अमेरिका ने पाकिस्तान की आर्थिक मदद रोककर आतंकवाद के प्रति सख्त रूख अपनाया है। चर्चा यही है कि अमेरिका को पाकिस्तान सरकार की आतंकवाद के खिलाफ की गई कार्रवाईयों पर संतुष्टि नहीं। अमेरिका का यह बिल्कुल सही फैसला है। अब यह प्रदर्शन केवल दिखावा न हो, बल्कि पाक को सच्चाई का आइना दिखाया जाए। दरअसल ओबामा प्रशासन के कार्यकाल में भी ऐसे फैसले लिए जाते थे लेकिन कुछ दिनों बाद में यह राशि फिर जारी कर दी जाती। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी पद संभालते ही एक बार पाकिस्तान से सख्ती बरती और आर्थिक मदद को रोक दिया। बाद में वह राशि जारी कर दी गई। अब भी पाकिस्तान का विदेश मंत्री दावा कर रहा है कि पाक सरकार ने आतंकवाद के खिलाफ 300 मिलियन डालर खर्च किए हैं और यह राशि अमेरिका से लेना उसका अधिकार है। दरअसल पाकिस्तान में आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई का तमाशा ज्यादा होता रहा है और अमल कम हुआ है। आतंकवाद के बारे में इस्लामाबाद ने दोहरी नीति अपनाई है। अमेरिका भी दक्षिणी एशिया में शक्ति संतुलन कायम रखने के लिए पाक की आतंकवाद के बारे में दोगली नीति के बावजूद इस देश से मजबूत संबंध बनाकर चल रहा है। अमेरिका को टक्कर देने के लिए चीन ने पाकिस्तान में अपने पैर जमा लिए हैं, इसीलिए अमेरिका आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई के नाम पर पाकिस्तान को आर्थिक सहायता देकर पाक में अपना प्रभाव कायम रखना चाहता है। भारत में जारी आतंकवाद को पाक ने जग-जाहिर होने के बावजूद अमेरिका ने पाक की विदेश नीति पर सवाल नहीं उठाया। यह कहा जाना भी गलत नहीं होगा कि अमेरिका अपने खर्च कर पाक को केवल अपने हाथ में रखना चाहता है। लगभग एक दशक से ज्यादा समय में अरबों रुपए सहायता पाक को मिल रही है लेकिन उसका परिणाम सबके सामने है। पाकिस्तान आतंकवाद की नर्सरी बना हुआ है। अमेरिका द्वारा आतंकवादी करार दिया हाफिज मौहम्मद सईद खुलेआम भारत के खिलाफ जहर उगलता है और उसे राजनीतिक पार्टी बनाने की भी सरकार ने आज्ञा दी है। फिर भी ऐसे देश पर एतबार करना, अमेरिका की नीतियों पर सवाल खड़ा करता है।
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