हांगकांग विवाद में अमेरिकी फांस

American trap in Hong Kong dispute
हांगकांग की स्वायत्तता संबंधी विधेयक पर हस्ताक्षर कर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चीन के विरूद्ध एक ओर मोर्चा खोल दिया है। हांगकांग ऑटोनोमी ऐक्ट के नाम से लाया गया यह विधेयक इस महीने के आरंभ में अमेरिकी कांग्रेस द्वारा पारित किया गया था। ट्रंप के हस्ताक्षर के बाद हांगकांग को व्यापार में तरजीह देने वाली व्यवस्था खत्म हो जाएगी । साथ ही इस कानून के जरिए अमेरिका को हांगकांग में दमन करने वालों पर प्रतिबंध लगाने का अधिकार भी मिल जाएगा। दक्षिण चीन सागर में चीन के दावे को खारिज करने के बाद ट्रंप के इस फैसले को चीन के साथ आरपार की लड़ाई के तौर पर देखा जा रहा है।
दरअसल, बीती 1 जुलाई को चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अपने देश की संसद (नेशनल पीपुल्स कांग्रेस) द्वारा पारित कानून के एक ऐसे मसोद पर हस्ताक्षर किए थे जो हांगकांग की स्वायतता का खत्म करने वाला था। जिनपिंग ने जिस दिन (1 जुलाई ) हांगकांग में चीन के राष्ट्रीय सुरक्षा कानून को लागू किए जाने वाले विधेयक पर हस्ताक्षर किए थे संयोगवश उसी दिन हांगकांग प्रशासन ब्रिटेन की शासन सत्ता से मुक्त होकर चीन के नियंत्रण में आने की 23 वीं वर्ष गांठ मना रहा था। हालांकि चीनी संसद ने मई के अंतिम सप्ताह में ही विवादास्पद सुरक्षा कानून को मंजूरी देकर हांगकांग की स्वायत्तता को खत्म करने की दिशा में कदम बढ़ा दिया था। अब इस कानून के लागू हो जाने के बाद हांगकांग के भीतर चीन के अधिकारों को कमजोर करने वाली किसी भी गतिविधि के लिए व्यक्ति को दंडित किया जा सकेगा। निसंदेह इस कानून के आने से हांगकांग पर चीन का नियंत्रण और मजबूत हो गया है।
नेशनल पीपुल्स कांग्रेस में कानून के मसोदे को प्रस्तावित किए जाने के बाद से हांगकांग में लगातार विरोध प्रदर्शन हो रहे हंै। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि कानून के लागु हो जाने के बाद उनके लोकतांत्रिक अधिकार समाप्त हो जाएंगे और सरकार को चीन के नेतृत्व पर सवाल उठाने, प्रदर्शन में शामिल होने और स्थानीय कानून के तहत अपने मौजूदा अधिकारों का उपयोग करने के लिए हांगकांग निवासियों पर मुकदमा चलाए जाने का अधिकार प्राप्त हो जाएगा । कानून में देशद्रोह, आतंकवाद, विदेशी दखल और विरोध प्रदर्शन जैसी गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाया गया है। कुल मिलाकर कहा जाए तो चीन ने हांगकांग आंदोलन को बल पूर्वक ढंग से दबाने के लिए इस कानून की रचना की है। दूसरी ओर हांगकांग के अधिकारी बार-बार तर्क दे रहे हैं कि कानून का निर्माण हांगकांग के लोगों के अधिकारों को छीनने के लिए नहीं किया गया है, बल्कि इसका असल मकसद देश के भीतर बढ़ती हिसां और आतंकवाद पर लगाम लगाना है। क्षेत्र के लोगों को इससे डरने की जरूरत नहीं है।
उधर, ट्रंप प्रशासन शुरू से चीन के राष्ट्रीय सुरक्षा कानून की आलोचना कर रहा है। उनका कहना है कि इस कानून के लागू हो जाने के बाद हांगकांग के लोगों के अधिकार और उनकी आजादी खत्म हो जाएगी। अमेरिका के साथ-साथ ब्रिटेन, कनाडा, आॅस्ट्रेलिया और यूरोपीय संघ भी चीन के इस कानून की आलोचना कर रहे हंै। इनका भी मानना है कि चीन ने हांगकांग के नागरिकों की आजादी पर हमला और अंतरराष्ट्रीय समझोते का उल्लंघन किया है। दूसरी ओर चीन का कहना है कि हांगकांग का राष्ट्रीय सुरक्षा कानून चीन का आंतरिक मामला है, किसी बाहरी देश को इसमें हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है।
