आखिर चीन झुका

After all, China bend

मसूद अजहर को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित करने के रास्ते में रुकावट बने चीन को आखिर राष्टÑीय दबाव के सामने झुकना पड़ा है। सबूतों की जांच का तर्क देने वाले चीन ने अब बयान दिया है कि वह भारत के दर्द को समझता है और इस मामले को जल्द हल कर लिया जाएगा। दरअसल संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा कौंसिल में प्रस्ताव आने से पूर्व व बाद दोनों स्थितियों में अमेरिका ने भारत का मजबूती से सहयोग दिया। चीन द्वारा मसूद का बचाव करने पर फ्रांस ने जिस प्रकार सख्त अंदाज से जैश–ए-मोहम्मद के खाते फ्रीज करने की घोषणा की थी, वह चीन के लिए बड़ा झटका था।

भारत में आम जनता भी चीन के रवैये से नाराज थी। आम लोगों ने चीन को आर्थिक तौर पर नुक्सान पहुंचाने की घोषणा कर दी थी। दरअसल फ्रांस, इंग्लैंड सहित यूरोप के अधिकतर देश आतंकवाद की आग में झुलस चुके हैं। यूरोप व अमेरिकी देशों में आतंकवाद के खिलाफ भारी रोष है। इन हालातों में चीन का लंबे समय तक आतंकवादियों का बचाव करना मुश्किल है, दूसरी तरफ चीन आर्थिक रूप से मजबूत बन रहा है और उसके उत्पाद विश्व भर में बिक रहे हैं। चीनी वस्तुओं का बायकाट उसकी आर्थिकता के लिए भारी नुकसानदेय है। भारत सरकार को चीन पर दबाव बनाने के लिए बहुपक्षीय व दीर्घकालीन नीतियां अपनाने की जरूरत है। युद्ध किसी समस्या का हल नहीं विशेष कर परमाणु ताकत वाले देशों में युद्ध पूरी तरह से असंभव है।

पाकिस्तान की घेराबन्दी के लिए चीन को समझ से काम लेना चाहिए। चीन का रुख बदला है लेकिन इसे पूरी तरह भारत के हित में नहीं कहा जा सकता। चीन ने यह फैसला दबाव में लिया है न कि आतंकवाद के खिलाफ अपनी किसी वचनबद्धता का पालन किया है। आतंकवाद के खिलाफ मजबूत देशों के दोहरे मापदंड ही इस समस्या का बड़ा कारण हैं। भारत सरकार को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आतंकवाद की एक परिभाषा और एक ही राय को स्थापित करने के लिए अन्य प्रयास करने होंगे, ताकि चीन जैसे देश आतंकवादियों का बचाव करने से संकोच करें। आतंकवाद को मानवता विरोधी जघन्य अपराध के तौर पर पेश करने के लिए अभियान छेड़ना होगी। फिलहाल चीन का रवैया ऐसा लग रहा है कि वह भारत का साथ देने की बजाय भारत के विरोध को ही शांत करने की कोशिश कर रहा है। मसूद को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित करने तक भारत को चुप नहीं बैठना होगा।

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