जिदंगी का सफर : पोस्ट मास्टर पति के देहांत के बाद मिली थी डाकिए की नौकरी(Anita Yadav struggled)
संजय मेहरा / सच कहूँ गुरुग्राम। 21वीं सदी में जब दुपहिया, चौपहिया पर सवार होकर दुनिया दौड़ रही है, वहीं इस सदी में मिलेनियम सिटी में एक महिला ऐसी है, जो पैदल चलते हुए ही अपने काम को अंजाम तक पहुंचाती है। वह पिछले 13 साल से पैदल घूमकर अपनी नौकरी कर रही है और करीब 50 हजार किलोमीटर पैदल चल चुकी है। उसे अपने पांवों पर विश्वास है और अपने कदमों से उसने शहर के कई इलाकों को मापा है। कोई भी दूरी उसे दूरी नहीं लगती।
- वह जुनून के साथ अपना काम करती है।
- न तो उसके रास्ते में सर्दी रोड़ा बनती है और ना ही गर्मी।
कम वेतन में घर का खर्च चलाने के साथ बच्चों की अच्छी पढ़ाई कराना चुनौती थी
उस कर्मठ महिला का नाम है अनीता यादव। मात्र दसवीं पास अनीता को डाकखाने में अपने पति अशोक कुमार के देहांत के बाद जनवरी 2008 में डाक विभाग में डाककर्मी (पोस्ट वूमेन) की नौकरी मिली थी। मूलरूप से गुरुग्राम के गांव जमालपुर की रहने वाली अनीता यादव के तीन बच्चे दो बेटे व एक बेटी हैं।
- पति के देहांत के बाद सारी जिम्मेदारी उनके कंधों पर आ गई।
- कम वेतन में घर का खर्च चलाने के साथ बच्चों की अच्छी पढ़ाई कराना चुनौती थी।
- अनीता ने इस चुनौती को स्वीकारा और एक-एक पैसे का प्रबंधन करके सब कुछ मैनेज किया।
- आज उनका एक बेटा कस्टम में नौकरी करता है तो दूसरे का एक्सपोर्ट का बिजनेस है।
- वह 15 दिन भारत में रहता है और 15 दिन विदेश (ढाका) में।
- बेटी केंद्रीय विद्यालय में टीचर लग चुकी हैं।
- वह चेन्नई में नौकरी कर रही है।
- यानी परिवार पूरी तरह से सेट हो चुका है।
एक दिन में 15 किमी. से अधिक चलती है अनीता
अनीता यादव ने अपने डाक वितरण का गुरुग्राम का क्षेत्र जब सांझा किया तो समझ में आया कि वह औसतन रोजाना 15 किलोमीटर पैदल चलकर डाक बांटती है। इस हिसाब से वह अपनी नौकरी के 13 साल के सफर में 50 हजार किलोमीटर से अधिक पैदल चलते हुए डाक बांट चुकी हैं। गुरुग्राम के मुख्य डाकघर सदर बाजार व इसके आसपास का काफी क्षेत्र उन्हें के दायरे में आता है। वे रजिस्ट्री व आॅर्डिनरी डाक मिलाकर रोजाना करीब 300 डाक वितरित करती हैं। कंधे पर थैला, हाथों में डाक अगर ना हों तो अनीता को सूनापन लगता है। क्योंकि उसकी बोझ उठाने की भी आदत सी बन गई है।
बच्चों को संस्कारित बना किया कामयाब
अपने अतीत में झांकते हुए अनीता कहती हैं कि पति अशोक कुमार के देहांत के बाद तीन बच्चों की परवरिश को लेकर चिंता जरूर हुई, लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी। ना तो खुद परिवार का कहीं सिर नीचा होने दिया और ना ही बच्चों की वजह से उसे कभी कोई परेशानी हुई। बच्चों को भी शिक्षा दी कि जीवन में ईमानदारी के साथ कामयाबी हासिल करें। अनीता कहती हैं कि अपनी करीब 13 साल की नौकरी में उन्होंने कभी कामचोरी नहीं की। पूरी जिम्मेदारी के साथ काम किया। हर डाक को उसकी मंजिल तक पहुंचाने के लिए कई-कई बार चक्कर लगाने पड़ते हैं। उन्होंने लगाए।
- अनीता के बारे में यहां लोग भी दावे के साथ इस बात को कहते हैं
- उन्होंने सदा जिम्मेदारी के साथ अपनी ड्यूटी निभाई है।
जरूरी हो, तभी लेती हैं छुट्टियां
अपने काम के प्रति जुनूनी अनीता यादव कहती हैं कि वह छुट्टी लेकर घर में आराम करने की बजाय काम को अहमियत देती हैं। अपने काम को पेंडिंग रखना उन्हें पसंद नहीं। उनका कहना है कि डाक ऐसी चीज है, जिससे किसी का भविष्य भी जुड़ा होता है। किसी का और बहुत जरूर डॉक्यूमेंट होता है। अगर हम ही उसे पहुंचाने में देरी करते हैं तो वह अपने फर्ज में कोताही होगी। हर डाक को वह उसी दिन संबंधित व्यक्ति तक पहुंचाने का प्रयास करती है। यह अलग बात है कि कोई पते पर ना मिले। डाक विभाग में वैसे तो छुट्टियां भी कम मिलती हैं, लेकिन उसने खुद भी छुट्टियां कम ही ली।
हर कोई उनके काम को करता है सेल्यूट
खाकी वर्दी, कंधे पर थैला, थैले और हाथ में एरिया वाइज डाक होती हैं। जिस एरिया में वह जाती हैं, उसी एरिया की डाक थैले से निकालकर हाथ में रखती हैं। बच्चे से युवा हुए और युवा से अधेड़ हुए लोग जब अनीता को देखते हैं तो उसके जज्बे को सेल्यूट करते हैं। हर किसी की जुबां से अनीता के सम्मान में कशीदे सुने जा सकते हैं।
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