सरसा। पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि लक्ष्य बनाकर सेवा करने से सेवा का मेवा नकदो-नकद जरूर मिलता है। पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि भागों वाले जीव होते हैं जो परमार्थ और परमार्थी सेवा करते हैं। बुल्लेशाह ने एक जगह बोला है कि इट्ट खड़के धुक्कड़ वज्जे नाले तपे चूल्हा, नाले मेरा सार्इं राजी नाले राजी बुल्ला। र्इंट तो 1948 से बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज के हुक्मानुसार लगातार बज रही हैं और आगे भी लगातार बजती रहेंगी। वहीं सेवा के साथ-साथ धुक्कड़ बज रहा है और साथ ही चूल्हा तपे बिना भी गुजारा नहीं है। यह सेवा चलती है और चलती रहेगी।
पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि आप सेवा करने आते हो तो वचनों में रहकर, मर्यादा में सेवा करने से कोई कमी नहीं रहती। घोर कलियुग का समय है। इसलिए वचनों पर रहना बहुत जरूरी है। सेवादार अगर वचनों पर नहीं रहता तो जैसे रहमत आती है उसी तरह वापिस चली जाती है। इसलिए वचनों को मानो और सेवा करने के साथ-साथ सुमिरन, मालिक की चर्चा करो तो और ज्यादा खुशियां आती हैं जैसे सोने पे सुहागा हो जाता है। आप जी ने फरमाया कि आप सेवा कहीं भी कर रहे हो वो मालिक देख रहा है। जितनी लगन से सेवा करोगे उतनी ही उसकी दया-मेहर, रहमत आपकी झोलियों में आएगी। इसलिए लगन, पूरे ध्यान और हिम्मत से सेवा करो।