भारतीय वायु सेना के एएन-32 विमान दुर्घटना में हमने अपने 13 वीर सैनिकों को खो दिया। भारत में विमान दुर्घटनाओं का बहुत पुराना इतिहास रहा है। इन दुर्घटनाओं में जो सैनिक भारत ने खोये हैं उस हानि का तो आंकलन भी नहीं किया जा सकता है। ये समयांतराल वो रहा है जिसमें भाजपा, कांग्रेस और पुन: भाजपा सत्ता में है, लेकिन जैसा की आंकड़े बता रहें हैं कि इन दुर्घटनाओं में कोई कमी नहीं आई है। बाकी थल सेना और जल सेना में भी बड़े हादसे होते रहें हैं। मुंबई में 2013 में हुआ पनडुब्बी सिन्धुरक्षक हादसा इतना भीषण था की उसमें पनडुब्बी पूर्ण रूप से बर्बाद हो गई थी और हमने 18 वीर सैनिक भी खो दिए थे। 2018 में भारत की परमाणु पनडुब्बी अरिहंत भी भीषण हादसे का शिकार हुई थी और लम्बे समय के लिए अक्षम हो गयी थी। भारत की इकलोती परमाणु पनडुब्बी हादसे का शिकार होकर बेकार हो जाये ये अत्यंत गंभीर विषय है। भारतीय जल सेना में 2010 से अब तक 29 से ज्यादा दुर्घटनाएं हो चुकी हैं। भारतीय सेना में होने वाले हादसों की संख्या बहुत बड़ी है और उतनी ही बड़ी है इन हादसों के कारण होने वाली जनहानि।
भारत में सरकारे बदली हैं परन्तु इन दुर्घटनाओं में कोइ कमी नहीं आई है। सामन्यतया इन दुर्घटनाओं को तकनिकी या मानवीय भूल कहकर पटाक्षेप कर दिया जाता है। मिग श्रेणी के विमानों के पुराना होने को भी दुर्घटना का मुख्य कारण बताया जाता रहा है। लेकिन यदि हम देखें तो पायेंगे कि मिग श्रेणी ही नही अन्य श्रेणियों के विमान और हेलिकोप्टर भी दुर्घटना का शिकार होते रहें हैं। और इन दुर्घटनाओं का दायरा बस वायु सेना तक ही सीमित नहीं है बल्कि सेना के तीनो अंगो को ऐसी दुर्घटनाओं से भारी क्षति पहुँचती रही है। परन्तु दुर्घटनाओं के इतने लम्बे इतहास के बाद भी इन पर किसी सरकार ने कोई गंभीरता नहीं दिखाई। खराब उपकरण और रख-रखाव को इन हादसों का मुख्य कारण माना जाता रहा है।
भारत के विभिन्न रक्षा सौदे दलाली और भृष्टाचार का शिकार होते रहें हैं। बोफोर्स दलाली काण्ड भारतीय राजनीति को लम्बे समय तक गरमाता रहा। वाजपई सरकार के समय समाचार एजेंसी तहलका के खुफिया अभियान वेस्टएन्ड में तबके रक्षा मंत्री जोर्ज फर्नांडिस, भाजपा अध्यक्ष बंगारू लक्ष्मण, समता पार्टी अध्यक्ष जया जेटली और संघ से जुड़े बड़े नेता आर. के. गुप्ता के पुत्र दीपक गुप्ता तथा कई सेना के अधिकारीयों का नाम लिप्त पाये गये थे। जिसमें खुफिया कैमरे के सामने ये लोग रक्षा सौदों के लिए रिश्वत लेते देखे गए थे। उस समय बहुत बड़ी राजनैतिक उथल पुथल का कारण ये घटनाक्रम बना था। लेकिन वहीं पत्रकरिता की सुचिता के नाम पर तहलका के विरुद्ध बेहद कड़ी कार्यवाही भी की गयी थी। वो कार्यवाही इतनी कड़ी थी कि उसके उपरान्त किसी भी मिडिया समूह की हिम्मत ऐसे किसी बड़े गुप्त अभियान को करने की नहीं हुई। बाद में युपीए का कार्यकाल भ्रष्टाचार के नाम ही रहा।
रक्षा सौदों में दलाली के आरोप उस सरकार से जुड़े लोगो पर लगते रहे। 2019 का चुनाव भी राफेल विमान की दलाली के आरोपों की छाया में ही हुआ। यूपीए के कार्यकाल में किसी भी वायु सेना के विमान की दुर्घटना पर भाजपा तबकी सरकार पर दलाली खाकर खराब कल पुर्जे उपयोग करने का आरोप लगाती रहती थी। परन्तु मोदी सरकार के पांच वर्ष गुजर जाने के बाद भी इन दुर्घटनाओ के आंकड़े में कोई कमी नहीं आई है। अब जब मोदी सरकार अपने दुसरे कार्यकाल में प्रवेश कर चुकी है। तब भी इन दुर्घटनाओं में होने वाली भारतीय सैनिको के मौत के आंकड़े में कोई कमी नही आई है। ना ही लगातार हो रही इन दुर्घटनाओं के कारणों को जानने का कोई गंभीर प्रयास होता दिखाई दिया है। मोदी को लगातार दूसरी बार मिला जनसमर्थन द्योतक है की जनता को उनसे बहुत सी अपेक्षाएं हैं लेकिन भारतीय सेना में दुर्घटनाओं के आंकड़े इस बात को प्रमाणित करतें है कि मोदी सरकार भी इस दिशा में कोई सार्थक और गंभीर कदम उठाने में असफल रही है।
-सतीश भारद्वाज
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