डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा: वरिष्ठ लेखक एवं स्वतंत्र टिप्पणीकार
देश का अन्नदाता एक बार फिर अच्छी खबर लेकर आया है। लाख विपरीत परिस्थितियों के बावजूद फसल वर्ष 2021-22 के दौरान कृषि उपज की बंफर पैदावार का अनुमान (Agricultural Yield Estimates) सामने आया है। कृषि मंत्रालय द्वारा जारी पैदावार के चौथे अग्रिम अनुमानों में यह बात सामने आई है। साल 2021-22 के अगस्त में जारी चौथे अग्रिम अनुमानों के अनुसार देश में खाद्यान्न उत्पादन रेकार्ड स्तर पर पहुचने की संभावना है।
अनुमानों के अनुसार भले ही गेहूं की पैदावार में कमी हो रही है पर कुल उत्पादन 31 करोड़ 57 लाख के पार पहुंचने का अनुमान लगाया गया है। दरअसल कृषि उपज को लेकर कृषि मंत्रालय द्वारा चार बार अग्रिम अनुमान (Agricultural Yield Estimates)जारी किए जाते हैं। पिछले दिनों 2021-22 के लिए अंतिम चौथे अग्रिम अनुमान जारी किए गए है जिसमें मक्का, चावल, चना, दलहन, रैपसीड व सरसों, तिलहन और गन्ने का भी रेकार्ड उत्पादन का अनुमान बताया जा रहा है।
असल में दलहन-तिलहन के उत्पादन में उल्लेखनीय बढ़ोतरी से सकारात्मक परिणाम प्राप्त हुए हैं। पर गेहूं और मोटे अनाज में कम उत्पादन चेतावनी से कम नहीं है। नाबार्ड की माने तो देश के 10 करोड़ 7 लाख परिवार खेती किसानी पर निर्भर है। देखा जाए तो यह आंकड़ा करीब 48 फीसदी का बैठता है। यानी कि देश के कुल परिवारों में से 48 प्रतिशत परिवार कमोबेस खेती किसानी पर निर्भर है।
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दूसरी और इस बात को भी ध्यान में रखना होगा कि हमारी अर्थ व्यवस्था में देश के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि (Agricultural Yield Estimates) की लगभग 14 प्रतिशत भागीदारी है। जहां तक निर्यात का प्रश्न है कृषि का हिस्सा लगभग दस प्रतिशत आता है। देखा जाए तो कोरोना काल में कृषि देश का सशक्त आधार उभर कर आई है।
पिछले कुछ सालों से सरकारें चाहे केन्द्र की हो या राज्यों की, किसानों के प्रति संवेदनशील हो रही है। भले ही इसे वोट बैंक का कारण माना जाए। कोरोना ने खेती-किसानी के महत्व को और अधिक स्पष्ट कर दिया है। सरकारों को अब लोक लुभावन घोषणाओं के स्थान पर खेती-किसानी के लिए कुछ खास करना ही होगा।
सरकारों द्वारा चुनावों के समय जिस तरह से कृषि ऋण माफी की घोषणाएं की जाती है वह किसानों या यों कहें कि खेती-किसानी की समस्या का स्थाई हल हो ही नहीं सकता। हांलांकि खाद अनुदान राशि और सम्मान निधि को देने का जो तरीका है उसको लेकर विचार किया जाना अभी भी आवश्यक है।
इसमें कोई दो राय नहीं कि इस तरह की सहायता किसानों को अवश्य दी जानी चाहिए पर यदि खेती किसानी को बढ़ाना है और वास्तव में किसानों के भले के लिए सरकारें गंभीर है तो उसका सबसे बेहतर तरीका नकद राशि चाहे वह सीधे खातें में स्थानांतरित हो रही है उसके स्थान पर सरकार को आदान के रुप में उपलब्ध कराने से इसका सीधा सीधा लाभ अधिक प्रभावी तरीके से किसान और देश को प्राप्त होगा।
