देश में 15 जून के बाद प्रदूषण व फिटनेस प्रमाणपत्र के बगैर नहीं होगा वाहनों का बीमा

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ई दिल्ली (एजेंसी)। 

15 जून के बाद बगैर प्रदूषण व फिटनेस प्रमाणपत्र वाहनों का बीमा करना बीमा कंपनियों को महंगा पड़ सकता है। सरकार ने बीमा कंपनियों से कहा है कि वे फिटनेस सर्टिफिकेट और प्रदूषण नियंत्रण प्रमाणपत्र के बगैर किसी भी मोटर वाहन का थर्ड पार्टी बीमा कतई न करें। यात्री वाहन के बीमे के लिए प्रदूषण प्रमाणपत्र तथा मालवाहक वाहन के बीमे के लिए प्रदूषण व फिटनेस प्रमाणपत्र दोनो ही आवश्यक है।

इस संबंध में सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय की ओर से सभी इंश्योरेंस कंपनियों के प्रबंध निदेशकों को पत्र लिखा गया है। पत्र में 10 अगस्त, 2017 को एमसी मेहता बनाम भारत सरकार व अन्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले का हवाला देते हुए कहा गया है कि उक्त केस में सर्वोच्च न्यायालय ने सभी बीमा कंपनियों को ऐसे वाहनों का नया बीमा अथवा पुरानी बीमा पालिसी का नवीकरण न करने का निर्देश दिया था

जिनके वैध प्रदूषण नियंत्रण प्रमाणपत्र (पॉल्यूशन अंडर कंट्रोल सर्टिफिकेट अर्थात पीयूसी) न हो। साथ ही इस बात की याद भी दिलाई गई है कि वैध रूप से पंजीकृत सभी वाहनों के बीमा के लिए फिटनेस सर्टिफिकेट होना भी आवश्यक है। मंत्रालय ने बीमा कंपनियों को 15 जून तक इन निर्देशों को लागू कर मंत्रालय को अवगत कराने की ताकीद की है।

मंत्रालय के इस पत्र से जहां बीमा कंपनियां परेशान हैं, वहीं परिवहन विशेषज्ञों ने इस पर खुशी के साथ हैरानी जाहिर की है। दरअसल, बीमा कंपनियां अभी इस मामले में काफी ढीला रुख अपनाती हैं। नए वाहनों के बीमा में तो सब ठीक होता है, लेकिन नवीकरण के मामलों में केवल लेट होने पर ही फिटनेस व प्रदूषण जांच पर जोर देती हैं। अब उन्हें हर बीमा के वक्त इन प्रमाणपत्रों की जरूरत पड़ेगी।

दूसरी ओर विशेषज्ञ इसलिए हैरान हैं कि मंत्रालय इतने दिनों तक क्यों खामोश था। इंडियन फाउंडेशन आफ ट्रांसपोर्ट रिसर्च एंड ट्रेनिंग के संयोजक एसपी सिंह ने कहा कि पीयूसी और फिटनेस सर्टिफिकेट पर जोर देना अच्छी बात है। परंतु जिस तरह राज्यों में फिटनेस सर्टिफिकेट और शहरों में पीयूसी सर्टिफिकेट बांटे जाते हैं, उसे देखते हुए बीमा की खातिर इनकी अनिवार्यता लागू करने से भी कोई फर्क पड़ेगा, इसमें संदेह है।

ज्यादातर शहरों में वाहन प्रदूषण जांच का तंत्र पुरातन और कामचलाऊ है जिससे उत्सर्जन की सही माप नहीं होती। इसी प्रकार फिटनेस जांच के नाम पर भी महज खानापूरी की जाती है। कई मर्तबा तो ये प्रमाणपत्र घर बैठे मिल जाते हैं। जब तक इन प्रणालियों का आधुनिकीकरण और डिजिटलीकरण नहीं होता और इनके परिणाम सेंट्रल पोर्टल पर नहीं डाले जाते तब तक ऐसे निर्देशों का वास्तविक लाभ मिलने वाला नहीं है।

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