अमेरिका: आम नागरिकों के हाथों में हथियार क्यों?

Hanumangarh News
सांकेतिक फोटो

अमेरिका के कैलीफोर्निया में जिस तरह एक व्यक्ति ने एक बार में अचानक गोलियां चलाकर एक पुलिस अधिकारी सहित बारह लोगों को मारा डाला, इस खौफनाक एवं भयावह घटना ने दुनियाभर को आहत किया है, झकझोर दिया है। अमेरिका में दो सप्ताह से भी कम समय के अंदर भीषण एवं भयावह गोलीबारी की यह दूसरी घटना है। चारों ओर खून-ही-खून नजर आ रहा था। बार में मौजूद लोगों के अनुसार काले कपड़ों वाला एक लंबा आदमी जिसने हुड पहन रखा था, उसने सबसे पहले दरवाजे पर मौजूद व्यक्ति पर गोली चलाई।

बाद में हमलावर ने लोगों पर अंधाधुंध फायरिंग की। लोगों के मुताबिक घटना के समय बार में कालेज के युवा छात्रों की पार्टी चल रही थी, गोलीबारी की इस घटना से वे दहशत में आ गए और खुद को गोलियों से बचाने के लिए बार के अलग-अलग हिस्सों में भागे। कई युवकों ने बार की कुर्सियों को खिड़की से बाहर फेंका और इस तरह से कई ने अपनी जान बचाई। इस तरह लोगों में पनपती हिंसक मानसिकता एवं हिंसक होते समाज को लेकर एक बार फिर दुनियाभर में चिंता जताई जाने लगी है।

अमेरिका सहित दुनिया में इस तरह की हिंसक एवं नृशंस मानसिकता का पनपना चिन्ता का विषय है। आज मनुष्य मनुष्य के बीच हिंसक स्थितियां बढ़ रही है, कोई किसी को सह नहीं पा रहा है, किसी का किसी पर विश्वास नहीं रहा, प्रतिक्षण मौत की दहशत जागती है। युवाशक्ति के गुमराह, सनकी एवं असंतुलित होने के प्रसंगों की दीर्घ परम्परा हमारे सामने है। प्रश्न है कि आखिर युवाओं को हम इन अंधी सुरंगों में क्यों धकेल रहे हैं? जिस व्यक्ति ने गोलीबारी की उसने खुद को भी गोली मार ली। अमेरिका में इस तरह किसी सनक या खुंदक की वजह से बेवजह किसी पर गोली चला देने की घटनाएं लगातार बढ़ी हैं।

इसकी एक वजह तो यह है कि यहां हथियार रखने की खुली छूट है, हथियारों के प्रयोग की खुली जमीन। कई बार इस छूट को समाप्त करने की सिफारिश की जा चुकी है। पर इस दिशा में कोई सकारात्मक कदम नहीं उठाया जा सका है। इसके अलावा, एक वजह यह भी है कि वहां के युवाओं में रोजगार आदि की समस्या के चलते तनाव और अवसाद का स्तर बढ़ रहा है। इससे भी कई युवाओं में हिंसक और आपराधिक मानसिकता तेजी से विकसित हो रही है। क्या विकास के लम्बे-चैडे़ दावे करने वाली अमेरिकी सरकार ने इसके बारे में कभी सोचा? क्या विकास में बाधक इस समस्या को दूर करने के लिये सक्रिय प्रयास शुरू किए?

क्या हिंसा की प्रवृत्ति को बल देने वाले राष्ट्रों ने अहिंसा को विकसित करने के बारे में ठोस कदम उठाये? विचित्र है कि जो देश दुनिया भर में अपनी संपन्नता और सुरक्षा के मामले में सख्ती के लिए जाना जाता है, वहां के नागरिक खुद उसकी सुरक्षा के लिए खतरा साबित हो रहे हैं। हिंसा के बीज बोने वाले स्वयं हिंसा का शिकार हो रहे हैं? ऐसे अनेक प्रश्नों एवं खौफनाक दुर्घटनाओं के आंकड़ों ने दुनिया को चेताया है और गंभीरतापूर्वक इस गंभीर एवं चिन्ताजनक समस्या पर विचार करने के लिये जागरूक किया है, लेकिन क्या कुछ सार्थक पहल होगी?

हिंसा की इस वीभत्स एवं त्रासद घटना से जिन्दगी इतनी सहम गयी है कि गलत धारणाओं को मिटाने के लिये इस तरह की विकृत सोच एवं तथाकथित विकास से जुड़े शत्रु को पीठ के पीछे नहीं, सामने रखना होगा। सोचना होगा कि खुशहाली का पैमाना सिर्फ आर्थिक सम्पन्नता, शक्ति एवं सत्ता नहीं हो सकता। हमें मानवीय मूल्यों के लिहाज से भी विकास की परख करनी होगी। अमेरिका, ब्रिटेन आदि देशों ने आर्थिक स्तर पर संपन्नता तो हासिल कर ली है, पर हकीकत यह भी है कि इसके चलते उनके नागरिकों में ऐशाआराम की सुविधाओं को ही अपना अधिकार मानने जैसी कई विकृतियां भी पैदा हो गई हैं।

