भाजपा की पंजाब इकाई के अध्यक्ष श्वेत मलिक ने पंजाब विधानसभा चुनाव 2022 में सीटों के बड़े हिस्से पर दावा कर हलचल मचा दी है। विधान सभा चुनाव-2017 में कुल 117 सीटों में से अकाली दल 15 व भाजपा 3 सीटों पर विजयी रही थी। विधानसभा में आज भी अकाली दल भाजपा की अपेक्षा बड़ी पार्टी है परंतु जिस तरह भाजपा ने लोकसभा चुनावों में बड़ा बहुमत हासिल किया है उसके मुताबिक पंजाब के नेता आज केवल 23 सीटों के पुराने फार्मूले को मानने को तैयार नहीं क्योंकि असम, मणिपुर और हरियाणा जैसे राज्यों में जहां भाजपा विपक्ष का दर्जा भी हासिल नहीं करती थी वहीं सरकार बनाने में कामयाब हुई है। लोकसभा चुनावों में पश्चिमी बंगाल जैसे राज्यों में भी भाजपा की सीटें बढ़ी हैं। चाहे अकाली नेता प्रकाश सिंह बादल भाजपा के साथ गठबंधन को राजनीतिक सौदेबाजी की बजाय सिद्धांतों की सांझ बताते रहे हैं परंतु राजनीति में न कोई पक्का दुश्मन और न ही पक्का दोस्त होता है।
वैसे यह भी रहा है कि 2007 से 2017 तक अकाली-भाजपा की सरकार दरमियान पंजाब भाजपा नेता सरकार में अपने आप को बेगाना बताकर विरोध करते रहे परंतु प्रकाश सिंह बादल कैसे न कैसे गठबंधन सरकार को चलाने व भाजपा नेताओं को संतुष्ट करने में कामयाब होते रहे। दरअसल 2014 में केंद्र में सरकार बनाने के बाद भाजपा हाईकमान का जोर इस बात पर रहा है कि पंजाब के भाजपा नेताओं की शिकायतों का एक ही हल पार्टी को घर-घर पहुंचाने के साथ होना है।
भाजपा ने बदली हुई स्थितियों मुताबिक हरियाणा में हजकां की अपेक्षा भी नाता तोड़ा था। यह बात अब भाजपा हाईकमान व अकाली दल की सीनियर लीडरशिप खास कर प्रकाश सिंह बादल सुखबीर सिंह बादल पर निर्भर करेगी कि वे पंजाब भाजपा की सीटों की हिस्सेदारी में तबदीली की मांग के साथ कैसे निपटते हैं यदि अकाली-भाजपा गठबंधन टूटता है तब यह राज्य की राजनीति के लिए बहुत बड़ा परिवर्तन होगा। यदि भाजपा हाईकमान पंजाब के नेताओं को पहले की तरह ही चुप रहने के लिए कहती है तब राज्य के नेताओं व वर्करों में उत्साह की कमी आ सकती है। केंद्र में सरकार का नेतृत्व कर रही भाजपा चाहे सहयोगी पार्टियों को मंत्रीमंडल में जगह दे रही है परंतु अकेली भाजपा को मिला हुआ बहुमत भी राजनीति में बहुत बड़ा अर्थ रखता है।