ज्यादा समय न लगाए।
पीर, पैगम्बरों की काल के साथ हमेशा टक्कर रहती है : पूज्य गुरु जी
आप जी ने फरमाया कि आम इन्सान के साथ यही हाल होता रहता है। यह अलग बात है कि पीर, पैगम्बर, अवतारों की काल के साथ टक्कर रहती है, इतिहास गवाह है। श्रीराम जी को भगवान कहते हैं, लेकिन उन्होंने क्या बुरा किया था? श्रीराम जी को पुरुषोत्तम कहा गया यानि पुरुषों में उत्तम। यह कोई छोटी बात नहीं थी। श्रीराम जी अपनी मां को छोड़कर पहले दूसरी माताओं के पांव के हाथ लगाता था।
अपनी मां को भी प्यार देना यह कायदा था। उनके पिता ने उन्हें नहीं बताया था कि कैकेई का यह वचन है लेकिन राम जी ने खुद पता करवाया। जब वचन के बारे में पता चला तो उसी समय वनवास के लिए तैयार हो गए। कहने का मतलब है कि उनका नाम आज भी है और उनका कोई बाल भी बांका नहीं कर सका।
जो रूहानियत में आगे बढ़ता है वो बेइन्तहा खुशियां पाता है: पूज्य गुरु जी
आप जी ने फरमाया कि इन्सान जब रूहानियत में आगे बढ़ता है तो उसे बेइन्तहा खुशियां मिलती हैं। टोकने वाले टोकते हैं, रोकने वाले रोकते हैं लेकिन मालिक के नाम का आशिक दौड़ा चला आता है और खुशियां हासिल करता है। वह राम-नाम से अपने कदम कभी वापिस नहीं खींचता।
अल्लाह, मालिक की याद में आकर बैठता है और वहां बरसने वाली मालिक की दया-मेहर, रहमत को हासिल जरूर करता है। इसकी निशानी यह है कि उसे जो सुकून, चैन, आनन्द मिलता है वो बाहर की दुनिया में कहीं से खरीदा नहीं जा सकता क्योंकि जहां मालिक की चर्चा होती हो, कहते हैं कि वहां मालिक खुद विराजमान होकर दया-मेहर, रहमत लूटाते हैं।
आप सही हैं तो मालिक अपने आप रहमत करेगा
आप जी ने फरमाया कि इन्सान निंदा-चुगली करता है लेकिन इन्सान को सिर्फ अपने तक सीमित रहना चाहिए। अगर आप सही हैं तो बढ़िया है, मालिक अपने आप रहमत करेगा लेकिन दूसरों को देखकर आप दुखी होते हैं तो खुशियां कैसे मिलेगी? इसलिए इन्सान को अपने अवगुण देखने चाहिए, किसी दूसरे के नहीं।
आप जी ने आगे फरमाया कि इन्सान अपने अंदर जो कुछ देखता है वह निकल जाता है और जो कुछ दूसरों में देखता है वह उसके अंदर आ जाता है। इसलिए अगर दूसरे में अवगुण देखते हो तो वो अवगुण आपके अंदर आ जाएंगे और गुण देखोगे तो आपमें गुण आ जाएंगे। इसलिए अपने अंदर अगर देखना है तो अवगुण देखो और दूसरों में गुण देखो ताकि आप गुणवान बन जाओ और दोनों जहानों में परमात्मा की खुशियों से मालामाल हो जाओ।
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