ये तोहफा सतगुरु को रोजाना दें कि मालिक हिम्मत, शक्ति देना कि ‘हम ताउम्र नेकी-भलाई के कार्य करेंगे
सरसा। पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि जब आप अपने सतगुरु, मुर्शिद को कुछ तोहफा देना चाहते हैं, तो वो तोहफा अच्छाई, नेकी, भलाई के कार्यों का होता है। वो तोहफा सतगुरु, जो अल्लाह, वाहेगुरु, राम के वचन सुनाते हैं, उनको मानने का होता है। वो तोहफा, भजन-सुमिरन, सत्संग-सेवा, परहित-परमार्थ का होता है। ऐसा तोहफा पूरी जिंदगी अपने सतगुरु, मौला को देते रहेंगे, ये वायदा इन्सान हर दिन करे। पूरा महीना साध-संगत खुशी से, उल्लास से नाचते-गाते हुए मनाती है, तो ये तोहफा सतगुरु को रोजाना दें कि मालिक हिम्मत, शक्ति देना कि ‘हम ताउम्र नेकी-भलाई के कार्य करेंगे। हे मुर्शिदे-कामिल, तेरे बताए रास्ते पे चलते ही जाएंगे और दृढ़ता से कदम टिकाएंगे। हे सतगुरु, भलाई-नेकी के कार्य, सच्चाई, रूहानियत के मार्ग पे दृढ़ता से बढ़ते जाना है, आपने हिम्मत देनी है, हमेशा शक्ति देनी है।’ तो हमें लगता है कि आपका ये वो तोहफा है जो जायज है। यह मंजूर, कबूल भी होगा और इसके बदले में मालिक खुशियां भी जरूर लुटाएंगे।
आप जी ने फरमाया कि आपके पास देने के लिए और भी बहुत-कुछ है। जैसे आपके पाप-गुनाह, बुरी आदतें, बुरी सोच, पाप-कर्मों से परहेज, ये भी आप रोजाना दे सकते हैं। आप प्रार्थना करें कि हे मेरे दाता, हे मेरे रहमत, मुझसे ये बुरी आदत है। रहमत करना कि ‘इस बुरी आदत में मैं जिंदगी में कभी प्रवेश न करने दूं। मेरी जिंदगी में कभी ये आदत मुझ पर हावी न हो। मैं वायदा करता हूं कि कभी भी इस आदत के पीछे चलकर अपने सतगुरु, मौला से दूर नहीं होऊंगा।’ तो इस तरह के वायदे आप शुरू कर सकते हैं। पूज्य गुरू जी ने फरमाया कि साईं जी का यह दर है। सतगुरु-मौला ने ये दर बनाया है। इस दर पे अगर झुक जाए सिर, तो उस आदमी को किसी चीज की कमी नहीं रहती है, पर भावना, श्रद्धा, दृढ़ यकीन हो। क्योंकि सिर झुकाने में बड़ा अंतर होता है। कई बार लोग वैसे ही सिर झुका देते हैं और अंदर कोई श्रद्धा, भावना नहीं होती।
इसलिए यहां सिर झुकाने का मतलब है कि अंदर तड़प के, भावना से, अंदर सोच कर कि ‘हे मेरे दाता, रहबर! मैं कहां काबिल हूं कि कोई वायदा कर सकूं! पर तूने मुझे इस काबिल बना दिया है। मैं कहां काबिल था कि सच की राह पे चलता! पर तूने चला दिया है। मैं कहा काबिल था कि तेरा कहलाता, पर तूने अपना बना लिया है। सो… हे मेरे दाता, रहबर! हिम्मत देना कि हम आपकी सच्ची राह, दृढ़ यकीन के साथ बढ़ते चलें, सबका भला हमसे करवा। क्योंकि हम चलेंगे जरूर, पर चलाना तूने है।’ क्योंकि अगर आप चलेंगे नहीं तो वो आपको चलाएगा कैसे? अच्छे कर्म करने आपने हैं, पर करवाएगा वो। लेकिन करना तो पड़ेगा ना! यह तो नहीं है कि आप चारपाई पे पड़े-पड़े ही प्रार्थना करते रहो। कर्म तो करना पड़ेगा कि हम कर्म करेंगे और तू करवाएगा। तो यकीन मानिए, वो दाता-रहबर कर्म करवाने खुद चला आएगा।
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