पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि वो भगवान, अल्लाह, राम कण-कण, ज़र्रे-ज़र्रे में मौजूद है। कोई जगह उससे खाली नहीं है। हर जगह वो रहता है। हर समय, हर पल, हर किसी को बोलता रहता है लेकिन उस आवाज को सुनने वाले बहुत कम लोग होते हैं।
मन की आवाज सुनकर लोग गुमराह होते रहते हैं लेकिन अपने सतगुरु, मौला की वो आवाज जो हमेशा अंदर धुनकारें देती हैं, अनहद नाद उसको सुनने के लिए इन्सान के पास समय नहीं है जबकि दूसरे धंधों में दिन-रात लगा देता है। इन्सान अल्लाह, वाहेगुरु की उस सुरीली, अनोखी, मस्ती से भरी आवाज को सुनने के लिए थोड़ा सा समय भी लगाना नहीं चाहता। जब तक आप उस मालिक की याद में समय नहीं लगाएंगे तो न मन काबू होता है और न ही काम-वासना, क्रोध, मोह, अहंकार, लोभ, मन-माया को जीता जा सकता है।
पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि सुमिरन करना जरूरी है। चलते, बैठकर, लेटकर, काम-धंधा करते हुए जितना भी सुमिरन कर सकते हो करो, कोई पाबंदी नहीं। यदि ज्यादा खुशियां हासिल करना चाहते हो, मालिक से जल्दी मिलना चाहते हो तो कम से कम घंटा सुबह और घंटा शाम को सुमिरन करो। सुमिरन के लिए सुबह का समय 2 बजे से 5 बजे का बढ़िया माना गया है और शाम का समय रोटी खाने से पहले अच्छा है या फिर रोटी खाने के अढ़ाई-तीन घंटे बाद। आप एक घंटा मालिक को याद करें। निरंतर यह रूटीन बन जाए।
यह सोचकर मालिक को मत याद करो कि मालिक मिलेगा तो जाप करूंगा, भक्ति करूंगा। यह गलत है। यह सोचना गलत नहीं है कि मालिक मिले लेकिन शर्त लगा लेना कि मैं तो सात दिन, दस दिन, पन्द्रह दिन या महीना सुमिरन करूंगा, ऐसा सोचना गलत है। यह सोचकर सुमिरन कीजिए कि यह तो मेरा कर्म है।
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