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गुरुग्राम के फोर्टिस अस्पताल में की गई यह सफल सर्जरी
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जन्म से ही दुर्लभ व जटिल किस्म के लीवर ट्यूमर से ग्रस्त थी बच्ची
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यह बीमारी प्रति मिलियन में 1.2 बच्चों में पाई जाती है
गुरुग्राम। (सच कहूँ/संजय कुमार मेहरा) नेपाल की मात्र 8 दिन की एक बच्ची को गुरुग्राम में जीवनदान मिला है। जन्म से ही वह कैंसर लीवर ट्यूमर की दुर्लभ किस्म हिपाटोब्लास्टोमा से ग्रस्त थी। हिपेटोब्लास्टोमा एक दुर्लभ ट्यूमर (असामान्य किस्म का टिश्यू ग्रोथ) है, जो लीवर की कोशिकाओं में पैदा होता है। यह शुरूआती बाल अवस्था में कैंसरस (मैलिग्नेंट) लीवर ट्यूमर होता है। जिसकी संभावना प्रति मिलियन में 1.2 होती है, जबकि जन्मजात हिपेटोब्लास्टोमा और भी दुर्लभ होता है। नवजातों में लिवर ट्यूमर्स का डायग्नॉसिस एवं उपचार काफी चुनौतीपूर्ण होता है। उपचार के लिए बच्ची को यहां फोर्टिस अस्पताल में भर्ती कराया गया। उसके पेट की अल्ट्रोसोनोग्राफी की गई, जिससे पता चला कि उसके लीवर के दो सैगमेंट्स में ट्यूमर हैं। बच्ची की तुरंत कीमोथैरेपी शुरू की गई। इसके बाद सर्जरी तथा उसके बाद फिर से कीमोथैरेपी दी गई। प्रिंसीपल डायरेक्टर, पिडियाट्रिक हिमेटोलॉजी, ओंकोलॉजी एंड बीएमटी, फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट के प्रिंसीपल डायरेक्टर डॉ. विकास दुआ के मुताबिक नेपाल से यहां लायी गई बेबी क्षिरसा रिमल श्रेष्ठ मात्र आठ दिन की हुई तो उसके लीवर में बीमारी का पता चला। जिसका एंटीनेटल स्कैन में पता चला था।
बच्ची की कम उम्र में सर्जरी थी चुनौतीपूर्ण
नवजात की उम्र के चलते यह मामला काफी चुनौतीपूर्ण था। शिशु ने ना सिर्फ कीमोथैरेपी को झेला, बल्कि इस मामले में कोई बड़े साइड इफेक्ट्स भी सामने नहीं आए। जिन जोखिम ग्रस्त शिशुओं के मामले में कीमोथैरेपी और रीसेक्शन का रिस्पॉन्स अच्छा मिलता है, उनके आगे उपचार की संभावनाएं भी बेहतर होती हैं। कीमोथैरेपी की डोज काफी कम रखी गई थी। इसलिए सर्जरी में काफी सावधानी बरतनी थी।
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फेल हो सकता था लीवर
यह मैलिग्नेंट ट्यूमर का मामला था। ऐसे में लीवर फेल भी हो सकता था और शिशु के लिए यह जीवनघाती हो सकता था। सफल सर्जरी के बाद अब बच्ची 3 महीने की हो चुकी है। अस्पताल के पिडियाट्रिक ओंकोलॉजी में उसका लगातार उसका फोलो अप लिया जा रहा है। बच्ची के सफल उपचार में डॉ. विकास दुआ के अलावा डॉ. अरुण दानेवा, डॉ. मीनाक्षी बंसल, डॉ आनंद सिन्हा, डॉ. टीजे एंथली की टीम की भूमिका रही।
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