Snake News: डॉ. संदीप सिंहमार। मौसम बदलने पर सांप निकलना आम बात है। सांप खेतों की जमीन हो या फिर घर कहीं भी प्रवेश कर सकता है। जब सांप दिखाई दे जाता है तो लोग कई बार इतने डर जाते हैं कि या तो खुद घर से बाहर चले जाते हैं या फिर लाठी-डंडों से पीटकर सांप को मार देते हैं। जबकि सांप एक ऐसा जीव को यदि उसको छेड़ा न जाए तो वह पहले डंक कभी नहीं उठाता। अक्सर सांप का पीछा करने या उस पर वार करने से सांप अपने बचाव के लिए डसता है। जब बात आती है गर्मी और बरसात के दिनों की तो उस मौसम में सांप कांटने के मामले बड़े सामने आते हैं।
इस तरह को घटनाओं से बचने के लिए आदिवासी एक अनोखे तरीके का प्रयोग करते हैं। जो अपने आप भी बड़ा ही कारगर भी माना गया है। सदियों से आदिवासी सांप को भगाने के लिए एक अनोखी खली का प्रयोग करते हैं। इसे महुआ की खली कहा जाता है। ग्रामीण इलाकों में इसे कोढ़ी खली कहा जाता है। इसके एक टुकड़े को जलाकर घर के किसी कोने में रख दिया जाता है, जिससे सांप घर से अपने आप भाग जाता है। आदिवासियों का मानना है कि इसका धुआं सांप को पसंद नहीं होता। इसी वजह से खली जलाने की महक से ही सांप उस स्थान को छोड़कर चला जाता है।
संक्रमण दूर करने में भी सहायक है खली की राख | Snake News
इस खली का प्रयोग सांप भगाने के साथ आयुर्वेदिक उपचार के लिए भी किया जाता है। कई बार शरीर पर कीड़े-मकोड़ों के चढ़ने से संक्रमण हो जाता है। इसी स्थिति में खली को जलाकर उसकी राख को शरीर में उस जगह पर 3-4 बार लगाने से संक्रमण ठीक हो जाता है। इस बारे में आयुर्वेदिक चिकित्सक मोहित संधू ने बताया कि खली की राख घाव घाव को तुरंत ठीक करने में लाभदायक है। यह खली हजारीबाग,दुमका,देवघर अलग-अलग जगहों से मंगवाई जाती हैं। यह सब जगह आसानी से नहीं मिलती। आदिवासी गांव के आसपास लगने वाले हाट में यह 40 से 50 रुपये प्रति किलो में बिकती है.
ये होती है महुआ खली
इस खली का असली नाम महुआ खली है। आदिवासी ग्रामीण क्षेत्रों में कोढ़ी खली और दुकानदार इसी को कोचड़ा खली भी कहते हैं। अगर इसके निर्माण की बात करें तो यह महुआ के बीज से तैयार की जाती है, जिसमें पहले महुआ के बीज से चक्की मिल में तेल निकाला जाता है। इसके अवशेष को जमा कर इसे उपलों की भांति धूप में सुखाया जाता है। इसका उपयोग विभिन्न कार्यों में किया जाता है। आयुर्वेद में खली का बहुत महत्व है।