आचार्य चाणक्या ने कहा है कि- निरंतर अभ्यास किसी भी व्यक्ति को कुछ भी बना सकता है। ऊँचे – नीचे, ऊबड़-खाबड़ रास्ते पर किसान को गहरी नींद में सोते देखकर राजा भोज ने मंत्री से पूछा- ‘ऐसी ऊँची-नीची, ढेले, कंकड़ों से भरी हुई इस जमीन पर इस किसान को गहरी नींद कैसे आ गई ? हमें तो थोड़ी- सी अड़चन होने पर ही नींद उचट जाती है।’ मंत्री ने कहा- महाराज, यह सब अभ्यास और परिस्थिति पर निर्भर करता है। मनुष्य से अधिक कठोर कोई नहीं है, परिस्थितियाँ मनुष्य को अपने अनुकूल बना लिया करती हैं।
राजा भोज को यह बात जंचने के कारण इसकी परीक्षा करने का निश्चय किया गया और उस किसान को महलों में लाया गया और खूब आराम से रखा जाने लगा। कई महीने बाद प्रयोग के अंतिम दिन मंत्री से किसान ने कहा पलंग पर बिछे गद्दे में कुछ गड़ने वाली चीज मालूम होती है, जिसने रातभर नींद हराम कर दी। मुझे अच्छी नींद नहीं आई । मंत्री ने राजा भोज से कहा- ‘महाराज, यह वही किसान है जो ऊबड़-खाबड़ ढेलों-कंकड़ों पर धूप में पड़ा जमीन पर गहरी नींद में सो रहा था। आज इसे पलंग पर बिछे गद्दे में भी इसे तिनके चुभते हैं। यह अभ्यास का ही अंतर है। कठोरता और कोमलता की जैसी परिस्थितियों का मनुष्य सामना करता है, वह कुछ ही दिनों में उन्हीं का अभ्यस्त हो जाता है।’ इस लिए निरंतर अभ्यास किसी भी व्यक्ति को कुछ भी बना सकता है।
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