पंजाब में आम आदमी पार्टी बुरी तरह बिखर गई
दिल्ली के बाद महज पंजाब में ही अपनी जमीन बनाने वाली आम आदमी पार्टी इस राज्य में भी बुरी तरह बिखर गई है। पार्टी के तीन विधायकों ने पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से त्याग-पत्र दे दिया है व एक विधायक सुखपाल खैहरा ने अलग नई पार्टी का गठन कर लिया है। कुछ अन्य विधायक भी पार्टी से बगावत कर रहे हैं। लेकिन यहां गलतियां केवल बागी नेताओं की ही नहीं बल्कि पार्टी का वरिष्ठ नेतृत्व भी बराबर जिम्मेवार है। पार्टी सुप्रीमो अरविन्द केजरीवाल राजनीति में नए हैं और वह न तो पंजाब की राजनीति को व न ही विचारधारा को समझ पाएं हैं। लोकतंत्र पार्टी के बाहर व अंदर दोनों जगह होना आवश्यक है।
बड़े नेताओं ने पार्टी में लोकतंत्र संस्कृति को कमजोर कर विधायकों के साथ नाराजगी बढ़ा ली,
बड़े नेताओं ने पार्टी में लोकतंत्र संस्कृति को कमजोर कर विधायकों के साथ नाराजगी बढ़ा ली, वहीं दूसरी तरफ नशा तस्करी मामले में केजरीवाल की ओर से मजीठिया से माफी मांगना भी पंजाब के नेताओं को हजम नहीं हुआ। पार्टी पंजाब के लिए कोई नया व कल्याणकारी राजनीतिक मॉडल नहीं दे सकी। केजरीवाल सहित ‘आप’ के अन्य नेता अकालियों व कांग्रेसियों को सबक सिखाऊ शब्दावली के प्रयोग करने पर जोर देकर निन्दा में उलझे रहे। ‘आप’ बहुत से मामलों में पार्टी सार्वजनिक मुद्दों को उठाकर मीडिया में चर्चा तो हासिल करती रही लेकिन जनहित्त में मुद्दों का हल करने या लम्बे समय के लिए लड़ने की हिम्मत नहीं कर सकी।
विधायकों को मुख्य संसदीय सचिव नियुक्त कर राजकोष पर भारी बोझ डाल दिया।
कर्मचारी, किसान-मजदूर संगठन अपने अधिकारों की लड़ाई खुद लड़ रहे हैं। कई धरनों में आप नेताओं ने संबंधित संगठनों का समर्थन किया लेकिन ऐसे संगठनों पर सदनों में खानापूर्ति ही करते रहे। इस तरह संघर्षशील नजरिये से आम आदमी पार्टी भी पुरानी पार्टियों की तरह ही हो गई है। दरअसल केजरीवाल सुधार के जो आदर्श लेकर राजनीति में उतरे हैं वह दिल्ली में सरकार बनने के बाद नजर नहीं आए। अपने (मुख्यमंत्रीत्व) के पहले कार्यकाल में केजरीवाल ने सरकारी गाड़ी व सरकारी बंगला लेने से मना कर जनता के धन को बचाने का दावा किया लेकिन मंत्री बनने से रह गए अपने विधायकों को मुख्य संसदीय सचिव नियुक्त कर राजकोष पर भारी बोझ डाल दिया।
इसी तरह पंजाब में अलगाव वादियों का समर्थन पाने के आरोपों से भी पार्टी की साख को बट्टा लगा। अगर केजरीवाल पार्टी की लोकप्रियता फिर से हासिल करना चाहते हैं तब उन्हें पार्टी को लोकतांत्रीय तौर-तरीकों में ढ़ालना होगा। पार्टी पर एक दो नेताओं की मर्जी थोपने की बजाए सर्वसम्मति को लागू करने की परंपरा स्थापित करने की आवश्यकता है। वरिष्ठ नेताओं द्वारा पंजाब में बगावत के लिए कांग्रेस या अकाली भाजपा पर कोई आरोप न लगाना अपने आप में इस बात का प्रमाण है कि बगावत पार्टी की आंतरिक कमियों का परिणाम है।
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