परम पिता जी के रूहानी सत्संग की यादों को समेटे हुए है एक छोटी सी कुटियां…

Param Pita Shah Satnam Singh Ji

बेपरवाह सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज ने साध-संगत पर अपार खुशियां लुटार्इं। बेपरवाह जी कभी नोट तो कभी सोना-चांदी बांटते तो कभी साध-संगत को प्रेम निशानियां देकर खुशी से सराबोर कर देते। बेपरवाह जी द्वारा दी गई प्रेम निशानियां साध-संगत याद के रूप में संजोकर रखे हुए हैं। पावन गुरु नगरी श्री जलालआणा साहिब निवासी बूटा सिंह इन्सां आज भी पूजनीय बेपरवाह जी की प्रेम निशानी को संभालकर रखे हुए है। उन्होंने कहा कि वह अंतिम सांस तक इसकी संभाल करता रहेगा। इस शख्स से जब बेपरवाह जी के चोजों के बारे में पूछा गया तो उसने सबसे पहले वो प्रेम निशानी दिखाई जो उसने बेपरवाह जी से प्राप्त की थी।

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75 वर्षीय बूटा सिंह सिधू ने बताया कि करीब 1957 में जब पहली बार पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज गांव श्री जलालआणा साहिब में पूजनीय परमपिता शाह सतनाम जी महाराज के घर आए थे तो उस समय मेरी उम्र करीब 9 वर्ष की थी। मुझे अपने पिता गज्जन सिंह (मुनि) के साथ एक साथ दोनों बॉडियों के पावन दर्शन का सुअवसर मिला। उस दिन बेपरवाह जी ने करीब 150 लोगों को नाम-शब्द दिया था। जिसमें मैं भी शामिल था। बूटा सिंह ने बताया कि मुझे याद है कि जब बेपरवाह जी ने मौजमस्तपुरा धाम की नींव रखी थी तो पूजनीय परमपिता शाह सतनाम जी महाराज ने अपने हाथों से गुड़ बांटा था। आश्रम के लिए 4 बीघा जमीन चंद सिंह ने दी थी। मेरे भाई जोगिंदर सिंह सहित गांव के अन्य सेवादारों ने उस समय आश्रम निर्माण में बहुत सेवा की। बेपरवाह जी का क्षेत्र में जहां भी सत्संग होता मैं अपने पिता के साथ जरूर जाता था। बूटा सिंह ने बताया कि मेरी माँ निहाल कौर व पूजनीय परमपिता जी की पूजनीय माता आसकौर जी दोनों एक-दूसरे को बहनें मानती थीं।

‘वरी! देखो सतगुरु ने कैसे रंग भरे हैं’ :-

बूटा सिंह ने बताया कि एक बार मैं गांव के लोगों के साथ गांव चोरमार खेड़ा के निर्भयसर धाम आश्रम में बेपरवाह जी के दर्शन करने गया था। बेपरवाह जी उस समय ‘तेरावास’ के पास बोरी बिछाकर बैठे थे। उनकी गोद में सफेद एवं काले रंग की बड़ी ही सुंदर एक छोटी बकरी थी। उसके पैरों में घुंघरू व गले में घंटी बंधी हुई थी। बेपरवाह जी ने फरमाया कि ‘वरी देखो सतगुरु ने कैसे रंग भरे हैं’। बूटा सिंह ने बताया कि मैंने बेपरवाह जी के सामने अर्ज कर दी कि बाबा जी ये बकरी मुझे दे दीजिए। यह सुनकर बेपरवाह जी मुस्कराए और बोले ‘पुट्टर इसके 7 ऊंट चने लगेंगे’। फिर मैंने कहा कि बाबा जी जितने मर्जी ले लो, लेकिन मुझे ये बकरी चाहिए।