सुरक्षा के नाम पर इन देशों में लोगों को हथियार रखने की छूट दी गई है। पर इसका नतीजा यह देखा जाने लगा है कि वे किसी कुंठा, तनाव या सनक के चलते दूसरों की जान तक ले लेने में नहीं हिचकते। उनके भीतर हिंसा मनोरंजन की जगह लेती गई है। इसी का नतीजा है कि छोटे-छोटे स्कूली बच्चे भी अपने किसी सहपाठी से रंजिश के चलते उस पर गोली चलाते देखे गये हैं। अमेरिका की संपन्नता की अंधेरी सुरंगों की एक सच्चाई यह भी है कि उसने बड़े पैमाने पर कर्ज लेकर अपने नागरिकों के लिए सुविधाएं मुहैया करा रखी हैं। अगर सरकार किसी वजह से युवाओं की किसी सुविधा में कटौती करती है, तो उसका दुष्परिणाम इस तरह की हिंसक एवं नृशंस घटनाओं के रूप में सामने आता है। भौतिक सुख-सुविधाओं को उतना ही फैलाव दिया जाना चाहिए, जितना हमारा सामर्थ्य हो।

बनावटी शान-शौकत और झूठी प्रशंसा की भूख बिना बुनियाद मकान बनाने जैसी बात है, जो कभी भी भर-भर्रा कर बिखर सकता है। प्रतिकूल परिस्थिति एवं प्रतिकूल सामग्री के कारण किसी के मन में अशांति हो जाती है, तो यह उसका आत्महनन है, जो हिंसा का एक रूप ही है। बहुत सारे अमेरिकी युवा ऐसी ही परिस्थितियों के शिकार हैं, वे सरकारी सुविधाएं कम होने और किसी काम धंधे की योग्यता न रखने की वजह से भी कुंठित एवं हिंसक हो रहे हैं।

कई युवाओं को लगता है कि दूसरे देशों से आकर लोग उनका अधिकार छीन रहे हैं। जबकि वे अपने आपको ऊंचा और दूसरों को हीन मानते आये हैं। यह उनका अभिमान है, जो हिंसा का ही एक रूप है। डोनाल्ड ट्रंप ने चुनावों में युवाओं को उनके अधिकार दिलाने का वादा करके आकर्षित किया था। उन्होंने युवाओं से किये वायदे पूरे करने में कहीं-ना-कहीं कोताही बरती है, जिसकी निष्पत्ति के रूप में यह खौफनाक घटना सामने आयी है।

विचारणीय बात यह भी है कि आर्थिक संपन्नता के शिखरों पर आरुढ़ खुद को खुशहाल और ताकतवर दिखाने वाले देश ने अपने युवाओं में मानवीय संवेदनाएं एवं अहिंसक जीवनशैली विकसित करने की जरूरतों की भी अनदेखी की है। संवेदना के अभाव में हिंसक मानसिकता का विकास होता है। जैसे दूसरों को मारना हिंसा है, वैसे ही हिंसा को रोकने के प्रयासों से कतराना भी हिंसा है। बडे़ राष्ट्र ऐसी ही हिंसा के शिकार हैं। भारत जैसे देशों के लिये यह चिंता की बात है कि यहां के युवा बहुत सारे मामलों में अमेरिका जैसे देशों की नकल करते हैं। हिंसक मानसिकता हमारे किशोरों और युवाओं में भी उतरती जा रही है।

इसलिए अमेरिका में होने वाली ऐसी घटनाओं को हमें भी गंभीरता से लेने की जरूरत है। क्या अमेरिकी नागरिक की जान दूसरे लोगों की जान से ज्यादा कीमती है? कदापि नहीं। क्या इसलिए कि अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी शक्ति है? हाँ, है, पर बन्दूक किसी व्यक्ति को कीमती नहीं बना सकती। विडम्बना यह है कि हथियारों के ऊँचे भण्डार पर बैठा ऐसी हिंसा के सामने कितना बौना है। सवाल उठता है कि इस प्रकार की हिंसा से कैसे निपटा जाए। कारबम, ट्रकबम, मानवबम- ये ईजाद किसने किए?

कौन मदद दे रहा है राष्ट्रों की सीमा पर आतंकवादियों को और कौन थमा रहा है अपने ही नागरिकों के हाथों में हथियार? किसका दिमाग है जिसने अपने हितों के लिए विभिन्न देशों के लोगों को गुमराह कर उनके हाथों में हथियार दे दिए, वे हथियार अब उनके ही युवाओं के हाथों में भी हैं, जो आये दिन लोगों को लील रहा है। आमजन असहाय हो रहे हैं। ऐसी स्थिति में रोषभरी टिप्पणियों व प्रस्तावों से नई पनप रही हिंसक मानसिकता से लड़ा नहीं जा सकता। उससे लड़ना है तो दृढ़ इच्छा-शक्ति चाहिए। विश्व की आर्थिक और सैनिक रणनीति को संचालित करने वाले देश अगर ईमानदारी से ठान लें तो इस आम नागरिकों में बढ़ती हिंसक मानसिकता पर काबू पाया जा सकता है।

ललित गर्ग

 

 

Hindi News से जुडे अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter पर फॉलो।