यंग इंडिया’ में गांधी ने लिखा था, अगर मैं केवल एक घंटे के लिए भारत का सर्वशक्तिमान शासक बन जाऊं तो पहला काम यह करूंगा कि शराब की सभी दुकानें, बिना कोई मुआवजा दिए तुरंत बंद करा दूंगा। बावजूद गांधी के इस देश में सभी राजनीतिक दल चुनाव में शराब बांटकर मतदाता को लुभाने का काम करते हैं।
आजकल देश में जहरीली शराब से मौतों की खबर आना रोजमर्रा की बात हो गई है। मध्य प्रदेश के मुरैना से 16 और उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर से छह लोगों की मौत की दर्दनाक खबर आई है। चूंकि ये मौतें गरीब लोगों की होती हैं, इसलिए सत्ता और प्रशासन के लोगों में संवेदनशीलता कम ही नजर आती है। सरकार एक-दो जिम्मेवार लोगों को निलंबित कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेती है। यदि निलंबन सजा होती तो तीन महीने पहले मध्य प्रदेश की धार्मिक नगरी उज्जैन में विषैली शराब से 16 मजदूरों की मौत हुई थी। तमाम दावों और घोषणाओं के बावजूद देश में जहरीली शराब मौत का पर्याय बनी हुई है। न तो इसके अवैध निर्माण का कारोबार बंद हुआ है और न ही बिक्री पर रोक लग पाई है। नतीजतन हर साल जहरीली शराब से सैंकड़ों लोग बेमौत मारे जाते हैं। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य-प्रदेश, पंजाब, आंध्र-प्रदेश, असम और बिहार में बड़ी संख्या में इस शराब से मरने वालों की खबरें रोज आ रही हैं।
लॉकडाउन के दौरान पंजाब और आंध्र प्रदेश में करीब सवा सौ लोग सेनेटाइजर पीने से ही मर गए थे। लेकिन तमाम होहल्ला मचने के बावजूद राज्यों के शासन प्रशासन ने इन हादसों से कोई सबक नहीं लिया। बिहार में यह स्थिति तब है, जब वहां पूर्ण शराबबंदी है। साफ है, शराब लॉबी अपने बाहू और अर्थबल के चलते शराब का अवैध कारोबार बेधड़क करने में लगी है। देश के संविधान निमार्ताओं ने देश की व्यवस्था को गतिशील बनाए रखने की दृष्टि से संविधान में धारा 47 के अंतर्गत कुछ नीति-निर्देशक नियम सुनिश्चित किए हैं। जिनमें कहा गया है कि राज्य सरकारें चिकित्सा और स्वास्थ्य के नजरिए से शरीर के लिए हानिकारक नशीले पेय पदार्थों और ड्रग्स पर रोक लगा सकती हैं। बिहार में शराबबंदी लागू करने से पहले केरल और गुजरात में शराबबंदी लागू थी।
इसके भी पहले तमिलनाडू, मिजोरम, हरियाणा, नागालैंड, मणिपुर, लक्ष्यद्वीप, कर्नाटक तथा कुछ अन्य राज्यों में भी शराबबंदी के प्रयोग किए गए थे लेकिन बिहार के अलावा न्यायालयों द्वारा शराबबंदी को गैर-कानूनी ठहराया गया होए ऐसे देखने में नहीं आया था। अलबत्ता राजस्व के भारी नुकसान और अर्थव्यवस्था गड़बड़ा जाने के कारण प्रदेश सरकारें स्वयं ही शराबबंदी समाप्त करती रही हैं। घरेलू हिंसा से लेकर कई अपराधों और जानलेवा सड़क दुर्घटनाओं की वजह भी शराब बनती है। यही कारण है कि शराब के विरुद्ध खासकर ग्रामीण परिवेश की महिलाएं मुखर आंदोलन चलातीं, समाचार माध्यमों में दिखाई देती हैं। इसीलिए महात्मा गांधी ने शराब के सेवन को एक बड़ी सामाजिक बुराई माना था। शराब के कारण घर के घर बर्बाद हो रहे हैं और इसका दंश महिला और बच्चों को झेलना पड़ रहा है। साफ हैए शराब के सेवन का खामियाजा पूरे परिवार और समाज को भुगतना पड़ता है। जाहिर है, शराब माफिया सरकार पर भारी हैं।
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