सच तो यह है कि हांगकांग के विरोध प्रदर्शनों के चलते दुनियाभर में चीन की विस्तारवादी नीति पर सवाल उठने लगे हैं। चीन नहीं चाहता कि हांगकांग मामले का अंतरराष्ट्रीयकरण हो। राष्ट्रपति डोनाल्ड टंज्प के हांगकांग में प्रदर्शनकारियों को समर्थन देने संबंधी विधेयक पर हस्ताक्षर कर देने के बाद चीन की चिंता और अधिक बढ़ गयी थी। ऐसे में चीन सुरक्षा कानून के जरिए हांगकांग के प्रदर्शनकारियों को नियंत्रित करना चाहता हैं। हांगकांग चीन के दक्षिणी-पूर्वी तट पर कैण्टन (पर्ल) नदी के मुहाने पर स्थित 230 से अधिक छोटे-मोटे द्वीपों का समूह है। प्रथम अफीम युद्ध में चीन की पराजय के बाद हांगकांग ब्रिटेन का उपनिवेश बन गया। 1 जुलाई 1997 में ब्रिटेन ने कुछ शर्तों के साथ हांगकांग की संप्रभुता पुन: चीन को सौंप दी। इन शर्तों में एक मुख्य शर्त यह थी कि चीन हांगकांग की पूंजीवादी व्यवस्था में हस्तक्षेप नहीं करेगा।
चीन ने भी रक्षा व विदेश मामलों को छोड़कर हांगकांग की प्रशासकीय व्यवस्था से छेड़छाड़ न करने व पूंजीवादी व्यवस्था को आगामी 50 वर्षों ( साल 2047) तक बनाए रखने का आश्वासन दिया। इस प्रकार एक देश दो प्रणाली के सिद्धांत के आधार पर हांगकांग का विलय चीन में हो गया। इसी सिंद्धात के आधार पर हांगकांग को अर्द्ध स्वायतत्ता का दर्जा हासिल है, और वहां के लोग लोकतांत्रिक तरीके से अपनी आवाज उठाते आएं है। जिस वक्त हांगकांग का विलय चीन में किया गया था उस वक्त चीन इस बात को लेकर राजी था कि हांगकांग का प्रशासन हांगकांग के अधिकारियों की इच्छा व हांगकांग के कानूनों व नियमों के अनुसार ही संचालित होगा। लेकिन समय के साथ चीन की नियत में खोट आने लगा ।
हांगकांग के प्रति चीन का मोह केवल इसलिए नहीं है कि हांगकांग दुनिया का एक महत्वपूर्ण बंदरगाह अथवा विश्व का पांचवां सबसे बड़ा स्टॉक एक्सचेंज है। इसके पीछे उसे कहीं न कहीं तिब्बत और झिंगझियांग दिखाई देता है। हांगकांग की स्वायत्तता का अर्थ होगा देर सबेर तिब्बत और झिंगझियांग की स्वायत्तता का समर्थन करना। यही कारण है कि साम्यवाद के प्रति प्रेम का दिखावा कर चीन इस पूूंजीवादी व्यवस्था वाले प्रदेश में लोकतंत्र को बलपूर्वक दबाए रखना चाहता है।
हालांकी अमेरिका और हांगकांग के बीच प्रतिवर्ष अरबों डॉलर का व्यापार होता है। टंज्प के निर्णय के बाद पिछले 23 साल से विशेष और वित्तीय दर्जे का लाभ उठा रहे हांगकांग को उन समस्त लाभों से वंचित होना पडेगा, इससे हांगकांग के साथ-साथ अमेरिका की व्यापारिक गतिविधियां तो प्रभावित होगी ही साथ ही अमेरिका से बाहर यूरोप व एशिया के बड़े देश भी अस्थिर हांगकांग में निवेश करने से कतराने लगेगे। निसंदेह ट्रंप के इस फैसले से हांगकांग आर्थिक रूप से कमजोर होगा। उसकी स्थिति भी चीन की तरह हो जाएगी। अमेरिका से प्राप्त विशेष व्यापार के दर्जे के तहत मिल रही सुविधाओं के समाप्त होने के बाद हांगकांग के लिए कड़ी प्रतिस्पर्धा वाले मुक्त बाजार में टिक पाना मुश्किल हो जाएगा। हो सकता है, ट्रंप चीन की तरह हांगकांग पर भी भारी-भरकम टैरिफ लगा दे। अगर ऐसा होता है तो निश्चय ही हांगकांग आर्थिक रूप से कमजोर होगा। बहुत से लोग हांगकांग छोड देगे। हांगकांग के आर्थिक नुकसान से चीन की अर्थव्यवस्था भी प्रभावित होगी। इसका अर्थ यह है कि अमेरिका और चीन के बीच पहले से चल रहा व्यापार युद्ध और तेज हो सकता है। अगर ऐसा होता है, तो कोरोना महामारी के वैश्विक संकट के बीच यह अच्छी खबर नहीं होगी।
पूरे मामले का सबसे चिंताजनक पहलु अमेरिका और चीन के बीच उपजी तनातनी है। अब हांगकांग ऑटोनोमी कानून के रूप में अमेरिका के पास एक ऐसा अस्त्र आ गया है, जिसके जरिए वो हांगकांग की आजादी को खत्म करने में शामिल व्यक्तियों और संस्थाओं को जिम्मेदार ठहराकर उप पर प्रतिबंध लगा सकता है। कानून में हांगकांग के साथ लेनदेन करने वाले बैकों पर प्रतिबंध लगाने तथा हांगकांग में सुरक्षा कानून को लागू करने वाले वाले चीनी अधिकारियों और कंपनियों पर भी प्रतिबंध लगाये जाने की संभावना है। दक्षिण चीन सागर में चीन के दावे को अस्वीकार कर ट्रंप ने चीन को एक तरह से चुनौती दी है, अब हांगकांग दोनो देशों कं बीच तनातनी का नया मुद्दा बन सकता है।
एन.के. सोमानी

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