बूटा सिंह ने बताया कि हाथी राम व कबीर सिंह दोनों बकरियां संभालने की सेवा करते थे। बेपरवाह जी ने इन दोनों सेवादारों को कहा कि ‘ये टल्ली वाली बकरी मुनि (बूटा के पिता गज्जन सिंह) को देनी है’। बूटा सिंह ने बताया कि जब मैंने उस बकरी को मेरे घर देखा तो ऐसा लगा कि जैसे मुझे दोनों जहान की खुशी मिल गई हो। बूटा सिंह ने बताया कि बेपरवाह जी ने कुछ दिन बाद मुझसे पूछा कि ‘पुट्टर तुझे बकरी मिल गई क्या’। तो मैंने कहा कि हां जी। बेपरवाह जी ने गांव में मीत सिंह, चंद सिंह, गज्जन सिंह बेंसराय, मल्लू सिंह, जीता सिंह, बंता सिंह व मोदी सिंह सहित कई सेवादारों को भी प्रेम निशानी के रूप में बकरियां दी थीं।

प्रेम निशानी ने कर दिए वारे-न्यारे :-

बेपरवाह जी ने बूटा सिंह को वचन फरमाते हुए कहा था कि ‘पुट्टर इस निशानी (बकरी) को कभी गंवाना नहीं’। बेपरवाह जी की इस निशानी की उनके घर में इस समय 17वीं पीढ़ी चल रही है, जबकि बूटा सिंह की चौथी। बूटा सिंह इन्सां व उसकी पत्नी सुरजीत कौर इन्सां आज भी बड़े चाव से बकरियों की देखरेख करते हैं। बूटा सिंह ने बताया कि वह बेपरवाह जी द्वारा फरमाए गए वचनों को आखिरी सांस तक निभाएगा। बेपरवाह जी की इस प्रेम निशानी ने उनके वारे न्यारे कर दिए। इसके अलावा भी बूटा सिंह ने पूजनीय परमपिता शाह सतनाम जी महाराज द्वारा उनके खेत में रूहानी सत्संग फरमाने बारे बताते हुए वो जगह भी दिखाई जिस खेत के कमरे में पूजनीय परमपिता जी ने बैठकर चाय पी थी। अनेक रूहानी यादें साझा की।

‘अज्ज मैनूं रज्ज के देख लैण दे’ :-

बूटा सिंह ने बताया कि वर्ष 1997 की बात है। मेरे पिता गज्जन सिंह काफी बीमार थे। इसी दौरान पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां रूहानी सत्संग फरमाने के लिए श्री जलालआणा साहिब में पधारे हुए थे। बूटा सिंह ने बताया कि मेरे मन में था कि अगर हजूर पिताजी मेरे घर में अपने पावन चरण टिकाकर हमारे मुड्ढे पर आकर बैठ जाएं तो फिर मैं उन्हें मानूं। बूटा सिंह की माता निहाल कौर ने पूज्य हजूर पिता जी से अर्ज कर दी कि पिताजी बच्चों के पिता बीमार हैं और आप जी के पावन दर्शन करना चाहते हैं। फिर पूज्य पिताजी ने फरमाया कि ‘भई मक्खन सिंह के घर के पास है क्या आपका घर’।

माता ने कहा कि हां पिता जी, फिर पूज्य पिताजी ने हम पर रहमत करते हुए हमारे घर चरण टिकाए और उसी मुड्ढे पर बैठे तो मेरी सभी शंकाएं दूर हो गर्इं। पूज्य पिताजी ने पूरे परिवार को दर्शनों से निहाल करते हुए परिवार का कुशलक्षेम जाना। मेरे पिता से जब पूज्य पिताजी ने पूछा तो उन्होंने पूज्य पिताजी के दोनों पवित्र हाथ पकड़ लिए और कहा कि ‘अज्ज मैनूं रज्ज के देख लैण दे’। जिसके बाद पूज्य पिताजी ने वचन फरमाते हुए कहा कि ‘गज्जन सिंह तेरी भक्ति मंजूर है’। 28 दिन बाद मेरे पिता गज्जन सिंह ने चोला छोड़ दिया।

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