सवाल फिर वही, क्या एग्जिट पोल्स के मौजूदा रूझान 23 मई को आने वाले फाइनल रिजल्ट जैसे होंगे? 17वीं लोकसभा का सातवां व आखिरी चरण जैसे ही संपन्न हुआ, खबरिया चैनलों ने एग्जिट पोल्स के पिटारे खोल दिए। तुलनात्मक सभी चैनलों के आकंलनों पर गौर करें, तो कमोबेश एक ही तरफ इशारा कर रहे हैं कि केंद्र में दोबारा मोदी की सरकार बनने वाली है। एनडीए घटक दल बहुमत का आकड़ा पार करता दिखाई दे रहा है। फिलहाल पूरी तस्वीर परसों ही साफ होगी, जब ईवीएम मशीनें फाइनल रिजल्ट सार्वजनिक करेंगी। 2014 के मुकाबले चैनलों के आंकलन विपक्षी पार्टी की स्थिति भी ठीक दर्शाए हैं। खैर, परिणाम आने में अभी दो दिन शेष हैं। लेकिन एग्जिट पोल्स ने दोनों प्रमुख सियासी दलों के अलावा तमाम क्षेत्रीए दलों की धड़कनें जरूर बढ़ा दी हैं।
हालांकि कांग्रेस और भाजपा दोनों आश्वस्त हैं कि परिणाम उनके ही पक्ष में ही आएंगे। अब सवाल उठता है कि क्या इस बार के भी एग्जिट पोल पूर्व की तरह चकमा देंगे। यानी बेअसर साबित होंगे? या फिर उनकी विश्वसनीयता बची रहेगी। विगत कुछ बर्षों से एग्जिट पोलों की साख खतरे में पड़ी हुई। क्योंकि चैनलों का अतित्साह होना और जल्दबाजी के चलते पिछले कुछ सालों से इन एग्जिट पोलों की ही पोल खुल चुकी है। मालूम हो जब दिल्ली में विधानसभा के चुनाव हुए, तो अधिकतर चैनलों ने भाजपा को जीतता हुआ दर्शाया था। लेकिन रिजल्ट आने के बाद पता चला की जिसकी सरकार बना रहे थे वह सिर्फ तीन ही सीटों पर सिमट गई। खैर, अतीत को ध्यान में न रखकर खबरिया चैनल एक बार फिर 17वीं लोकसभा के आखिरी चरण का चुनाव खत्म होने का इंतजार कर रहे थे। पांच बजने के बाद सभी चैनलों ने एक साथ एग्जिट पोल के पिटारे खोल दिए। हिंदुस्तान के सभी चैनलों ने अपने-अपने अनुमानों के आधार पर आंकनीं थी। वह चुनाव के बाद बनती नजर आ रही है। लोकसभा चुनाव से सभी दलों में प्रधानमंत्री उम्मीदवार को लेकर एका नहीं बना थालन पेश किए।
परिणाम आने से पहले ही ज्यादातर चैनलों ने भाजपा की सरकार बनाने के रूझान तकरीबन परोस दिए। 2014 के मुकाबले इस बार सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में पिछड़ता हुआ दिखाया। पिछली बार वहां 73 सीटें भाजपा को मिली थीं, लेकिन इस बार बीस से पच्चीस सीटें कम आती दिखाई हैं। वहीं बंगाल, उड़ीसा और जम्मू-कश्मीर में भाजपा को फायदा होते दिखाया। बीजेडी, तेलंगाना, आईएसआर कांग्रेस अपने प्रभाव क्षेत्र में अच्छा करते दिखाए गए हैं। जी न्यूज, इंडिया टीवी, आर भारत और एबीवी के रूझानों से भाजपा को दोबारा से सरकार बनाने में दिक्कत नहीं आएगी। एकाध चैनल विपक्ष के पक्ष में है। एग्जिट पोल्स के बाद विपक्षी दलों में सरगर्मियां तेज हो गईं। चुनाव से पहले जिस मुद्दे पर विपक्षी दलों में बात नहीं ब। लेकिन अब पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के नाम सहमति बनती दिखाई पड़ने लगी है। इस मसले को लेकर रविवार को जब सातवां चरण खत्म हुआ तो दिल्ली में तीसरे मोर्चे की कवायद शुरू हो गई। क्षेत्रीय पार्टियों के प्रमुख नेता सोनिया गांधी के आवास पर एक-एक करके एकत्र होने शुरू हो रहे हैं। सूत्र बतातें है कि सोनिया गांधी ने सभी विपक्षी दलों के नेताओं को एक मंच पर लाने की जिम्मेदारी चंद्रबाबू नायडू को सौंपी है। तभी वह बीते शनिवार को लखनऊ पहुंचकर मनमोहन सिंह के नाम की चर्चा को लेकर बीएसपी प्रमुख मायावती और समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव से अलग-अलग मुलाकातें की। उनसे मिलने के बाद रविवार को दोबारा दिल्ली पहुंचे और सीधे सोनिया गांधी को ब्यौरा दिया। करीब घंटे भर की मुलाकात के बाद जब चंद्रबाबू नायडू बाहर निकले तो उन्होंने मीडिया को बताया कि पूरे देश में विपक्ष अच्छी स्थिति में है। इसलिए चुनाव के बाद सभी दल एक छत के नीचे आएंगे और पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को फिर से प्रधानमंत्री बनाने में सहमत हो जाएंगे।
दरअसल हमारे लिए एग्जिट पोल्स की सच्चाई को जानना बहुत जरूरी होता है। एग्जिट पोल्स महज अनुमान भर होते हैं। रिसर्च और सर्वे एजेंसियों के साथ मिलकर न्यूज चैनलों द्वारा जारी होने वाला एग्जिट पोल मतदान केंद्रों में पहुंचने वाले मतदाताओं और मतदान संपन्न होने के बाद के अनुमानों पर आधारित होता है। इनसे संकेत मिल सकता है कि हर चरण में मतदान के घटे-बढ़े प्रतिशत और मतदाताओं के रुख के आधार पर 23 मई को क्या नतीजे रहने वाले हैं। एग्जिट पोल्स के नतीजों से मात्र चुनावों की हवा का रुख पकड़ में आता है। एग्जिट स्थिति नहीं। अंतिम मोहर 23 तारीख को ही लगेगी कि किस सियासी दल का राजनीतिक भविष्य अंधेर में समाएगा। हालांकि एग्जिट पोल पर गौर करें तो कांग्रेस की स्थिति फिलहाल पिछले चुनाव से मजबूत दिखाई पड़ती है। बहरहाल, दावों की हकीकत की सच्चाई का पता परसों ही चलेगा, जब ईवीएम मशीनों का पीटारा खुलेगा। कहीं ऐसा न हो कि एग्जिट पोल की ही पोल खुल जाएगा और नजीते कुछ और आएं।
ललित गर्ग
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