प्रभु की बनाई जन्नत जैसी चीजों को बर्बाद कर रहा इन्सान
बरनावा। (सच कहूँ न्यूज) इन्सान ने प्रभु की प्रकृति से छेड़छाड़ कर रखी है और प्रकृति वापिस बदला ले रही है, क्योंकि कुदरत के कादिर ने क्या खूबसूरत इस जमीं पर स्वर्ग बना रखे हैं अलग-अलग तरह के। मैदानी इलाके में जाइए सरसों के खेत होते हैं, उसमें जब आप निगाह मारते हैं, कभी ऊपर से निगाह मारी आप लोगों ने, चलो साइड से तो निगाह मारी है, पर हमने तो देखा है, यू लगता है कि क्या खूबसूरत पीले रंग का कालीन बिछा हुआ है, धरती ने क्या श्रृंगार कर रखा है तो वो एक अलग तरह का स्वर्ग है। धरती पे चावल की खेती होती है, जीरी कह लीजिये, धान कह लीजिये जब उसपे निगाह मारते हैं तो यूं लगता है किसी ने खूबसूरत हरे रंग का गलीचा बिछा रखा है।
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देखने का नज़रिया आपको रोज कहते हैं अलग होता है। हमने तो राजस्थान के टीलों में भी ऊपर चढ़कर देखा, वो टीले भी यूं लगते हैं कि कुदरत के कादिर ने क्या खूबसूरत डिजाइन बना रखे हैं, क्या उनकी धार होती है और हवा चलने से क्या उनके एक निशान पड़े होते हैं। वो एक अलग तरह का स्वर्ग है। बस देखने का नज़रिया होना चाहिए। पहाड़ी इलाके में जाइये, वो अपने आप में अलग तरह का स्वर्ग है। तो कितनेक गिनाएं कुदरत के कादिर ने इतने स्वर्ग बना रखे हैं। किसके लिए, पशु, पक्षी, परिंदे सबके लिए है, पर उनका लुत्फ, उनका नजारा लेता है सबसे ज्यादा मनुष्य, वो समझता है उन चीजों को, इन्जवॉय करता है, उसे खुशी आती है ये सब देखके।
पूज्य गुरू जी ने फरमाया कि बड़ा दर्द होता है, बड़ा दु:ख होता है जब इन्सान प्रभु की बनाई इन स्वर्ग जन्नत जैसी चीजों को बर्बाद कर रहा है, तबाह कर रहा है और वहां पर अपने नए-नए डिजाइन के मकान बनाता जा रहा है, कंकरीट के महल-माडिया बनते जा रहे हैं। आपजी ने फरमाया कि कुदरत ने जो भी चीज बनाई होती है वो बिना वजह नहीं बनाई होती। सबकी अपनी-अपनी वजह होती है, सबका अपना-अपना कारण होता है। पर ये (इन्सान) दखलंदाजी कर रहा है, उसको बर्बाद करने पर तुला हुआ है आज का इन्सान। जीने का स्रोत सबसे बड़ा पानी और हवा है। महानगरों में जाइये अगर कोई गाँव से पहली बार जाएगा उसे खींच-खींच कर साँस लेनी पड़ेगी, कारण, इतना पॉल्यूशन, इतना प्रदूषण बढ़ गया है कि कहने-सुनने से परे। हवा में जहर घुलता जा रहा है, शरीर में शायद 70 से 90 पर्सेंट पानी ही होता है, वो स्रोत नीचे चले जाते जा रहे हैं, कोई फिक्र नहीं आप लोगों को, बिना वजह पानी की बर्बादी करते चले जा रहे हैं, बिना वजह आप उस पानी का खात्मा करते जा रहे हैं जो शरीर के लिए अति, अति जरूरी है।
तो ये ख्याल तभी आएंगे जब थोड़ा सा समय मालिक की याद में लगाएंगे, वरना किसको ख्याल है। पूज्य गुरू जी ने फरमाया कि आपको पता है, महानगरों में तो पड़ोसी को पड़ोसी का पता नहीं, उसकी तरफ कोई ध्यान नहीं देता। सारी सृष्टि का सोचना, बेचारे सोचने वाले परेशान हो रहे हैं। आप मजे में हो, मस्ती मना रहे हैं। उन साइंटिस्ट, उन वैज्ञानिकों से पूछकर देखो जो डर रहे हैं कि पानी का स्रोत खत्म हो गया तो कहीं पानी के लिए विश्व युद्ध ना हो जाए। क्योंकि उनको पता चल रहा है, पर कुदरत के कादिर को कौन समझ सका है। समझता तो ये भूकंप से नुक्सान कभी होते ही ना। अगर कोई कुदरत के कादिर के उसूलों को पकड़ पाता तो कभी समुद्री तूफान आते ही ना, कभी दुर्घटनाएं होती ही ना, प्राकृतिक आपदाएं आती ही ना, ये तभी संभव था अगर इन्सान प्रकृति से छेड़छाड़ ना करता।
साल में 12 पेड़ अवश्य लगाएं
पूज्य गुरू जी ने फरमाया हम लोगों ने बहुत साल पहले एक पहल की थी। उस वक्त जरूरत पड़ी थी मकान बनाने की और पड़ती है हर किसी को। तो आश्रम, डेरा जहां-जहां भी बना पेड़-पौधे थे। हमने फिर 1997 में एक डिजाइन बनाया था लोहे की एक बकेट टाइप और नीचे ये पेड़ के चारों तरफ खड्ढा खोदकर पेड़ की जड़ों वाली मिट्टी पर वो बकेट फिट करते थे और उस पेड़ को सुरक्षित क्रेन की मदद से दूसरी जगह शिफ्ट कर देते थे और एक भी पेड़ खत्म नहीं होने दिया। बड़े-बड़े पेड़ शिफ्ट किए और उन जगहों पर मकान बना लिए और उन पेड़ों को कह दिया कि भाई थोड़ी देर के लिए तेरे को बीमारी सी तो आएगी, सॉरी कोई बात नहीं ठीक हो जाएगा। वो पेड़ ज्यों के त्यों चल रहे हैं और मकान भी बन गए। जैसे आप अपने बच्चों की संभाल करते हैं, ऐसे ही पेड़ों की भी संभाला करो।
और हमने आपसे कह रखा है, ज्यादा नहीं तो कम से कम साल में 12 पेड़ जरूर लगाया करो, सोचिए छह करोड़ बच्चे अगर 12 पेड़ साल में लगाएंगे तो कितने बढ़ते जाएंगे। हमने ये निरंतर जारी रख रखा है, वहां भी रह रहे हैं तो कोई न कोई पेड़-पौधे, जैसे मान लीजिये नीम पुराना लगा हुआ है तो उसके नीचे से, नीम के जो बीज होते हैं वो गिरते हैं तो उनके पौधे बन जाते हैं तो उनको हम वहां से लेकर और साइड पर लगा देते हैं। कहने का मतलब, अगर सारे ही ऐसा करने लग जाएं तो ये कुदरत का स्वर्ग फिर से लहलहाने लग जाएगा और हम आपको गारंटी देते हैं कि प्राकृतिक आपदाएं आनी कम हो जाएंगी। विनाश की ओर जा रही ये दुनिया शायद, शायद परमपिता परमात्मा की कृपा से बच पाए, ओउम, हरि, ईश्वर कृपा कर दें और ये सृष्टि की रचना बची रहे।
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