एयर स्ट्राइक ने बुनियादी मुद्दों को पीछे धकेला

Air strikes

इसमें कोई दो राय नहीं है कि मोदी सरकार के पूरे कार्यकाल में विपक्ष एक अदद मुद्दा सरकार को घेरने के लिये तलाश नहीं पाया। ले देकर कांग्रेस राफेल के मुद्दे पर मोदी सरकार को घेरने और चौकीदार चोर है, साबित करने की कोशिशों में पूरी शिद्दत से जुटी है। वो अलग बात है कि राफेल मुद्दे पर एक के बाद एक उसके सारे दांव फेल साबित हो रहे हैं। लोकसभा चुनाव दरवाजे पर पूरे जोर से दस्तक दे रहा है ऐसे में पूरे विपक्ष के पास मोदी सरकार को घेरने के लिये कोई मजबूत मुद्दा नहीं है। विपक्ष के अब तक व्यवहार, आचरण और बयानबाजी से यह स्पष्ट हो गया है कि विपक्ष के पास आम आदमी से जुड़े तमाम मुद्दों को उठाने की बजाय सिर्फ मोदी हटाओ के एजेण्डे पर चुनाव मैदान में उतरने वाला है। भले ही विपक्ष मोदी सरकार को घेरने के लिय तमाम आरोप लगा रहा है लेकिन आरोपों को साबित करने का साहस उसमें नहीं है। अब जब चुनाव की घंटी बज चुकी है तब विपक्ष मोदी हटाओ, मोदी हटाओ का नारा जोर-जोर से लगा रहा है। आम आदमी से जुड़े तमाम मुद्दों की बजाय केवल मोदी हटाने की रट से विपक्ष का भला होता दिखता नहीं है।

लोकसभा चुनाव के मद्देनजर मोदी हटाओ की आवाजें तेज होती जा रही हंै। मोदी विरोध में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने तो अपनी संवैधानिक सीमा ही लांघ दी, जब उन्होंने विधानसभा में ही चीख-चीख कर कहा कि भाजपा और मोदी 300 सीट जीतने के लिए कुछ भी कर सकते हैं। वे पुलवामा भी करवा सकते हैं। राष्ट्र की सरकार और सेना के पक्ष में प्रशंसा और सम्मान के प्रस्ताव पारित करने के बजाय विपक्ष के 21 दलों ने निंदा प्रस्ताव पारित किया है। ऐसा लगता है मानो चुनाव जीतने के अलावा हमारे दलों का कोई और सरोकार और लक्ष्य नहीं है। टीवी चैनलों पर भी विपक्षी दलों के प्रवक्ताओं के तर्क वही हैं, जो वे असंख्य बार उठा चुके हैं।

चुनाव के पहले उनका सामाजिक, आर्थिक, किसानी, रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि का एजेंडा नेपथ्य में कहीं दफन है, लेकिन एकमात्र एजेंडा सुनाई दे रहा है-मोदी को हटाना है। वर्ष 2014 में सत्ता में आने के बाद से मोदी सरकार पर विपक्ष हमलावर मुद्रा अपनाये है। नोटबंदी और जीएसटी के मुद्दे पर विपक्ष ने जनता की भावनाएं उबारने की तमाम कोशिशें की, लेकिन जनता का साथ उसे नहीं मिला। राहुल गांधी भले ही जनसभाओं में चौकीदार चोर के जुमले उछालते हों, लेकिन इन मुद्दों पर उन्हें कितना जनसमर्थन मिल रहा है वो किसी से छिपा नहीं है। मोदी विरोध का श्रेय लेने की होड़ विपक्ष के नेताओं में इस कदर मची हुई है कि कभी ममता, कभी चंद्रबाबू नायडू धरने पर बैठता है तो कभी कोई अखिलेश चर्चा में रहने का ड्रामा खेलता है। सम्पूर्ण विपक्ष में खुद को मोदी का सबसे बड़ा विरोधी साबित करने की प्रतियोगिता चल रही है। देश की जनता विपक्ष के नेताओं की नाटक, नौटंकी, ड्रामेबाजी और करतबों को ध्यान से देख रही है।

जब चुनाव बिल्कुल सिर पर खड़े हैं तो विपक्ष मोदी सरकार को घेरने के मुद्दे तलाशता दिख रहा है। तो वहीं बीजेपी को लगता है कि बालाकोट एयर स्ट्राइक के बाद मोदी की वापसी के मौके पहले के मुकाबले बेहतर हो गए हैं। पुलवामा हमले से पहले बीजेपी ने हिन्दी पट्टी के तीन बड़े राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में हुए विधानसभा चुनावों में विपक्षी कांग्रेस के सामने लगभग मुंह की खा चुकी थी। विपक्षी पार्टियां रफाल, नौकरियां और कृषि संकट जैसे मुद्दों को आक्रामकता से उछाल रही थीं और मोदी को रक्षात्मक मुद्रा को अपनाना पड़ रहा था।