भले ही सरकार राशि की सीमा यहीं रखे पर इस राशि की सीमा तक किसानों को उसकी मांग के अनुसार खाद-बीज उपलब्ध कराए जाते हैं तो उसका वास्तविक लाभ मिल सकेगा। खाद-बीज मिलेगा तो किसान सीधे सीधे इनका उपयोग खेत में करेगा और उससे निश्चित रुप से उत्पादन बढ़ेगा। और इस उत्पादन बढ़ने का फायदा प्रत्यक्ष रुप से किसान और देश दोनों को होगा।
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देखा जाए तो किसानों के साथ खाद-बीज को लेकर अधिक ठगी होती है। नकली या घटिया बीज मिलने से किसान की पूरी मेहनत पानी में फिर जाती है। ऐसे में सरकार यह सुनिश्चित कर लें कि किसानों को जो भी बीज उपलब्ध कराए जाएंगे व उच्च गुणवत्ता के साथ ही उनमें रोगनिरोधक क्षमता हो।
इससे दोहरा लाभ होगा। किसानों को समय पर मांग के अनुसार बीज मिल जाएंगे तो दूसरी और उनकी प्रमाणिकता व गुणवत्ता में कोई संदेह नहीं रहेगा। ऐसे में उत्पादन बढ़ेगा और किसान को अधिक लाभकारी मूल्य मिल सकेगा। इसके लिए भले ही सरकार राशि की सीमा पांच हजार ही रखें पर इतनी राशि के बीज उर्वरक मिलेंगे तो इसका लाभ निश्चित रुप से उत्पादकता पर पड़ेगा।
इसको यों समझना होगा कि नकद राशि भले ही किसान को सीधे खातें में हस्तांतरित हो पर उसका उपयोग खेती-किसानी में यानी कि खेती के काम के लिए ही होगा यह पक्का नहीं कहा जा सकता। ऐसे में यदि प्रमाणिकता, गुणवत्ता और क्षेत्र विशेष की जरुरत के अनुसार इतनी राशि के कृषि आदान किसानों को उपलब्ध कराए जाते हैं तो यह किसान और देश दोनों के लिए ही फायदें का सौदा होगा।
कुछ और:- (Agricultural Yield Estimates & Dire Warnings)
हमं इसको यों समझना चाहिए कि वर्षों से खाद पर अनुदान सीधे उत्पादक कंपनियों को दिया जा रहा है तो इसका लाभ किसान को सही मायने में नहीं मिल पा रहा। रुपया पैसा देंगे तो उसका उपयोग खेती किसानी में ही होगा यह सुनिश्चित नहीं किया जा सकता और तीसरी बात यह कि यदि खाद-बीज वितरण के रुप में इस राशि का उपयोग किया जाएगा तो यह शतप्रतिशत सही होगा कि उसका उपयोग खेत में ही होगा, सरकारी बीजों की गुणवत्ता सुनिश्चित करेगी तो उत्पादन बढ़ेगा और इससे देश में अन्नधन का भंडार भरेगा।
किसान की आय बढ़ेगी और सही मायने में खेती किसानी का भला होगा। कोरोना महामारी ने आज कृषि पर ध्यान देने की और अधिक आवश्यकता महसूस करा दी है। ऐसे में नीति निमार्ताओं को इस दिशा में चिंतन और मनन करना होगा।
रुस यूक्रेन के युद्ध के चलते हालात तेजी से बदले हैं। जलवायु परिवर्तन और तनाव के माहौल के कारण विश्व खाद्य संगठन पहले ही गंभीर खाद्यान्न संकट की और इशारा कर चुके हैं।
दुनिया के देशों में जिस तरह से गेहूं सहित खाद्यान्न को लेकर संकट का दौर चल रहा है वह गंभीरता को दर्शा रहा है। ऐसे में भले ही आंकड़े रेकार्ड उत्पादन की और इशारा कर रहे हैं पर गेहूं की इस साल सरकारी खरीद कम होना सरकारी गोदामों में गेहूं की कमी की और साफ साफ इशारा है।
तेल-दालों के भावों में जिस तरह से रेकार्ड तेजी रही है वह भी सोचने को मजबूर कर देती है। ऐसे में उत्पादन बढाने के साथ ही बफर स्टॉक की नीति भी सुस्पष्ट बनानी होगी ताकि बाजार पर नियंत्रण रह सके और आमआदमी को मंहगाई से बचाया जा सके। दरअसल खेती किसानी को लेकर अभी बहुत कुछ किया जाना शेष है और उसओर अधिक गंभीरता से ध्यान देना होगा।
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