बैंकों में भ्रष्टाचार के सनसनीखेज खुलासों से जहां आम जनता परेशान है और सख्त कार्रवाई चाहती है वहीं राजनेता एक दूसरे पर आरोप मढ़ने में लगे हुए हैं। सरकार की कार्रवाई में इतनी गंभीरता दिखानी चाहिए कि यह महसूस हो कि दोषी जल्द ही कानून की गिरफ्त में होगा और उससे सारा पैसा वसूल होगा, लेकिन हालात यह हैं कि धोखाधड़ी का आधा पैसा भी वसूल होता नहीं दिख रहा। नीरव मोदी की 100-200 करोड़ की जायदाद जब्त हो चुकी है। यह रकम घोटाले की रकम का दसवां हिस्सा भी नहीं है। कांग्रेस ने नीरव मोदी, विजय माल्या और विक्रम कोठारी के मुद्दे पर केंद्र सरकार को घेरना शुरू कर दिया है, दूसरी ओर सरकार को कांग्रेसी नेता और पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिन्दर सिंह के दामाद का नाम एक बैंक घोटाले में होने पर बोलने का मौका मिल गया है।
भाजपा प्रधान ने अमरिन्दर सिंह पर निशाना साधना शुरू कर दिया है। दरअसल भ्रष्टाचारी की कोई पार्टी नहीं होती वह कानून की नजर में आरोपी है। अमरिन्दर सिंह ने अपने दामाद के बचाव में स्पष्टीकरण दे दिया है। बेहतर होता यदि अमरिन्दर सिंह सारी बात कानून पर छोड़ देते दूसरी ओर अमित शाह द्वारा अमरिन्दर सिंह की अलोचना करना भी राजनीति से बढ़कर कुछ नहीं, क्योंकि गुरपाल सिंह का नाम जिस घोटाले में बोला है उसका पंजाब से कोई तालुक नहीं। अमरिन्दर सिंह को केवल उन्हीं हालातों में निशाना बनाया जा सकता था यदि बैकिंग संस्था का कंट्रोल पंजाब सरकार के पास होता। अमरिन्दर को बुरा भला कहने से बात नहीं बनने वाली।
घोटाले की वजह तकनीकी कार्यों में हेरा-फेरी है जिसकी गंभीरता से जांच होनी चाहिए। ऐसी बयानबाजी मामलों की गंभीरता को कम करती है। बैंकों का सारा कार्यभार केंद्रीय वित्त मंत्रालय और भारतीय रिजर्व बैंक के अर्न्तगत आता है। बैकिंग प्रबंधों में खामियों को रोकने की जिम्मेदारी केंद्र की है। राजनैतिक हितों की खातिर बयानबाजी से कोई समाधान नहीं हो सकता। भ्रष्टाचार किसी एक पार्टी तक सीमित नहीं रहा। सभी पार्टियां भ्रष्टाचार को एक समस्या की बजाए संकट के तौर पर लें और इसे राजनैतिक हितों की खातिर एक हथियार के तौर पर प्रयोग नहीं करें। अजीब बात है कि भ्रष्टाचार और काले धन को रोकने के लिए कानून सख्त हो रहे हैं लेकिन घोटाले बढ़ते जा रहे हैं। सरकार और विपक्ष दोनों को राजनैतिक हितों से परे हटकर देश के हित में भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान छेड़ने की आवश्यकता है।