शिरोमणी अकाली दल में राजनैतिक स्वार्थों का युद्ध

A war of political interests in the Akali Dal

शिरोमणी अकाली दल की कोर कमेटी ने बागी अकाली नेता रणजीत सिंह ब्रह्मपुरा व डा. रत्न सिंह अजनाला को उनके पुत्रों सहित छह वर्ष तक पार्टी से निष्कासित कर दिया है। नि:संदेह यह अकाली दल में 60 वर्षों से काम कर रहे नेताओं के खिलाफ बड़ी कार्रवाई है। दरअसल यह राजनैतिक स्वार्थों की लड़ाई है। भले ही ब्रह्मपुरा डेरा सच्चा सौदा को माफी देने का मुद्दा बनाकर सुखबीर बादल व बिक्रमजीत सिंह मजीठिया का विरोध कर रहे थे लेकिन असल लड़ाई राजनैतिक स्वार्थों, मलाई वाले पदों व लाल बत्ती वाली गाड़ियों को लेकर है। ब्रह्मपुरा और अजनाला प्रकाश सिंह बादल की तरह ही पुत्रमोह व परिवारिक सदस्यों और रिश्तेदारों के मोह में फंसे हुए हैं। ब्रह्मपुरा भी यही चाहते थे कि उनका पुत्र सुखबीर बादल की तरह कैरियर बनाए। 2015 में कांग्रेस के एक विधायक ने बेअदबी मामले के विरोध में इस्तीफा दे दिया तो ब्रह्मपुरा ने अपने पुत्र रवीन्द्र सिंह ब्रह्मपुरा को उप चुनाव लड़ाने से गुरेज नहीं किया। उन्होंने अपने एक रिश्तेदार को भी सरकार में उच्च पद दिलाने के लिए दबाव बनाया। बिल्कुल यही हाल रत्न सिंह अजनाला का भी है। वह भी अपने पुत्र की राजनीति पैंठ मजबूत करने के लिए पूरी ताकत झोंक रहे थे। दरअसल परिवारवाद की परंपरा बादल परिवार से बढ़ी है, उसका रंग तो चढ़ना लाजिमी था। बादल परिवार को देखकर प्रत्येक नेता अपने पुत्रों-पुत्रियों के बाद भतीजे-भांजे के लिए जोर लगा रहा है। बेअदबी की घटनाएं निंदनीय हैं लेकिन राजनेताओं ने अपनी-अपनी, कमजोरी और राजनैतिक इच्छाओं को पालने के लिए धार्मिक मुद्दों का सहारा लेना शुरू कर दिया। ब्रह्मपुरा व उनके साथी यह बात अच्छी तरह जानते हैं कि अकाली दल व उसकी सहयोगी पार्टी भाजपा का ग्राफ नीचे जा रहा है और इस माहौल में बगावत करने से पार्टी को नुकसान होगा। लेकिन जहां तक राजनैतिक इतिहास का संबंध है बागी किसी भी पार्टी से अलग कर कोई ठोस प्राप्ति करने में सफल नहीं हो सके। सिद्धांतों के पर्दे के पीछे जब राजनैतिक हित टकराते हैं तो स्थिति संदिग्ध बन जाती है। यदि माझा क्षेत्र के नेताओं को अकाली भाजपा की सरकार के समय बराबर का हक मिलता रहता तो यह संकट न बनता। इस संकट की जड़ पार्टी व सरकार में बादल परिवार का दबदबा है। माझा क्षेत्र ने पार्टी में अपने नुक्सान के खिलाफ गुस्सा तो निकाला है लेकिन बात सीधी कहने की बजाय इसे धार्मिक रंगत दी है जो पार्टी की एक गलती सुधारने की बजाय एक ओर गलती करने वाली बात है। यही गलती न केवल पार्टी बल्कि पंजाब के लिए घातक है।

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