सैन्य बलों की ताकत का प्रदर्शन करने वाला अमेरिका अब आर्थिक मोर्चे पर अपनी ताकत का प्रदर्शन कर रहा है। चीन की वस्तुओं पर टैरिफ बढ़ाने के बाद अमेरिका ने भारत से भी जीएसपी (जनरलाईज्ड सिस्टम आॅफ परैफरैंसी) का दर्जा छीन लिया है। इस कदम से भारत के उत्पादों की अमेरिका की मंडी में मांग घटेगी। दरअसल राष्ट्रपति ट्रम्प अमेरिका के व्यापार घाटे को खत्म करने का प्रयास कर रहे हैं। भारत के 1900 उत्पाद अमेरिका की मंडी में बिकते हैं, जिससे वार्षिक शुल्क 1900 करोड़ की बचत होती है। भले ही भारतीय व्यापार मंत्रालय इसे कोई बड़ा झटका नहीं मान रहा लेकिन लंबे समय में ऐसी कार्रवाई अलग-अलग देशों में व्यापार के माहौल को प्रभावित करती है।
भविष्य में कई अन्य विकसित देश भी ऐसे निर्णय ले सकते हैं जिससे विकाससील देशों की आर्थिकता पर प्रभाव पड़ सकता है। दरअसल जीएसपी प्रणाली 1976 इस उद्देश्य से शुरू की गई थी कि विकाससील देशों में उत्पादन बढ़े और उनकी आर्थिकता मजबूत हो लेकिन अब आर्थिक मामलों में भी अंतरराष्ट्रीय विवादों का असर दिखने लगा है। जो विकासशील देश जिन विकसित देश की नीतियों का समर्थन करते हैं उनके साथ विकसित देशों का रवैया ज्यादा सहयोगी व नरमी वाला होता है, दूसरी तरफ अन्य देशों के खिलाफ सख्ती बरती जाती है।
ईरान मामले में भारत ने अमेरिका के रूख से अलग निष्पक्ष रहकर भूमिका निभाई है। इसी तरह इज्रराइल और फिलस्तीन मामले में भी भारत ने दोनों देशों के साथ अपने संबंध कायम रखे हैं। इन परिस्थितियों में भारत को अमेरिका से किसी बड़े आर्थिक सहयोग की उम्मीद करना मुश्किल है। यूं भी ट्रम्प प्रशासन पिछली सरकारें की अपेक्षा बिल्कुल अलग और अमेरिकीवाद से ज्यादा प्रभावित है। ट्रम्प प्रशासन भारतीयों के लिए वीजा प्रणाली को सख्त बनाने के लिए भी चर्चा में रहा है, जहां आर्थिक मामलों का संबंध भी राजनीतिक मामलों की तरह ही रहा है। भारत को अपना पक्ष मजबूती से रखने की आवश्यकता है। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी विकासशील देशों को एकजुट होने की आवश्यकता है। उम्मीद की जानी चाहिए कि भारत सरकार जीएसपी का दर्जा बहाल करवाने में सफल होगी।
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