बीजेपी को सत्ता विरोधी लहर का डर भी सता रहा था, लेकिन पुलवामा और बालाकोट के बाद अब स्थिति नाटकीय रूप से बदल चुकी है और मोदी एक बार फिर आतंकवाद का मुद्दा लेकर मंच पर आगे आ गए हैं। पुलवामा हमले के बाद विपक्ष को ही नहीं बल्कि बीजेपी को अपनी चुनावी रणनीति पर दोबारा विचार करने पर मजबूर किया है। इससे पहले पार्टी राम मंदिर और विकास को लोकसभा चुनाव का प्रमुख मुद्दा बनाकर पेश कर रही थी। आरएसएस मंदिर और गाय पर चर्चा में लगा हुआ था। अब यहां ये जानना दिलचस्प होगा कि 22 फरवरी हुई को अपनी आंतरिक बैठक में आरएसएस राम मंदिर जैसे मसलों को पीछे करके आतंकवाद के मुद्दे को आगे ले आया और ऐसे नेता की जरूरत पर जोर दिया जो आतंकवाद से लड़ सके। पुलवामा हमले के बाद विपक्ष मोदी को किसी तरह का फायदा नहीं होने देना चाहता था लेकिन बालाकोट हमले के बाद उसे सरकार का समर्थन करने पर मजबूर होना पड़ा। हालांकि विपक्ष का ये समर्थन ज्यादा दिनों तक नहीं टिक पाया क्योंकि अब बीजेपी और विपक्ष दोनों ही पुलवामा हमले को लेकर राजनीति कर रहे हैं।

कुछ विपक्षी पार्टियों ने एयर स्ट्राइक पर संदेह जताते हुए सरकार की आलोचना शुरू की तो कुछ ये सवाल पूछ रही हैं कि आत्मघाती हमलावर इतना विस्फोटक लेकर वहां पहुंचा कैसे? इन आरोपों के जवाब में मोदी और बीजेपी ने सवाल पूछने और शक जताने वालों को राष्टÑविरोधी का तमगा देना शुरू कर दिया है। मोदी की सुरक्षा रणनीति से उलझा विपक्ष अब जवाबी रणनीति की योजना बना रहा है। कांग्रेस का दावा है कि उसके पास सरकार पर हमला करने के लिए बहुत से मुद्दे हैं और उनमें से ज्यादातर मुद्दे खुद बीजेपी ने पैदा किए हैं। इसके अलावा, पिछले दो दिनों में विपक्ष एयर स्ट्राइक के सबूत की मांग को लेकर एकजुट हुआ है। विपक्ष के पास दूसरा विकल्प है- सरकार की विचारधारा और फैसलों को चुनौती देने वाली आवाजों को देश भर से सामने लेकर आना। विरोधी पार्टियों की तीसरी रणनीति ये हो सकती है कि वो रफाल, नौकरियों, ग्रामीण और कृषि संकट जैसे मुद्दों को जोरशोर से वापस लाएं।

ऐसा भी हो सकता है कि विपक्ष पुलवामा हमले के संदर्भ में खुफिया विफलता को हथियार बनाकर सरकार को घेरे। विपक्ष की ये रणनीति इसलिए भी कारगर साबित हो सकती है क्योंकि पुलवामा हमले के बाद खुफिया विफलता की बात खुद जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने स्वीकार की थी। अगर विपक्ष ऐसा करने में कामयाब होता है तो चुनाव से दो महीने पहले तक बीजेपी के लिए हालात मुश्किल हो जाएंगे। अब विपक्ष के सामने चुनौती ये है कि कैसे वो बीजेपी द्वारा सामने लाए गए मुद्दे को पीछे धकेलकर पुराने मुद्दों को सामने लाए। इसमें कोई दो राय नहीं है कि रोजगार सृजन में सरकार अपने वादे से कोसों दूर है। नोटबंदी ने रही-सही कसर भी पूरी कर दी और असंगठित क्षेत्र से लेकर कुटीर उद्यमियों तक के लिए नोटबंदी ने परेशानियों बढ़ायी।

मोदी सरकार कालाधन और भ्रष्टाचार पर नकेल के वादे चारों खाने चित्त नजर आ रही है। आखिर में सवाल ये है कि क्या ये रणनीतियां कारगर साबित होंगी? विपक्ष कमजोर स्थिति में है क्योंकि कोई नहीं जानता कि ऐसे भावनात्मक ज्वार वाले माहौल में जनता किस ओर जाएगी। बीजेपी की राष्ट्रवादी विचारधारा पर सवाल उठाना खतरनाक हो सकता है। क्या जनता राष्ट्रवाद की ओर जाकर मोदी के लिए वोट करेगी या वो नौकरियों और कृषि संकट के बारे में सोचेगी? ये तो उसी दिन पता चलेगा जब चुनाव के नतीजे आएंगे। इस वक्त विपक्ष की जरूरत है अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए सही रास्ते की तलाश करना और एकजुटता बनाए रखना। चुनावी रैलियों में जिस तरह पीएम मोदी विपक्ष पर बरस रहे हैं उससे साफ है कि कम से कम उन्होंने 2019 के लिए अपने मुद्दे तय कर लिए हैं। सवाल यह है कि जनता इन मुद्दों को कैसे लेगी? क्या मोदी हटाओ की बात इंदिरा हटाओ जैसी नहीं सुनाई देती? क्या विपक्ष के पास पीएम का कोई चेहरा न होना, बीजेपी के पक्ष में जाएगा ? या फिर मुद्दों की बजाय मोदी हटाओ का नारा लगाते विपक्ष को देश की जनता एक बार फिर से विपक्ष में ही खड़ा रखेगी।
आशीष वशिष्ठ

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